एक ज़िद्दी धुन

जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद / वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद

Wednesday, April 18, 2012

सेंडी याने संदीप राम - अच्युतानंद मिश्र

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उदासी वहाँ दबे पांव रोज आती देर रात शराब की मद्धिम रौशनी में वे उसे खाली ग्लास की तरह लुढ़का देते और फफक पड़ते उनकी सुबहें दोपहर के मुहाने प...
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Tuesday, April 10, 2012

नरेन्द्र जैन की कविताएं और असद ज़ैदी की टिपण्णी

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वरिष्ठ कवि नरेन्द्र जैन के नए कविता संग्रह `चौराहे पर लोहार` (आधार प्रकाशन) से कुछ कविताएं चौराहे पर लोहार विदिशा का लोहाबाज़ार जहाँ से शुरू...
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धीरेश सैनी Dhiresh Saini
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