tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post6029798435036656114..comments2023-11-26T14:07:01.592+05:30Comments on एक ज़िद्दी धुन: कार्टून विवादः एक मानवीय अवलोकन : लाल्टूEk ziddi dhunhttp://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-7234769468668441622012-05-23T16:02:35.822+05:302012-05-23T16:02:35.822+05:30कई ऐसे कम्यूनिस्ट संगठन हैं जो अपनी पूँजी गरीब-गुर...कई ऐसे कम्यूनिस्ट संगठन हैं जो अपनी पूँजी गरीब-गुरबों (दलित,आदिवासी,पिछडों) से जुटाते हैं. किताबें छापने और बेचने का धंधा करते हैं. रिजर्वेशन पाए दलितों को अपराधबोध से ग्रस्त रखते हुए क्रांति के नाम पर उनका इस्तेमाल करते हैं. होलटाइमर के लिए तमाम सुविधाएं छोटी-मोटी नौकरियाँ करने वाले दलित जुटाते हैं. होलटाइमर मध्यमवर्गीय सुविधाओं के साथ बौद्धिक कार्य(अध्ययन,लेखन,अनुवाद,तर्क-वितर्क,भाषणबाजी आदि) करते हैं. अन्य साथियों (दलित,आदिवासी,पिछडों) को भी नारा लगाना,गाने गाना,थोडा बहुत पढ़ना,लिखना,बोलना सिखाया जाता हैं. संगठन के सिद्धांतकार प्राय: ब्राह्मण या सवर्ण जातियों के लोग होते हैं. ये अपने सिद्धांतों और रणनीति में ब्राह्मणवादी स्थापनाओं से मुक्त नहीं हो पाते, क्योंकि संगठन में इनकी आलोचना करने वाले प्रभावी लोग नहीं होते. संगठन के दलित साथिओं को ऐसे काम में उलझा कर रखा जाता है जिसकी वजह से इनकी स्वतंत्र बौद्धिक चेतना का विकास नहीं हो पाता. दलित साथी नौकरी व बाल-बच्चों की जिम्मेदारियों के साथ सांगठनिक कार्य करते हुए मीडियाकर, पिछलग्गू व हाँ में हाँ मिलाने वाले के तौर पर विकसित होते हैं. कभी-कभार ये थोड़ा बहुत बोलते हैं तो इन्हें कमजर्फ़ कह इनकी खिल्ली उड़ाई जाती है. कई स्वतंत्र बौद्धिक चेतना वाले दलित महत्वाकांक्षी होते हैं. चूँकि संगठन में तो इनकी चल नहीं पाती अत: ये प्रशासनिक सेवाओं आदि के सपने को पूरा करने में जुट जाते हैं, ताकि कम से कम अपने निजी जीवन को तो बदला जा सके.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-71359792590159994212012-05-23T15:27:40.806+05:302012-05-23T15:27:40.806+05:30कार्टून विवाद पर इससे बेहतर और सारगर्भित टिप्पणी अ...कार्टून विवाद पर इससे बेहतर और सारगर्भित टिप्पणी अभी तक नजर से गुज़री नहीं. और तर्क, बस यह कहूँ कि एक लेख लिख रहा था और आपने मेरे जेहन वाले सारे तर्क यहाँ पहले ही लिख दिये हैं. तो अब मेरे लेख की जरूरत बची ही नहीं, इसलिए अब यह लेख साभार साझा कर रहा हूँ.समरhttp://www.mofussilmusings.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-30753175043718329392012-05-18T16:48:11.275+05:302012-05-18T16:48:11.275+05:30कार्टून समर्थकों में एक चीज कॉमन है – प्रत्यक्ष / ...कार्टून समर्थकों में एक चीज कॉमन है – प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष आरक्षण विरोधी मानसिकता !Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-82580505127275620462012-05-16T17:26:01.805+05:302012-05-16T17:26:01.805+05:30नेहरु संविधान जैसी बेजुबान पुस्तक पर चाबुक बरसा रह...नेहरु संविधान जैसी बेजुबान पुस्तक पर चाबुक बरसा रहे हैं. वाह.. क्या वे बेवकूफ हैं, या विद्वान अपनी व्याख्या से हमें बेवकूफ बना रहे हैं. देश में अम्बेडकर की मूर्तियों पर गंदगी फैंकी जाती है वहाँ वे जीवंत रूप से नफरत के केन्द्र में मौजूद होते हैं. न तो वे प्र्श्नेतर हैं न ही जीवित सन्दर्भों से कटे हुए. ब्राह्मण की मोहर के बगैर उनका देवता बनना लगभग असम्भव है. जब अम्बेडकर ही काम में डिले करता है तो उसके अनुयायी तो करेंगे ही. मारो सालों को. यही व्यापक भारतीय समाज के हित में है, और दलितों के भी. अम्बेडकर और आरक्षण व्यवस्था के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विरोधियों के लिए यह जश्न और एकता का समय है. जिस तरह निर्मल बाबा के विरुद्ध सारे पोंगापंथी ब्राह्मणवादी अध्यात्मवादियों ने एकता दिखाई है. इसी तरह की एकता ब्राह्मण बुद्धिजीवी और उनके अविवेकी अनुयायी दिखा रहे हैं. सभी चीजों की मनमानी व्याख्या पर इनका एकाधिकार है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4014735465804187918.post-8994911359679263632012-05-16T17:26:00.989+05:302012-05-16T17:26:00.989+05:30नेहरु संविधान जैसी बेजुबान पुस्तक पर चाबुक बरसा रह...नेहरु संविधान जैसी बेजुबान पुस्तक पर चाबुक बरसा रहे हैं. वाह.. क्या वे बेवकूफ हैं, या विद्वान अपनी व्याख्या से हमें बेवकूफ बना रहे हैं. देश में अम्बेडकर की मूर्तियों पर गंदगी फैंकी जाती है वहाँ वे जीवंत रूप से नफरत के केन्द्र में मौजूद होते हैं. न तो वे प्र्श्नेतर हैं न ही जीवित सन्दर्भों से कटे हुए. ब्राह्मण की मोहर के बगैर उनका देवता बनना लगभग असम्भव है. जब अम्बेडकर ही काम में डिले करता है तो उसके अनुयायी तो करेंगे ही. मारो सालों को. यही व्यापक भारतीय समाज के हित में है, और दलितों के भी. अम्बेडकर और आरक्षण व्यवस्था के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विरोधियों के लिए यह जश्न और एकता का समय है. जिस तरह निर्मल बाबा के विरुद्ध सारे पोंगापंथी ब्राह्मणवादी अध्यात्मवादियों ने एकता दिखाई है. इसी तरह की एकता ब्राह्मण बुद्धिजीवी और उनके अविवेकी अनुयायी दिखा रहे हैं. सभी चीजों की मनमानी व्याख्या पर इनका एकाधिकार है.Anonymousnoreply@blogger.com