Monday, March 17, 2014

अस्सी के काशीनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी


`धर्म और जाति को अबकी मुझे लगता है कि बनारस की जनता एक ठेंगा दिखाएगी और कहीं न कहीं मोदी के पक्ष में लोग जाएंगे।`-काशीनाथ सिंह

अब इस पंक्ति में कितना भी स्वच्छ और उदार हृदय लगाएं या कितना भी पवित्र या लंपट तर्क करें, क्या यह कहने की कोई गुंजाइश बचती है कि काशीनाथ जनता जैसा सोच रही है, वैसा बता रहे हैं? यहां तो वे सीधे कह रहे हैं कि अबकी बनारस की जनता धर्म और जाति को ठेंगा दिखाकर मोदी के पक्ष में जाएगी। याद रखिए कि वे यह नहीं कह रहे हैं कि जनता धर्म के नाम पर बेवकूफ बनेगी, उसका ध्रुवीकरण होगा। यह पंक्ति तो उन्होंने यह कहते हुए ही कही कि पहले ओटों का ध्रुवीकरण होता था, अबकी मोदी के आने से जनता धर्म और जाति को ठेंगा दिखाएगी। तो मोदी के पक्ष में जाना धर्म के नाम पर हो रही साम्प्रदायिक सियासत को ठेंगा दिखाना हुआ?
बहरहाल, बहुत से साथी मैसेज इनबॉक्स में कह रहे हैं कि बीबीसी का लिंक सुनने में नहीं आ रहा है तो सभी की सुविधा के लिए बीबीसी और काशीनाथ की बातचीत को टाइप करके दे रहा हूं। पढ़िएगा-
बीबीसी- वाराणसी से नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी बनाए जाने के बाद भाजपा के कार्यकर्ताओं में एक नया जोश नज़र आ रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से वाराणसी का महत्व तो है ही, यह शहर एक खास अंदाज के लिए भी जाना जाता है। तो नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी को लेकर एक आम बनारसी क्या सोचता है, इस बारे में मैंने बात की वरिष्ठ साहित्यकार काशीनाथ सिंह से।
काशी- देखिए ऐसा है कि पंड़ित कमलापति त्रिपाठी के बाद जो कांग्रेस के थे, 1970 के बाद इस नगर को ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जो राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय प्रचार दे या इस नगर के प्रचार के लिए कुछ करे। ज्यादातर 1990 के बाद बीजेपी के सांसद रहे हैं और नगर का न तो विकास हो सका है और न इसकी कोई छवि बन सकी है बाहर, देश या विदेश में। जबकि मैंने स्वयं कहा है लिखा है कि यह बिहार और उत्तर प्रदेश का लाइन ऑफ कंट्रोल है, एक केंद्र है जहां से बिहार भी प्रभावित होता है और उत्तर प्रदेश भी प्रभावित होता है। तो इस नगर की एक छवि है वो छवि के नाम पर और राजनीति के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक पहचान के लिए एक छटपटाहट रही है इस नगर में। मोदी बाहरी जरूर हैं, आ रहे हैं लेकिन नगर में ज्यादातर लोगों का सोच ये है के इस बहाने इस नगर को, सिर्फ हिन्दुस्तान का क्या होगा, ये तो बाद की बात है, नगर का विकास होगा।
बीबीसी- जो एक खांटी बनारसी अंदाज जिसकी अक्सर चर्चा होती है, जिसके लिए बनारस जाना जाता है, वहां के लोग, बनारसी लोग क्या मोदी को आत्मसात कर पाएंगे और क्या मोदी खुद बनारस के लोगों से जुड़ पाएंगे, कितनी संभावना आप इसकी देख रहे हैं?
काशी- इसमें एक चीज़ है के बीजेपी का नेटवर्क सारी पार्टियों की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली है, काम करने वाले ज्यादातर, वो आरएसएस के लोग हैं और ये लोग हमारा ख्याल है कि उस स्थिति में मुझे याद आ रहा है बहुत पहले का इतिहास जब रुस्तम सेटिन लड़ते थे सीपीआई से और उनके समानांतर कोई होता था और जो चुनाव होता था, वो बहुत ही कांटे का हुआ करता था, पिछले चालीस वर्षों से ऐसी शख्सियत कोई आई ही नहीं जहां चुनाव कांटे का हो। केवल एक ध्रुवीकरण होता था और हिन्दू वोटों का होता था, मुस्लिम ओटों में से जो लोग लड़ते रहे हैं, वे ज्यादातर माफिया किसिम के लोग हैं, लड़ते रहे हैं, उधर झुकाव नहीं हो सका है, वे जीत नहीं सके। धर्म और जाति को अबकी मुझे लगता है कि बनारस की जनता एक ठेंगा दिखाएगी और कहीं न कहीं मोदी के पक्ष में लोग जाएंगे। गंगा जिस तरह से मैली होती हुई चली जा रही है, नगर जिस तरह से जाम में फंसा हुआ है, जो नगर का विकास ठप है और यहां लोगों के मन में चाह है कि किसी तरह से के इसी बहाने नगर का विकास तो होगा।
बीबीसी- आपने बात की ध्रुवीकरण की, नरेंद्र मोदी की वजह से तो ये आशंका जताई जा रही है, ये बातें हो रही हैं कि पूरे देश में एक तरह से वोटों का ध्रुवीकरण हो रहा है और उस ध्रुवीकरण का केंद्रबिंदु मोदी, वही बनारस से लड़ रहे हैं, तो क्या इस बार आपको नहीं लगता है कि वहां भी मतों का ध्रुवीकरण होगा और बड़े पैमाने पर होगा?
काशी-देखिए, मतों का ध्रुवीकरण तो होगा, इसमें दोराय नहीं है। लेकिन अगर ध्रुवीकरण होगा तो वहां क्योंकि इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भाजपा ने मोदी को बनारस से भेजा है लड़ने के लिए। क्योंकि पूर्वांचल की स्थिति या पश्चिमी बिहार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है, यही सोचकर तो भेजा जा रहा है और मोदी हमारा ख्याल है कि इसमें बहुत कुछ इफेक्टिव हो सकते हैं, उनके काम के हो सकते हैं, सिद्ध हो सकते हैं।
----
हालांकि, इसे सुनने में जो बात है, काशीनाथ और उनकी अपनी काशी, अपनी गंगा, अपनी जनता और अपने विकास के सपने के जो हिलोरें हैं, वे पढ़ने में वैसी कहां!
इस बीच एक शख्स विशाल विक्रम सिंह ने काशीनाथ सिंह से बातचीत करके फेसबुक पर एक पोस्ट लगाई है, उनके मुताबिक काशीनाथ ने कहा, " नरेंद्र मोदी के समर्थन का सवाल ही पैदा नहीं होता। नरेंद्र मोदी घनघोर हिंदुत्ववादी और हिंसक साम्प्रदायिक राजनीति के नायक हैं। वे फासीवादी हैं और तानाशाह भी। उन्होंने गुजरात में जो किया है, भारत उसे कभी भून नहीं सकता। वे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। मैं किसी भी स्थिति में उनके या बीजेपी के समर्थन की कल्पना भी नहीं कर सकता। मुझसे पूछा गया था कि मोदी की उम्मीदवारी पर क्या जनप्रतिक्रिया है? इस प्रश्न के जवाब में मैंने कहा कि जनता यह सोच सकती है कि मोदी भले ही राष्ट्र के लिए खतरनाक हों परन्तु बनारस के विकास के लिए ठीक हो सकते हैं। यह मेरा मत नहीं है। संभावित जन-प्रतिक्रिया हो सकती है। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैंने फासीवादी नरेंद्र मोदी का समर्थन नहीं किया है।"
----
मेरा (धीरेश का) निवेदन- काशीनाथ सिंह, आपने अब मोदी को लेकर जो विचार जताए हैं, बीबीसी के साथ इंटरव्यू में उसकी लेशमात्र परछाई तक नहीं पड़ने दी है। आपने जिस भाव-विह्वलता के साथ जो कुछ बोला है, वह बनारस की आपकी जनता और आपके अपने दिल-दिमाग का अच्छा सा ऐसा सम्मिश्रण है, जहां दोनों को अलग-अलग करना मुमकिन नहीं रह जाता। लेकिन, कोई संदेह की गुंजाइश न रह जाए, इसलिए आप ऐसे स्पष्ट वाक्य भी बोलते हैं, जिनमें तकनीकी रूप से सिर्फ और सिर्फ आपकी ही बात होती है, जनता वहां होती ही नहीं। और जहां आप जन-प्रतिक्रिया मात्र की बात कह रहे हैं, वहां आप एक भी शब्द ऐसा नहीं लगाते कि लगे कि जनता की ऐसी सोच पर आप दुखी हैं या आपको अफसोस है। आप कहीं कोई दुर्भाग्य से या साम्प्रदायिक चालों से जनता ऐसा सोचने लगी है, जैसी कोई बात नहीं करते। और जनता तो वह आपके लिए सिर्फ हिंन्दू संघ समर्थक जनता है। आप बनारस के मुसलमानों और कम ही सही दूसरी पार्टियों के मतदाताओं और बिल्कुल कम ही सही सेक्युलर लोगों को भी बनारस की अपनी मोदी समर्थक जनता में ही शामिल करके बोलते चले जाते हैं। और अंततः आप कह देते हैं कि पहले ध्रुवीरण होता था मगर इस बार धर्म और जाति को ठेंगा दिखाकर बनारस की जनता मोदी के पक्ष में जाएगी। यह महान वाक्य आपकी राय में क्या है?
और जहां तक मुस्लिम माफिया उम्मीदवारों का जिक्र आपने किया तो ज्यादा बहस किए बिना मेरा अनुरोध है कि यदि मुख्तार अंसारी के बजाय वहां से शबनम हाशमी या शबाना आजमी या कोई `भला-शरीफ` मुसलमान उम्मीदवार होता तो उसकी तरफ `आपका और जनता का` झुकाव होता और वे जीत जाते। और क्या कत्लोगारत करने और संविधान की धज्जियां उड़ाकर देश के लिए खतरा बने बीजेपी के लोग आपके तईं शरीफ-भले लोग होते हैं। मोदी किस श्रेणी में हैं, क्या उनका समर्थन उनकी शराफत और विकास के सपने की वजह से है या मुसलमानों को ठिकाने लगाने के उनके कारनामों की वजह से? आपने मोदी के जो गुण अब बताए हैं, बीबीसी से बातचीत में उनका जरा भी जिक्र करना आप भूल गए हैं। लेकिन, आपने अब उन्हेें फासीवादी, तानाशाह वगैरा जो कहा है, उसका मैं फिर भी स्वागत करता हूं और उम्मीद करता हूं कि आप लीपापोती के बजाय कहेंगे कि बीबीसी पर मैंने जो बोला, वह निंदनीय था, मैं गलती मानता हूं। आखिर मैं भी इसी जहरीली होती जा रही आबोहवा में सांस लेने वाला प्राणी हूं।
----
https://archive.org/embed/KashinathSinghInFavourOfNarendraModi
So called leftist writer Kashinath Singh, who belongs to dominant upper caste, from Banaras speaking in favor of...
INTERNET ARCHIVE

5 comments:

SRSHANKAR said...

काशी जी ने जो भी बोला वही सच है , और काशी की जनता की सोच भी यही है , फिर क्शी क् भला भी इसी मे है ।आखिर मोदी काशी का विकास करके उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कराते हैं तो उनके साथ खड़े होने मे बुराई क्या है ।कोरे सिद्धांत बांझ सिद्ध हो तो फलदायी पेड़ लगाने मे देर नहीं करनी चाहिए ।

हिन्दीवाणी said...

आपने एक बड़े हिंदी लेखक का भंडाफोड़ किया है...मेरी बधाई स्वीकार करें। लगता है काशीनाथ सिंह की नजर साहित्य का भारत रत्न पाने के प्रयास पर लगी हुई है...क्या पता कि मोदीमय भारत में उनको भारत रत्न मिल जाए...

Ek ziddi dhun said...

कवि-मित्र अजेय जो इसी नाम से ब्लॉग भी चलाते हैं कि यह टिपण्णी मेल से मिली है। तकनीकी कारणों से वे इसे यहां नहीं लिख पा रहे थे-
`कभी कभी ऐसा होता धीरेश भाई कि हम कुछ उधार के विचारों को ओढ़ने लगते हैं । माने धारण करने लगते हैं । क्यों कि इस के कुछ फायदे होते हैं । और लोगों को उल्लू बनाते बनाते खुश फहमी पाल लेते हैं कि हम सच में उस विचारधारा के पोषक पालक संरक्षक वगैरह हैं । अर्थात मालिक हैं । इसी को धारणा कहते हैं शायद । जो कि विचार नहीं है । जो भी हो मैं संस्कृत अच्छे से नहीं जानता । But you cant fool all the people all the Times तुम जैसे ताडने वाले हमारे अन्दर के द्वैत को पकड लेते हैं । एक सत्त से लबरेज़ इनसान की नज़र से कुछ भी बच नहीं सकता । वह परतों के भीतर देख लेता है । आप ने काशी नाथ जी को अच्छा पकड़ा है . हमारी भाषा में ऐसे कई और ‘विचारधारक’ मिल जाएंगे । देखते जाओ और पकडते जाओ इन्हे । उम्र के इस कगार पे भी चेतना लौटे तो बुरा नहीं है । आदमी आखिर आदमी है जितना भी बड़ा सिद्ध पुरुष क्यों न हो , उस के लौट आने की संभावना बनी रहती है । तुम्हारे टोकने से लोग जागे रहें --- यही असल आलोचना कर्म है| दोस्त मैं भी तुम्हारे टोकने के जद में रहना चाहता हू । निन्दक नियरे राखिए । ऐसे दोस्त का मुझे क्या करना है जो मेरी निन्दा न सुन पाता हो । वो मुझे झाड पर ही चढ़ा रखेगा । इस पोस्ट ने मुझे अपने अन्दर टटोलने के लिए प्रेरित किया , आभार ।
“कब तक टालते रहोगे
एक दिन आना ही होगा तुम्हें
आग के इलाके में
जहाँ जल जाता है वह सब जो तुमने ओढ़ रखा है
और जो नंगा हो जाने की जगह है
जहाँ से बच निकलने का कोई चोर-दरवाज़ा नहीं है”

और:

“आग को आग मानने
और उसे आग कह देने भर से
खत्म नहीं हो जाती बात

आग तो होना पड़ता है”
`

shamim ahmed said...

अगर इंसान का पक्ष स्पष्ट है तो ऐसी स्थिति पैदा नही होती कि लोग व्यक्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाये. शरूआत में काशी जी ने मोदी जी का वेलकम नही किया था लेकिन अब वे साम्प्रदायिकता के विरोधी होने का बोझ और ज्यादा ढोने से मुक्त हो चले है. इतने सालों में 7 से ऊपर साल के दौरान फिर कभी उनके मुंह से साम्प्रदायिकता विरोध का एक भी बयान नही आया जो बताता है कि वे वही है जिनके बारे में कहा जाता है कि अंतिम समय मे इंसान अपनी उन्ही जड़ो के बचाव में खड़ा हो जाता है जिनके विरुद्ध जीवन भर उसने संघर्ष किया. काशी जी को अधोगति की ढेरों मुबारकबाद.

shamim ahmed said...

अगर इंसान का पक्ष स्पष्ट है तो ऐसी स्थिति पैदा नही होती कि लोग व्यक्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाये. शरूआत में काशी जी ने मोदी जी का वेलकम नही किया था लेकिन अब वे साम्प्रदायिकता के विरोधी होने का बोझ और ज्यादा ढोने से मुक्त हो चले है. इतने सालों में 7 से ऊपर साल के दौरान फिर कभी उनके मुंह से साम्प्रदायिकता विरोध का एक भी बयान नही आया जो बताता है कि वे वही है जिनके बारे में कहा जाता है कि अंतिम समय मे इंसान अपनी उन्ही जड़ो के बचाव में खड़ा हो जाता है जिनके विरुद्ध जीवन भर उसने संघर्ष किया. काशी जी को अधोगति की ढेरों मुबारकबाद.