tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post6454109576696791943..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: आपकी पॉलिटिक्स क्या है, कॉमरेड?Ek ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-1441388448707449422009-02-20T10:36:00.000+05:302009-02-20T10:36:00.000+05:30इस मुद्दे पर अरुण आदित्य का प्रश्न सही है। विचारधा...इस मुद्दे पर अरुण आदित्य का प्रश्न सही है। विचारधारा का अंत न सिर्फ राजनीति बल्कि साहित्य-समाज में भी हो चुका है। जिस विचार को हम या वो लेकर चल रहे हैं वो बाजार से प्रभावित है।<BR/>वैसे इस खबर को मैंने दो-तीन दिन हुए जनसत्ता में पढ़ लिया था। मार्क्सवादी हर कहीं और हर किसी से हाथ मिला सकते हैं। उनका मार्क्सवाद समाजवाद से अलग अपने-अपने हित साधने का माध्यम भर है।<BR/>बहरहाल, इस खबर को यहां देने के लिए बधाई।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-21989262686911570982009-02-19T18:37:00.000+05:302009-02-19T18:37:00.000+05:30धीरेश भाई, करात की पॉलिटिक्स तो दशकों पहले तय हो ...धीरेश भाई, करात की पॉलिटिक्स तो दशकों पहले तय हो चुकी है। सबसे पहले 1948 में तेलंगाना-पुनप्रा-वायलार के किसानों ने बगावत कर दी थी, तत्कालीन सीपीआई की जिला कमेटी इसे नेतृत्व दे रही थीं। लेकिन कायर केंद्रीय नेतृत्व ने हजारों किसानों से गद्दारी करके उनसे नाता तोड़ लिया। वहां हजारों किसानों का कत्लेआम हुआ। 1956 में अमृतसर अधिवेशन में सीपीआई ने बकायदा ऑन पेपर क्रान्ति से अपना रिश्ता खत्म कर लिया था। 1976-77 में बंगाल में किसानों-मजदूरों-छात्रों के कत्लेआम में सबसे बड़ा हाथ सीपीएम का था। दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास से लोग अभी भी परिचित नहीं हैं और सहज क्रान्तिकारी और वर्ग भावना से एक नकली लाल झंडे के प्रति सहानुभूति रखते हैं। इस भ्रम से जितना जल्दी छुटकारा पा लिया जाए अच्छा है। तमाम सरकारी कम्युनिस्ट जनता के लिए सिर्फ आस्तीन के सांप हैं<BR/>। इसलिए अब नये क्रान्तिकारी विकल्प के बारे में सोचना-समझना शुरू कर देना चाहिए।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-45176277259009460812009-02-19T18:02:00.000+05:302009-02-19T18:02:00.000+05:30समय आ नहीं गया है, विचारधाराओं का अंत कब का हो चुक...समय आ नहीं गया है, विचारधाराओं का अंत कब का हो चुका है अरुण जी, भारतीय राजनीति में. यह उसी दिन हो गया था जिस ख़ुद को मार्क्सवादी कहने वाले सन्सद के को<BR/>ठे पर चढे.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-37332036701035308502009-02-19T17:56:00.000+05:302009-02-19T17:56:00.000+05:30क्या सचमुच विचारधाराओं के अंत का समय आ गया है?क्या सचमुच विचारधाराओं के अंत का समय आ गया है?Arun Adityahttps://www.blogger.com/profile/11120845910831679889noreply@blogger.com