tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post4542898075804348149..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: पहाड़ों का विनाश और लीलाधर बुद्धिजीवियों की जुगाड़ी कलाबाजीEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-11931345070785535942012-10-09T00:17:41.963+05:302012-10-09T00:17:41.963+05:30Awesome article.
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होगा इन चौड़ी सड़कों के गाँव पहुँचने से पहले गाँव मे इतनी आत्महत्याएं नहीं हुआ करती थीं.न ही इतनी मात्रा मे स्वस्थ गाँव के गाँव उठ कर शहर की बीमार झुग्गियों मे आ बसते थे. तो आखिर यह विकास, यह ग्रोथ किस के लिए ? यदि हमारे गाँव इस छद्म विकास के अंजामों से निपटने की तय्यारी मे नही हैं तो क्यों न वह इस का विरोध करे ? क्यों कि जिस व्यवस्था मे हम रह रहे हैं , वहाँ विकास का सीधा फायदा ताक़त्वर को है . कम्ज़ोर तो महज़ पल रहा है . दलालों को है, उत्पादक तो निपट पेट भर रहा है. मुझे तो नही लगता इस कथित विकास से पहले गाँव मे कोई भूखा मरता था. इस व्यवस्था में मै तो फिलहाल इस विरोध को जायज़ मानता हूँ. हाँ यदि व्यवस्था उत्पादक का, श्रमिक का , हाशिए के आदमी का हित सुनिश्चित करे तो वे लोग इस तरह के विकास के बारे सोच सकते हैं . अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-73261479408646068872012-07-25T23:40:31.981+05:302012-07-25T23:40:31.981+05:30धीरेश! इस मुद्दे को उठाने के लिए साधुवाद। मूल बात ...धीरेश! इस मुद्दे को उठाने के लिए साधुवाद। मूल बात पर आने से पहले एक अपनी बात कहना चाहूंगा। हम प्रवासी उत्तराखंडवासी बचपन में गर्मियों की छुSियों में घर जाया करते थ्ो तो अथाह प्यार मिलता था पूरे गांव का। हमारे संगी-साथी इस बात का ध्यान रखा करते थ्ो कि हमें कोई कष्ट नहीं हो। यही नहीं वे दूर-दूर जंगलों में जाकर हमारे लिए वहां के प्रसिद्ध फल हिसालू, काफल और किलमौड़ लाया करते थ्ो। खूब खाते थ्ो। उन्हें घरवालों से कई बार डांट पड़ती थी। उनके मां-बाप का सही तर्क होता था कि ये लोग परीक्षाएं देकर आ गए हैं, इनका रिजल्ट भी आ गया होगा, लेकिन तुम्हारी तो अभी परीक्षाएं होनी हैं। (ध्यान रहे कि उत्तराखंड में जाड़ों में दो माह की छुSियां पड़ती हैं, गर्मियों में महज 1० दिन की)। हालांकि उनके मां-बाप भी बाहर से आए लोगों की खातिरदारी का पूरा ध्यान रखते थ्ो। धीरे-धीरे वक्त बदला, गांव जाने का समय कम मिलता था। जब मिला तो एक अजीब परिवर्तन। फलों को अगर तोड़ भी लिया तो बजाय बाहर से आने वालों को देने के उन्हें बेचने में मजा आने लगा। ठीक भी था। इसी बीच हमारे यहां पानी के प्राकृतिक स्रोतों के पास सीमेंट की डिग्गी बनाने की योजना आई। गांव के करीब दो-तीन दर्जन युवाओं को कुछ दिन के लिए रोजगार मिला। संयोग से मैं उन दिनों गांव गया हुआ था। मैंने सुन रखा था कि पानी के स्रोतों के पास सीमेंट लगने से स्रोत सूख जाते हैं। मैंने इस परियोजना का विरोध किया। सब लोग एक साथ मेरे खिलाफ खड़े हो गए। मैंने उनका दर्द समझा और मैं चुप हो गया। फिर कुछ दिनों बाद पहाड़ों पर पगडंडियां बनाने की योजना आई। इसका विरोध मैंने नहीं किया था, लेकिन कुछ लोगों ने इस योजना का भी विरोध किया। धीरे-धीरे मेरा गांव जाना कम हो गया। इस बीच हमारे यहां भी कुछ बड़ी योजनाएं सामने आईं। अगर कुछ ऐसी योजनाएं होतीं जो वाकई मुझे खराब लगतीं तो मेरे विरोध पर उन लोगों का एक ही जवाब होता, आप पर्यटक की तरह पहाड़ों में आते हैं, आपका स्वागत है, लेकिन हमारी रोजी छीनने के लिए क्यों आतुर हैं। इसी बीच मुझे नई टिहरी जाने का मौका मिला। अल्मोड़ा के दूर दराज सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले पर रोजगार के नाम पर कई बार भूखों रहने की नौबत झेल रहे लोगों से बेहतरीन जीवन जी रहे हैं नई टिहरी के लोग। मैं बांधों का समर्थन नहीं कर रहा हूं, लेकिन विरोध करने वालों से पूछना चाहता हूं कि आखिर क्या हल है वहां के लोगों की समस्याओं का। कैसे उन्हें रोजगार मिलेगा। फिर प्रकृति को या नदी को बचाने का सारा ठेका उन्हीं का क्यों। बांधों के बनने से पहले मालपा कांड हुआ था, पूरा इलाका ही भारत के नक्श्ो से गायब हो चुका है। कई जगह प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, उनके लिए किसे जिम्मेदार ठहराएंगे। योजनाओं के बारे में सोचा जाना चाहिए, हां यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन परियोजनाओं में वहां के लोगों को नौकरी मिलने में प्राथमिकता मिले।kewal tiwarinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-23696746450664381772012-07-24T18:48:40.054+05:302012-07-24T18:48:40.054+05:30आलेख जरूरी और महत्वपूर्ण है। इसलिए भी कि जब उत्तरा...आलेख जरूरी और महत्वपूर्ण है। इसलिए भी कि जब उत्तराखण्ड में समर्थन और विरोध की अतार्किक धुनों ने बहुत विभ्रम खड़ा कर दिया है।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-77145216817675427492012-07-24T14:25:27.616+05:302012-07-24T14:25:27.616+05:30मोहन दा ठीक कह रहे हैं .मोहन दा ठीक कह रहे हैं .आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-27488456141287485132012-07-24T12:49:21.597+05:302012-07-24T12:49:21.597+05:30# स्वप्नदर्शी, मुझे हैरानी और दुख नहीं है. मुझे फक़...# स्वप्नदर्शी, मुझे हैरानी और दुख नहीं है. मुझे फक़त हँसी आ रही है. यह नई तरह का द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है. जिस मे मानवता के लिए कोई जगह नहीं है. भौतिकता भौतिकता के लिए. जगूड़ी जी को पर्सनल कुछ नही कहूँगा. वे भले आदमी हैं.... एक बार फोन पर बात हुई थी, बहुत "मीठा" बोले. वे पूरी मिठास से सामने वाले को कंविंस कर सकते हैं. यहाँ भी यही मंशा उन की रही होगी, प्रतीत होता है. <br />दर असल ऐसी सोच तभी पैदा होसकती है किसी मे, जब उस के पहाड़ के साथ जुड़ाव के सूत्र ही अविश्वसनीय और नकली हों. ऐसे लोग समय समय पर अपनी पहचान जताते रहते हैं.उन्हो ने जताया और ज़िद्दी धुन ने पकड़ा.... आभार.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-18287736024472057332012-07-24T12:48:01.056+05:302012-07-24T12:48:01.056+05:30# स्वप्नदर्शी, मुझे हैरानी और दुख नहीं है. मुझे फक़...# स्वप्नदर्शी, मुझे हैरानी और दुख नहीं है. मुझे फक़त हँसी आ रही है. यह नई तरह का द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है. जिस मे मानवता के लिए कोई जगह नहीं है. भौतिकता भौतिकता के लिए. जगूड़ी जी को पर्सनल कुछ नही कहूँगा. वे भले आदमी हैं.... एक बार फोन पर बात हुई थी, बहुत "मीठा" बोले. वे पूरी मिठास से सामने वाले को कंविंस कर सकते हैं. यहाँ भी यही मंशा उन की रही होगी, प्रतीत होता है. <br />दर असल ऐसी सोच तभी पैदा होसकती है किसी मे, जब उस के पहाड़ के साथ जुड़ाव के सूत्र ही अविश्वसनीय और नकली हों. ऐसे लोग समय समय पर अपनी पहचान जताते रहते हैं.उन्हो ने जताया और ज़िद्दी धुन ने पकड़ा.... आभार.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-46109938119304864652012-07-23T22:05:04.985+05:302012-07-23T22:05:04.985+05:30अंग्रेजों ने उत्तराखंड पर काबिज होकर कई नियम बदल ड...अंग्रेजों ने उत्तराखंड पर काबिज होकर कई नियम बदल डाले थे जो उस समय लोगों को कतई हज़म नहीं हुए जैसे जंगलों पर गावों का हक खत्म कर देना और उसके बाद देवदार के जंगल के जंगल दनादन साफ़ कर दिए गए. मगर हम उनसे भी दो हाथ आगे निकल गए हैं. <br />जिस तरह से पानी के स्रोत गायब होते जा रहे हैं, पता नहीं ये बाँध वैसे भी कितने काम आयेंगे. शायद जगूड़ी जी के पास इसका भी कोई जवाब हो?महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-8410249740599168432012-07-23T20:49:06.814+05:302012-07-23T20:49:06.814+05:30जगूड़ी पुराने हरजाई हैँ। उनके माता-पिता ने किसी भव...जगूड़ी पुराने हरजाई हैँ। उनके माता-पिता ने किसी भविष्यदर्शी के कहने पर ही उनका नाम लीलाधर रखा होगा। जब जब किसी ने जगूड़ी जी से उम्मीदें बाँधी कि उनके पद्मश्रीमुख से कोई जनहित की बात निकलेगी, तब तब जगूड़ी ने अपना मलद्वार ही खोल दिया। उनके कुकृत्यों की दुर्गंध दूर तक और देर तक बनी रहती है - उनके कवि मित्र प्रायः उनकी हरकतों पर लज्जा में डूबे पाये जाते हैं। चूँकि उन्होंने अपनी प्रतिभा कविता से ज़्यादा दलाली और चापलूसी में खर्च की है इसलिए नाराज मित्रों को साधना भि जानते हैं। अब लीलाधर फिर से किसी बोली लगाने वाले की तलाश में हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-63433050319242305022012-07-23T12:16:27.001+05:302012-07-23T12:16:27.001+05:30श्री मोहन श्रोत्रिय ने फेसबुक पर कहा- "दुनि...श्री मोहन श्रोत्रिय ने फेसबुक पर कहा- "दुनिया की कोई भी जलविद्युत परियोजना ऐसी नहीं है जो रोजगार पैदा करती हो। इस तरह की परियोजनायें ठेकेदार और दलाल तो पैदा करती हैं लेकिन रोटी पैदा नहीं करतीं। हर परियोजना पर्यावरणीय विनाश के साथ विस्थापन और पलायन लाती है। यही वजह है कि दुनिया के तमाम देश अपने यहां बने बांधों को तोड़ रहे हैं। वे अपने यहां ऊर्जा के नए स्रोत तलाश रहे हैं।" लीलाधर जगूड़ी की लीलाओं को अच्छे से उधेडा है.Ek ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-47599643070294737042012-07-23T11:00:50.688+05:302012-07-23T11:00:50.688+05:30"दुनिया की कोई भी जलविद्युत परियोजना ऐसी नहीं..."दुनिया की कोई भी जलविद्युत परियोजना ऐसी नहीं है जो रोजगार पैदा करती हो। इस तरह की परियोजनायें ठेकेदार और दलाल तो पैदा करती हैं लेकिन रोटी पैदा नहीं करतीं। हर परियोजना पर्यावरणीय विनाश के साथ विस्थापन और पलायन लाती है। यही वजह है कि दुनिया के तमाम देश अपने यहां बने बांधों को तोड़ रहे हैं। वे अपने यहां ऊर्जा के नए स्रोत तलाश रहे हैं।" लीलाधर जगूड़ी की लीलाओं को अच्छे से उधेडा है.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-30344918612606436372012-07-23T10:29:25.923+05:302012-07-23T10:29:25.923+05:30Bahut zaroorii aur mehnat se likhi post. Leeladhar...Bahut zaroorii aur mehnat se likhi post. Leeladhar jii kii leela par mujhe bhii hairaanii hotii hai, dukh bhii..स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.com