एक ज़िद्दी धुन
जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद / वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद
Wednesday, September 14, 2022
यहाँ मेरा घर बन रहा है (मोहन मुक्त के कविता संग्रहः “हिमालय दलित है” पर कुछ नोट्स) : शिवप्रसाद जोशी
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वो तुम थे एक साधारण मनुष्य को सताने वाले अपने अपराध पर हँसे ठठाकर, और अपने आसपास जमा रखा मूर्खों का झुंड अच्छाई को बुराई से मिलाने के लिए...
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Sunday, May 15, 2022
एक सुबुक आवाज़ की फैलती स्याही
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(अदनान कफ़ील दरवेश की कविताओं पर कुछ बातें) शिवप्रसाद जोशी XV We, the mortals, touch the metals, the wind, the ocean shores, the ...
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