हिन्दी साहित्य जगत में इधर कई हलचलें मची हुई हैं. एक लम्बे अरसे के बाद कवि, लेखक और विचारकगण एकजुट होकर दक्षिणपंथी खेमे की बढ़ती हुई महत्वाकांक्षा का मुँहतोड़ जवाब देते दिख रहे हैं. हाल ही गोरखपुर में हिन्दी कहानीकार और कवि उदय प्रकाश द्वारा बदनाम फाशिस्ट योगी आदित्यनाथ के हुज़ूर में उपस्थित होकर "नरेंद्रप्रताप सिंह स्मृति सम्मान" प्राप्त करने की निर्लज्ज करतूत से हिन्दी साहित्य जगत में सनसनी फैल गयी. वरिष्ठ और युवा लेखकों और बुद्धिजीवियों ने एक स्वर से इसकी निंदा की, और निम्नलिखित प्रस्ताव पास किया. प्रस्ताव पढ़कर और हस्ताक्षरकर्ताओं की सूची देखकर ढाढस बंधता है कि अभी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है. आप भी पढ़ें. ('कबाड़खाना' से साभार)
विरोध-पत्र
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हमें इस घटना से गहरा आघात पहुँचा है कि कुछ दिन पहले हिन्दी के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय साहित्यकार उदय प्रकाश ने गोरखपुर में पहला "कुँवर नरेंद्र प्रताप सिंह स्मृति सम्मान" योगी आदित्यनाथ जैसे कट्टर हिन्दुत्ववादी, सामन्ती और साम्प्रदायिक सांसद के हाथों से ग्रहण किया है, जो 'उत्तर प्रदेश को गुजरात बना देना है' जैसे फ़ाशीवादी बयानों के लिए कुख्यात रहे हैं . हम अपने लेखकों से एक ज़िम्मेदार नैतिक आचरण की अपेक्षा रखते हैं और इस घटना के प्रति सख्त-से-सख्त शब्दों में अपनी नाखुशी और विरोध दर्ज करते हैं .
ज्ञानरंजन,
विद्यासागर नौटियाल,
विष्णु खरे,
मैनेजर पाण्डेय,
लीलाधर जगूड़ी,
भगवत रावत,
राजेन्द्र कुमार,
राजेन्द्र राव,
चंचल चौहान,
आनंदस्वरूप वर्मा,
पंकज बिष्ट,
इब्बार रब्बी,
नीलाभ,
वीरेन डंगवाल,
आलोक धन्वा,
मंगलेश डबराल,
त्रिनेत्र जोशी,
मनीषा पाण्डेय,
रविभूषण,
प्रदीप सक्सेना,
अजय सिंह,
जवरीमल्ल पारख,
वाचस्पति,
अतुल शर्मा,
विजय राय,
मनमोहन,
असद ज़ैदी,
मदन कश्यप,
रवीन्द्र त्रिपाठी,
नवीन जोशी,
अजेय कुमार,
वीरेन्द्र यादव,
देवीप्रसाद मिश्र,
कुमार अम्बुज,
कात्यायनी,
निर्मला गर्ग,
अनीता वर्मा,
योगेन्द्र आहूजा,
शुभा,
बोधिसत्व,
संजय खाती,
नवीन कुमार नैथानी,
कृष्णबिहारी,
विनोद श्रीवास्तव,
प्रणय कृष्ण,
राजेश सकलानी,
इरफ़ान,
मुनीश शर्मा,
विजय गौड़,
आशुतोष कुमार,
मनोज सिंह,
सुन्दर चन्द ठाकुर,
नीलेश रघुवंशी,
आर. चेतनक्रान्ति,
पंकज चतुर्वेदी,
शिरीष कुमार मौर्य,
रामाज्ञा शशिधर,
प्रियम अंकित,
अंशुल त्रिपाठी,
प्रेमशंकर,
अशोक कुमार पाण्डेय,
रविकांत,
मृत्युंजय,
धीरेश सैनी,
अनुराग वत्स,
व्योमेश शुक्ल.
आदित्यनाथ की करतूतों को सामने लाने के लिए सुभाष गाताडे ने महत्वपूर्ण काम किया है. उदयप्रकाश द्वारा आदित्यनाथ के हाथों `सम्मानित` होने की खबर सुनकर उन्हें भी गहरा दुःख हुआ और उन्होंने भी इस विरोध में अपना नाम शामिल कराया है.
14 comments:
ham bhii isame shamil hain
लगता है उदयजी ने अपने ख़िलाफ़ हो रही एक बड़ी साजिश के बारे मे जो कहा था वों सच है। नही तो इतने बड़े समूह का एक इतनी सी बात पर "खून का प्यासा" हो जाना कोई साधारण बात नही है। ये जो लिस्ट है, इतने लोगो की उनमे से कौन है जिनके करीबी रिश्तेदार भयंकर रिश्वतखोर नही है, कितने है जो बी जे पी के वोट बैंक है, और कितने है जो अपनी जाती मे भी शादी विवाह के मामले मे गोत्र की सीमा नही लाँघ पाते, क्षेत्र की सीमा नही लाँघ पाते, और जहा भी जैसा साधन मिलता है अपने जुगाड़ फिट कराने की कोशिश मे लगे रहते है। इनकी अपनी इर्ष्या और औसत से नीचे दर्जे की रचनात्मकता का बोध किस कदर एक अच्छे लेखक के ख़िलाफ़ गुस्से मे उबल पडा है। इस बात की शिनाख्त रहेगी ब्लॉग मे।
फिलहाल उदय प्रकाश की हरकत पर तो मेरा विरोध है ही। मगर इस विरोध-पत्र की सूची में जितने भी महान लेखक-साहित्यकार मौजूद हैं जरा वे ही बता दें कि वे स्वयं कितने और कहां तक दूध के धूले हैं। इनमें से अब तक किसने कौन-सा सम्मान-पुरस्कार ठुकराया है। सभी साहित्य के बड़े-बड़े मान-सम्मान-पुरस्कार लिए बैठे हैं। बंधु अगर विरोध कर रहे हो तो जरा एक दफा अपने गिरेबान में भी झांककर देख लो कि तुम क्या और कौन हो।
उदय प्रकाश जी से आग्रह है कि anonymous के भेष में या छद्म नामों से जवाब देना बंद करें. यह सिद्ध किया जा सकता है कि इस ब्लॉग पर और कबाड़खाना ब्लॉग पर अनेक प्रतिक्रियाएँ उन्हों ने ही नाम बदल बदल कर भेजी हैं. उनमें इतना साहस होना चाहिए कि खुलकर अपने नाम से अपने कारनामों का बचाव करें. कम से कम इस ब्लॉग पर फर्जी नामों और फर्जी प्रतिक्रियाओं के लिए स्थान नहीं होना चाहिए. धीरेश इस बात से सहमत होंगे.
अब अंशुमाली रस्तोगी नामक शेयर बाज़ार का एक दलाल मांग कर रहा है कि उदय प्रकाश-आदित्यनाथ प्रकरण में विरोध व्यक्त करने वाले "सभी" साठ-सत्तर रचनाकार उसे अपना अपना चरित्र-प्रमाणपत्र दिखाएं. धीरेश, क्या आपने इस आदमी से कैरेक्टर सर्टिफिकेट के लिए पूछा है?
"कबाड़खाना" वाले अशोक पांडे हथियार डाल गए हैं, उन्होंने पहले तो अपने साथी कबाड़ी पंकज श्रीवास्तव का सहयोग लेकर ब्लॉग पर आदित्यनाथ-उदयप्रकाश एंड कंपनी के विरुद्ध हिन्दी के ५०-६० समर्थ लेखकों और बुद्धिजीवियों का वक्तव्य छापा. फिर वक्तव्य पर होने वाली छींटाकशी और कीचड़-उछाल का मज़ा लेते रहे. अब लगता है कि वह बोर होकर किसी और शगल में लगना चाहते हैं. हिन्दी में ब्लॉग ऐसे ही खिलौनों की तरह है, और ब्लॉग-बाज़ बिगड़े हुए बच्चे जैसे हैं. तुमने लेखकों के मूल्यवान वक्तव्य को अपने मंच पर डालकर कबाड़-गति को प्राप्त होने से बचा लिया.
list lamhi hai hum bhi is mein shamil hain
manmohan ki kavita bahut achhi hai.
manmohan ki kavita bhut achhi hi
anshumal rastogi's comment shows his confuse personality which denies him to take a clear stand.accepting an award is not wrong.what matters is who is sponsering and giving that award.uday prakash's accepting this award is really shameful.
उदय जी और दूसरे लोगों के बारे में अन्शुमाली ने क्या गलत कहा?
Virodh is liye nahi kia ja raha hai ki Udai Prakash ji ne Samman kyon lia ? Virodh ka karan yah hai ki Udai Prakash ji ne ek manav virodi vyakti se na keval samman lia apitu, sanskritik rastravad ki vakalat bhi ki. Karyakram vivaran me Udai Prakash ji ka nam "Udai Prakash Singh" chhapa gaya tha . "singh" wahin kyon uga ?Manch per Udai Prakash ji ke parivar ka koi nahi tha, the to ek vichardhara ke log. Phir Udai Prakash ji ka yeh kahana ki vichardhara se bandhi rachanayen, pathako ke sath nyay nahi karatin, virodh is liye hai.
subhash chandra kushwaha
anshumali rastogi jo kahte hain wah shaitan ke mukh se kuran ki aayaton ki tarah hai.
anshumali rastogi jo kahte hain wah shaitan ke mukh se kuran ki aayaton ki tarah hai.
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