Thursday, November 8, 2007

शुभा की कविता

लाडले
(1)

कुछ भी कहिये इन्हें
दूल्हा भाई या नौशा मियां

मर चुके पिता की साइकिल पर दफ्तर जाते हैं

आज बैठे हैं घोडी पर नोटों की माला पहने
कोशिश कर रहे हैं सेनानायक की तरह दिखने की

(2)
१८ साल की उम्र में इन्हें अधिकार मिला
वोट डालने का
२४ की उम्र में पाई है नौकरी
ऊपर की आमदनी वाली
अब माँ के आँचल से झांक-झांक कर
देख रहे हैं अपनी संभावित वधु

(3)
सुबह छात्रा महाविद्यालय के सामने
दुपहर पिक्चर हॉल में बिताकर
लौटे हैं लाडले

उनके आते ही अफरातफरी सी मची घर में

बहन ने हाथ धुलाये
भाभी ने खाना परोसा
और माताजी सामने बैठकर
बेटे को जीमते देख रही हैं

देख क्या रही हैं
बस निहाल हो रही हैं

(4)
अभी पिता के सामने सिर हिलाया है
माँ के सामने की है हांजी हांजी
अब पत्नी के सामने जा रहे हैं
जी हाँ जी हाँ कराने

1 comment:

  1. achchhi kavitaayen hain.shubha ji tak meri badhaai pahunchaayen.

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