tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post5154812009666561698..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: दो अमरीकी कविताएँEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-54574230932665139272011-11-30T21:34:38.292+05:302011-11-30T21:34:38.292+05:30पहले मैं सोच रही थी, क्या मैं वो आदमी हूं, समंदर क...पहले मैं सोच रही थी, क्या मैं वो आदमी हूं, समंदर किनारे बैठा हुआ, फिर कविता के आखिर में पहुंचकर सोचा, क्या मैं वो कुत्ता हूं, अपने मालिक को सैर कराता हुआ....हा-हा<br /><br />कविता बहुत अच्छी है।वर्षाhttps://www.blogger.com/profile/01287301277886608962noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-22909309600768339352011-11-20T17:42:50.157+05:302011-11-20T17:42:50.157+05:30बढ़िया सैणी साब.... बहुत बढ़िया.... हम भी जिंदा ह...बढ़िया सैणी साब.... बहुत बढ़िया.... हम भी जिंदा हैं भौंक कर ही.... हालांकि हमारे वक्त में और हमारी जगह में रोने को भी विद्रोह मान लिया जाता है...सोतड़ूhttps://www.blogger.com/profile/17684686105765463995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-74439753887405796162011-11-20T06:45:40.112+05:302011-11-20T06:45:40.112+05:30कुत्ता सूँघ लेता हैकुत्ता सूँघ लेता हैअजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.com