tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post2695194162962673029..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: फ़ैज़ पर कुछ नोट्स : दूसरी और अंतिम किस्तEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-50507009512775383922011-01-31T01:31:51.630+05:302011-01-31T01:31:51.630+05:30ये रचना संकलनीय है .तरक्की पसंदगी का फैज़ से अच...ये रचना संकलनीय है .तरक्की पसंदगी का फैज़ से अच्छा उदाहरण शायद कहीं नहीं मिलेगा.ऐसा क्यों होता है जब भी कोई आवाज़ को बुलंद करने वाला चुप कराया जाता है तो फैज़ ही याद आते हैं,पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गवर्नोर सलमान तासीर की हत्या के बाद वहां के लिबरल की चुप्पी और सहमी से,फैज़ जैसे शख्सियत की कमी महसूस होती है.ऐसा लगता है जुल्मों सितम के कोहे गरां,कोहे गरां ही बने रहेंगे.'अब कहाँ रस्म घर लुटाने की' फैज़ ने शायद सही कहा था.मुझे याद है जब मैं छोटा था तो मजदूर फिल्म का गाना 'हम मेहनतकश इस दुनिया से सुना था'जो की फैज़ की मूल रचना का ही सरल रूप है .इस गाने को सुन के अजीब सी फीलिंग आती थी.फिर मैंने जब सालों बाद 'हम देखेंगे' सुना तो वाकई रोंगटे खड़े हो गए.काश की फैज़ को और भी ज्यादा लोग पढ़ते और समझते.शुक्रिया धीरेश भइया! फैज़ से पहला परिचय आपने ही कराया थाDheeraj Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/00185518009361746989noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-52778406376847149702011-01-17T06:26:28.447+05:302011-01-17T06:26:28.447+05:30कहते हैं जिसे इश्क़, ख़लल है दिमाग़ का
एक किताब की...कहते हैं जिसे इश्क़, ख़लल है दिमाग़ का<br />एक किताब की तरह पढ़ा, लगता हैवर्षाhttps://www.blogger.com/profile/01287301277886608962noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-25420680273159670072011-01-15T19:44:55.912+05:302011-01-15T19:44:55.912+05:30फैज़ की ज़बां ने हमेशा हमें उद्वेलित किया है, साफ़ औ...फैज़ की ज़बां ने हमेशा हमें उद्वेलित किया है, साफ़ और समझ-भरी भाषा का बादशाह फैज़ को बेशक़ कहा जा सकता है. सबसे ज़रूरी बात वह है जिसमें ग़ालिब का प्रभाव फैज़ की शाइरी में मिलता है. इश्क़ और आन्दोलन को उसकी असल रौ तक पहुँचाने में फैज़ की शाइरी बहुत ज़्यादा हद तक सफल साबित होती है. असद जी का शुक्रिया इस 'नोट' के लिए.ssiddhanthttp://ssiddhantmohan.blogspot.comnoreply@blogger.com