tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post4238573061511823839..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: साहित्य, सत्ता और सम्मान : प्रणय कृष्णEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-39707600818504974352009-09-25T09:48:37.713+05:302009-09-25T09:48:37.713+05:30असल सवाल सिर्फ यही नहीं है कि क्या किसी संवैधानिक ...असल सवाल सिर्फ यही नहीं है कि क्या किसी संवैधानिक लोकतांत्रिक राज्य को 'सलवा-जुडूम 'जैसा अभियान चलाने का हक़ दिया जा सकता है?असल सवाल यह भी है कि क्या संवैधानिक लोकतांत्रिक राज्य के मूल्यों की निरंतरता में अभियान कौन चलायेगा ? क्या नक्सली छत्तीसगढ़ में ऐसा कर रहे हैं जिनके लिए उन्हें राज्य सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए और उनकी ऐसी संदिग्ध गतिविधियों को संवैधानिक लोकतंत्र के लिए मान्य किया जाना चाहिए ? यदि लेखकों के पास इसका उत्तर नहीं है तो वे स्वयं समझ सकते हैं कि वे किसके भाड़े पर ऐसा लिख रहे हैं ? और ऐसे लेखन का अंततः प्रभाव प्रजातंत्र में किस ओर हो सकता है ? क्या नक्सलवादी संवैधानिक लोकतांत्रिक राज्य तंत्र को संपुष्ट कर रहे हैं ? यदि वे नहीं कर रहे हैं तो भी क्या नक्सलवादियों के जुल्म से निपटने के लिए आदिवासियों के साथ खड़े नहीं होना चाहिए ? और इस रूप में ऐसे लेखकों उस राज्य सरकारों पर भी विश्वास करना होगा जो संवैधानिक लोकतंत्र की परिधि में रहकर कार्य कर रही है । और वह इसलिए कि वे एकतरफ़ा संवैधानिक लोकतांत्रिक राज्य के मूल्यों, कानूनों, हकों का लाभ नहीं उठा सकते, उसका दंभ भी नहीं भर सकतेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-153418503074813112009-09-04T22:56:37.723+05:302009-09-04T22:56:37.723+05:30आलोचक परमानन्द श्रीवास्तव पर अपने विचारों को स्पष्...आलोचक परमानन्द श्रीवास्तव पर अपने विचारों को स्पष्ट करें. उनका गुनाह उदय प्रकाश के गुनाह से कम नहीं. तो फिर लानत मलामत उदय प्रकाश की ही क्यों ? आलोचक परमानन्द श्रीवास्तव को क्यों नहीं कुछ कहा जा रहा ?<br /><br />रामेश्वररामेश्वरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-36005603870926287872009-09-01T12:57:55.640+05:302009-09-01T12:57:55.640+05:30’चरणदास चोर‘ और उदय प्रकाश
अब यह महज एक संयोग है ...’चरणदास चोर‘ और उदय प्रकाश <br />अब यह महज एक संयोग है या कुछ और कि उदय प्रकाश जी पुरस्कार ’कुंवर नरेन्द्र प्रताप सिंह‘ के नाम पर बनी संस्था का लेने गए। योगी भी कुंवर साहब हैं और जिन डॉ. रमन सिंह के पैरोकार उदय जी बने हैं वह भी कुंवर साहब हैं। यह इल्जाम नह है, संदेह है। अक्सर ऐसा होता है। हमें याद है जब मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की गई थीं, तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बडे नेता हुआ करते थे कामरेड रामसजीवन सिंह। कई बार सांसद भी रहे थे और बहुत जुझारू भी थे, वैशाली में नहीं रहते थे, बांदा में रहते थे और मजलूमों के लिए संघर्षरत रहते थे। वाकई में ईमानदार आदमी थे। उन्होंने उस समय मंडल कमीशन की शान में भाकपा के मुखपत्र ’मुक्ति संघर्ष‘ और ’जनयुग‘ में कई पन्ने काले किए और जमकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था को गालियां दीं। थोडे समय बाद ही रामसजीवन तो बसपा में चले गए और उनके दूसरे अनुयायी मित्रसेन यादव तुरंत यादव हो गए और समाजवादी पार्टी में चले गए। लेकिन जिन ब्राह्मणवादियों को रामसजीवन और मित्रसेन यादव गालियां दे रहे थे, वे सारे ब्राह्मणवादी आज भी भाकपा का झण्डा उठा रहे हैं। क्या रामसजीवन जैसा ही कुछ उदय प्रकाश के साथ तो नहीं हो रहा? लगता यही है कि उदयप्रकाश के लाल झण्डे का रंग नीला करते करते पुरस्कारों की बौछार में भगवा पडता जा रहा है और उदय प्रकाश को पुरस्कार देते वक्त भगवा मंडली उसी परम सुख का अनुभव कर रही है जिस सुख का अनुभव ’पीली छतरी वाली लडकी‘ का ’राहुल‘, ’सुधा जोशी‘ को ’झटके‘ देते हुए हर झटके पर महसूस करता है। उदय जी जरा जोर से बोलें- जय श्री……..<br /><br /><br />http://newswing.com/?p=3252Amalendu Upadhyayahttps://www.blogger.com/profile/13080258950116614361noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-64687057176391960742009-08-31T00:24:22.286+05:302009-08-31T00:24:22.286+05:30्हां आर्थिक विषयों पर रुचि हो तो इसे देखें
http:/...्हां आर्थिक विषयों पर रुचि हो तो इसे देखें<br /><br />http://economyinmyview.blogspot.com<br /><br />और कोई इस पर लिखना चाहे तो सूचित करेंAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-28761178269419114222009-08-30T20:34:58.144+05:302009-08-30T20:34:58.144+05:30मध्यप्रदेश के संदर्भ में कांग्रेस के लंबे राज में ...मध्यप्रदेश के संदर्भ में कांग्रेस के लंबे राज में सत्ता प्रतिष्ठानो के करीब लोग पांच साल के बनवास में टूट गये हैं और इस बार की भाजपा की जीत ने जिस तरह से उनकी उम्मीद तोडी है उसका प्रतिबिंबन तमाम रूपों में हो रहा है।<br /><br />उदय पर अब रमन सिंह सरकार का बचाव करने के बाद कुछ कहना मुश्किल है। वह अब पतन का मामला नहीं रहा बल्कि वह साफ़ पाला बदल चुके हैं।<br /><br />मुझे समयांतर पढते समय भी लगा कि पुरस्कार के पूरे तंत्र पर कुछ विशेष लिखना चाहिये था। साहित्य में पुरस्कार का मामला अब इतना गंभीर हो चुका है कि इस पर अब खुल के बात होनी चाहिये।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.com