एक ज़िद्दी धुन
जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद / वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद
Saturday, December 31, 2011
रघुवीर सहाय की एक कविता
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औरत की ज़िंदगी ------------------- कई कोठरियाँ थीं कतार में उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया ...
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Friday, December 16, 2011
शिवांजलि की कवितायें
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कंडीशंस अप्लाई --------------------- अब भी चौराहों पर बालक खड़े हैं भूखे अब भी घूंघट में मुखड़ा छिपाये पनिहारिनें दूर तक जाती हैं ...
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Friday, November 25, 2011
टीवी आत्मनियमन के सवाल : शिवप्रसाद जोशी
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मार्कंडेय काटजू ने मीडिया से जुड़ी कमोबेश उसी क़िस्म की विचलित कर देने वाली बहस शुरू की है जो बड़े फलक पर और व्यापक कथित लोकतंत्रीय राजनीत...
Friday, November 18, 2011
दो अमरीकी कविताएँ
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अभी नहीं ज़रा धीरे, उन्होंने कहा. इतनी जल्दी भी नहीं, वे बोले. अभी नहीं. इंतज़ार करो. हम आपसे सहमत हैं, उन्होंने कहा, पर यह ठीक वक़्त...
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Wednesday, October 5, 2011
संजीव भट्ट को सलाम
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गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने `सद्भावना उपवास` के बाद आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को गिरफ्तार कराकर अपनी सद्भावना की असलियत पेश कर...
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Saturday, September 17, 2011
मोदी और मीडिया
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पेड न्यूज़, कॉर्पोरेट की दलाली और दूसरे गोरखधंधों की कालिख से सना मीडिया बेशर्मी के नित नये आयाम स्थापित कर रहा है. अन्ना का उपवास प्रायोजि...
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Sunday, June 19, 2011
बनी रहेगी हुसेन के निर्वासन की टीस : धर्मेंद्र सुशांत
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मकबूल फिदा हुसेन नहीं रहे। देश से बाहर, लंदन में 9 जून 2011 को उन्होंने अंतिम सांस ली; इस समय वह भारत में नहीं थे, बल्कि एक आत्मनिर्वासित जि...
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