tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post8322961651361344697..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: कबीर और नागार्जुनEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-38297703137843389882010-07-14T14:52:12.958+05:302010-07-14T14:52:12.958+05:30सुन्दर तुलनात्मक अध्ययन।सुन्दर तुलनात्मक अध्ययन।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-78697530669991594372010-07-02T13:11:27.599+05:302010-07-02T13:11:27.599+05:30आपने बेहतरीन तुलना की है। इस तरह से हम एक काव्य-पर...आपने बेहतरीन तुलना की है। इस तरह से हम एक काव्य-परंपरा को रेखांकित कर सकते हैं। जहां तक मुझे याद है सबसे पहले नामवर सिंह ने नागार्जुन को आधुनिक कबीर कहा था।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-90800780824237312542010-06-28T10:03:33.561+05:302010-06-28T10:03:33.561+05:30ज़रूरी पोस्ट
शायद बाबा अपनी ज़िम्मेदारी प्रत्यक्...ज़रूरी पोस्ट<br /><br /><br />शायद बाबा अपनी ज़िम्मेदारी प्रत्यक्ष लड़ाई में ज़्यादा देखते थे अजेय भाई इसीलिये ऐसा था। फिर सबकी अपनी क्षमता होती है…कोई किसी का प्रतिरूप नहीं होता तो बन्दे ने जो किया उस पर बात ज़्यादा महत्वपूर्ण है…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-32252313047641319252010-06-27T10:11:18.573+05:302010-06-27T10:11:18.573+05:30लेकिन कुछ तो ज़रूर् था जो बाबा नागार्जुन को "...लेकिन कुछ तो ज़रूर् था जो बाबा नागार्जुन को "झीनी चदरिया" जैसी गहरी चीज़ लिखने से रोकता रहा......अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-30779734248459409942010-06-27T09:07:24.908+05:302010-06-27T09:07:24.908+05:30जनपक्षधरता लोक परपराओं के ही निकट लाती है...
अच्छा...जनपक्षधरता लोक परपराओं के ही निकट लाती है...<br />अच्छा लगा...<br />और बाबा की यह रचना भी...<br />कभी हम इस पर एक पोस्टर बनाए थे...<br /><br /><b>जले ठूंठ पर बैठ कर गई कोकिला कूक<br />बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक</b>रवि कुमार, रावतभाटाhttp://ravikumarswarnkar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-36624099620846437242010-06-26T21:53:56.354+05:302010-06-26T21:53:56.354+05:30कबीर और नागार्जुन की यह तुलना काफी दिलचस्प है। आपक...कबीर और नागार्जुन की यह तुलना काफी दिलचस्प है। आपकी यह टिप्पणी शायद यह किसी बहस को जन्म दे... एक सार्थक बहस इस विषय पर जरूरी भी लगती है।परमेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07894578838946949457noreply@blogger.com