tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post1883223811773188172..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: व्यथा के भार से थका नागरिक (रघुवीर सहाय पर मनमोहन) अंतिम किस्तEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-77740730187468497062009-12-16T19:29:33.004+05:302009-12-16T19:29:33.004+05:30मै रंगनाथ से सहमत हूं।
रघुवीर सहाय की पूरी कविता ...मै रंगनाथ से सहमत हूं।<br /><br />रघुवीर सहाय की पूरी कविता दृष्टि मुझे एक असहायता बोध से ग्रस्त लगती है। जहां कविता समकालीन संघर्षों से नज़र चुराकर बस अपनी खोल में सिमटी शिकायत सी करती रहती है। उनकी भाषा और शिल्प ने बाद में प्रगतिशील-जनवादी कविओं को काफ़ी प्रभावित किया और यह इस बात का भी द्योतक था कि बाद के दौर कि कविता भी बस शिकवे-शिकायत या भद्रलोक के जनतांत्रिक मनुष्य की उकताहट को ही शब्द देती रही।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-80180931439435080672009-12-16T14:38:05.149+05:302009-12-16T14:38:05.149+05:30साहित्य इतिहास के मानचित्र पर दो बिन्दु चिन्हित कर...साहित्य इतिहास के मानचित्र पर दो बिन्दु चिन्हित करके उन्हें सीधी रेखा से जोड़ देने की कवायद नामवर सिंह ने शुरू की थी। खैर मनमोहन ने रघुवीर को मुक्तिबोध से जोड़ा है। नामवर जी तो आधुनिक कवियों को सीधे तुलसी या कबीर से जोड़ देते हैं। बीच का काव्य-इतिहास घलुआ समझो। नामवर जी की शैली का प्रभाव हम सब पर पड़ा है। जाने-अनजाने हम सब नामवर जी द्वारा प्रचलित किए गए स्थापत्य की जद में आ जाते हैं। काव्य-इतिहास के इतर दो कवियों में काव्य-कर्म की साम्यता को आधार बनाया जाए तो भी रघुवीर सहाय को सीधे-सीधे मुक्तिबोध से नहीं जोड़ा जा सकता। क्या हम भूल सकते हैं कि रघुवीर सहाय अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक भद्र कवि हैं। यह भद्रता मध्यवर्गीय संस्कारों को संरक्षित रखते हुए असहमति जताती है। रघुवीर सहाय मेरे प्रिय कवि रहे हैं। शायद समूचे मध्यवर्ग के प्रिय कवि रहे हैं। और शायद यही कारण हैं कि नामवर ंिसंह जैसे आलोचकों को राजकमल चैधरी और अन्य बिदकाते हैं। जबकि सहाय सुहाते हैं। कई लोगों को रघुवीर सहाय की कविता भयानक खबर की कविता लगती है। ऐसी खबर जो स़ड़क से चलकर वाया अखबार संसद तक का सफर तय करती है। और संसद में ही अपना दम तोड़ देती है। ऐसी खबर की पुष्टि रामदास जैसी अदभूत कविताओं द्वारा होती है। लेकिन संसद की जो समझ धूमिल को संसद से सड़क तक या फिर सुदामा पाण्डे का जनतंत्र में थी वह समझ रघुवीर सहाय के यहाँ नागरिक बोध में दब जाती है। किसी कवि का समेकित मूल्याकंन करने के लिए हम उसकी सिर्फ दो-चार कविताओं को आधार नहीं बना सकते। हमें उसे उसके आदि से अंत तक देखना होगा। मनमोहन ने इस लेख का शीर्षक सर्वाधिक अर्थप्रद रखा है। व्यथा के बोझ से दबा हुआ नागरिक-रघुवीर सहाय। यही सहाय की कविता की सीमा भी थी। नागरिक बोध के अंदर रह कर पनपने वाली परिवर्तनकामी भावना व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की अकाँक्षा रखने वाली भावना से कोई साम्य नहीं रखती। इसी ब्लाग पर प्रणय कृष्ण के नक्सलबाड़ी के संदर्भ में लिखे लेख में कई कविताओं के उद्धरण दिए गए हैं। उन टुकड़ों को सामने रख कर देखने से स्पष्ट होगा कि अपने समय के गवाह रहे दो कवियों के काव्य-अनुभवों में क्या फर्क है। निश्चय ही मैंने यहाँ विस्तार से अपनी बात नहीं रखी है। कारण आप सब समझ सकते हैं। कवितामय होते साहित्यजगत को देखकर कहना चाहुँगा कि कविता लिख कर रिक्त स्थानों को भरने के दायित्व से बचा जा सकता है। गद्य आपको यह अनुमति नहीं देता। रघुवीर सहाय को इस बात को एहसास था कि जहाँ बहुत अधिक कला हो वहाँ परिवर्तन की गुजांइश उतनी ही कम होती है। काव्य-कला के सिद्धों के लिए रघुवीर सहाय को इस संदर्भ में याद रखना चाहिए।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-54032569835934759452009-12-16T00:20:58.809+05:302009-12-16T00:20:58.809+05:30महत्वपूर्ण आलेख। पिछली कड़ियां पढ़नी होंगी। फिर लौ...महत्वपूर्ण आलेख। पिछली कड़ियां पढ़नी होंगी। फिर लौटता हूं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-75080483297537013532009-12-15T22:23:08.273+05:302009-12-15T22:23:08.273+05:30"शायद फासिस्ट घेराबंदी में जाता हुआ वह हमारा..."शायद फासिस्ट घेराबंदी में जाता हुआ वह हमारा अपना ही वक़्त था"<br />रघुवीर सहाय पर मनमोहन सिंह , प्रस्तुति के लिए आपका हार्दिक आभार !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-5086791395184307462009-12-15T19:51:37.125+05:302009-12-15T19:51:37.125+05:30अक्सर अच्छी चीजों पर टिप्पणी देना मेरे लिये मुश्कि...अक्सर अच्छी चीजों पर टिप्पणी देना मेरे लिये मुश्किल होता है। रघुवीर सहाय की कविताओं की संग्रह की एक किताब मेरे पास है, तो पढ़ी हैं, कुछ हमेशा ज़ेहन में रहती हैं। मनमोहन की कविताएं-लेख भी आपके द्वारा पढ़े हैं। यहां दोनों का संगम है।वर्षाhttps://www.blogger.com/profile/01287301277886608962noreply@blogger.com