tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post4725201919735924954..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: `लेकिन वे बड़े कवि हैं`Ek ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-11064078127336780992010-07-31T20:07:59.112+05:302010-07-31T20:07:59.112+05:30bhai sahab,in BARE ADMIYO,bare kaviyon par lanat b...bhai sahab,in BARE ADMIYO,bare kaviyon par lanat bhejiye.ye sarvasattavadi hain,ya to inki chaplusi kariye,ya ye apake achhe kamo ko bhi tabah kar denge.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/06904144392966658347noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-6592837218625641662010-07-31T20:07:53.589+05:302010-07-31T20:07:53.589+05:30bhai sahab,in BARE ADMIYO,bare kaviyon par lanat b...bhai sahab,in BARE ADMIYO,bare kaviyon par lanat bhejiye.ye sarvasattavadi hain,ya to inki chaplusi kariye,ya ye apake achhe kamo ko bhi tabah kar denge.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/06904144392966658347noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-90593461234137074792010-07-28T10:37:03.099+05:302010-07-28T10:37:03.099+05:30मैं नहीं समझता की इस टिप्पणी का मकसद व्यक्तिविशेष...मैं नहीं समझता की इस टिप्पणी का मकसद व्यक्तिविशेष पर व्यकतिगत कारणों से निशाना साधना है. विष्णुजी हिंदी समाज के लोकवृत्त में हैं , उनका लिखा पढ़ा सार्वजनिक बहस के दायरे में कैसे नहीं आयेगा. गौरतलब यह है कि इरानी फिल्मकार पर लिखते हुए विष्णु जी को हिंदी प्रदेश के उन सिनेआन्दोलनकारियों पर ऐसी अपमानजनक टिप्पणी क्यों करनी चाहिए , जो एक जिद के तहत , संकल्प पूर्वक सरकारी/ गैरसरकारी प्रतिष्ठानों के प्रलोभन को जूते की नोक पर रखते हुए , केवल दर्शकों के चंदे से अपनी फटी झोलियों के बल पर प्रतिरोध के सिनेमा का एक जन आन्दोलन खडा करने में जुटे है और गोरखपुर जैसे शहरों में साम्प्रदायिकता के जोगियों और नाथों से सीधा मुकाबला कर रहें हैं. क्या इस टिप्पणी को उनकी व्यक्तिगत कुंठा समझ कर भुला देना चाहिए ?क्या यह संयोग मात्र है ki ek or उन की कलम से हुसैन के उत्पीड़कों के लिए आस्थावादी सफाई पेश की जाती है और दूसरी और ठीक उन्ही उत्पीड़कों से जमीनी स्तर पर लोहा लेने वाले फटी झोलियों वाले संस्कृतकर्मियों को अपमानित किया जाता है?आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-77408511975497823632010-07-28T10:36:34.808+05:302010-07-28T10:36:34.808+05:30This comment has been removed by the author.आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-32409497663358160642010-07-28T10:18:30.455+05:302010-07-28T10:18:30.455+05:30बल्कि आदमी के *बड-अप्पन* के साथ साथ उस की जवाबदेही...बल्कि आदमी के *बड-अप्पन* के साथ साथ उस की जवाबदेही भी बढ़ती जाती है. वह झोले वाला चाहे कोई भी हो, खरे जी ने ऐसा नीयतन लिखा है तो मामला खतर्नाक है. सन्दर्भ जान कर फिर यहाँ लौटूँगा.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-64998283395621193982010-07-28T00:11:37.684+05:302010-07-28T00:11:37.684+05:30apporv se sahmatapporv se sahmatAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-44516915882558690142010-07-27T20:15:59.485+05:302010-07-27T20:15:59.485+05:30उपरोक्त लेख मैने भी कुछ समय पहले ’सबद’ पर पढ़ा था.....उपरोक्त लेख मैने भी कुछ समय पहले ’सबद’ पर पढ़ा था..और इन पंक्तियों मे प्रयुक्त भाषा पर मुझे भी कड़ा ऐतराज है..भले ही मै कोई समारोह-निर्देशक या सिनेमा आदि से तअल्लुक नही रखता हूँ..यही नही ईरानी सिनेमा के वर्तमान के जिन संदर्भों मे यह बात कही गयी है वह मुझे (अपनी अल्पज्ञता के आधार पर) अधूरी जानकारियों से निःसृत एक पूर्वाग्रहपूर्ण सोच का प्रतीक लगती है..यदि इस आरोप-प्रत्यारोप को हम व्यक्तिगत स्तर पर न ले जायें..तो ’फटीचर झोलों’, ’कुकुरमुत्तों’ या ’पाइरेटेड सीडियों’ के रूपकों के सहारे एक ’वर्ग-रचना’ मे से झाँकते संदिग्ध मंतव्यों पर स्वयं लेखक की अपनी सदाशयता को भी अफ़सोस होना चाहिये..मगर मै कहूँगा कि यहाँ पर ’प्रवृत्ति’ के बजाय ’व्यक्ति’ पर निशाना साधना भी बात को नकारात्मक दिशा मे ले जाना ही है..किसी कवि/समीक्षक के ’बड़े’ और ’विस्फोटक’ होने के बहाने उसके पिछले बहीखातों का हिसाब पलटना बहस को एक व्यक्तिगत और नकारात्मक स्तर देना होगा..वैसे भी बड़ा होना जबावदेही से परे होना नही होता..उन्हे अपनी इन पंक्तियों के मंतव्य को स्पष्ट करना ही चाहिये..फ़ोकस ’सोच’ पर रहे न कि व्यक्ति की जन्मकुंडली पर तो शायद बात को एक अधिक तार्किक और सकारात्मक दिशा मिले...अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-53634715881046114192010-07-27T20:13:22.066+05:302010-07-27T20:13:22.066+05:30विष्णु खरे के तईं एक शिकायत इस लेख में भी कहीं हैं...विष्णु खरे के तईं एक शिकायत <a href="http://www.srijangatha.com/Aalekh-14May_2k10" rel="nofollow">इस लेख</a> में भी कहीं हैं।सोनूhttps://www.blogger.com/profile/15174056220932402176noreply@blogger.com