Tuesday, March 11, 2008

गाजा की शहीद रशेल कूरी

क्या आपको गाजा की शहीद रशेल कूरी की याद आ रही है? भगत सिंह की उम्र की ये लड़की करीब 6 बरस पहले गाज़ा में इस्रायल के बुलडोज़रों को रोकने की कोशिश में शहीद हुई थी। अमेरिका के साम्राज्यवादी निरंकुश शासकों के जूतों को भी चाटने को उतावले रहने वालों को हैरानी हो सकती है कि यह न्याय की चाहत रखने वाली और उसके लिए गाज़ा में शहादत देने वाली युवा लड़की अमेरिका की ही रहने वाली थी। एक पूरी आबादी को उजाड़ने की मुहिम को देख कर उसने शहादत से पहले अपने परिवार को जो मेल भेजे थे, उनमें भी उसकी न्याय के प्रति क़ुर्बानी और संवेदनशीलता की झलक थी। इसे आत्मतुष्ट, फर्जी लोग नहीं समझ सकते, वे तो गुजरात में भी जश्न मनाते हैं।
.......दरअसल मोहल्ला ब्लॉग पर फिलिस्तीन में हो रहे दमन के खिलाफ एकजुटता दर्शाने की अपील की गई थी। अब बहुत से लोगों को इस पर एतराज हो गया और वे बेशर्म जुमलों के साथ प्रतिकिरिया में आ गए। मैंने बेहद दुखी मन से ये याद दिलाने के लिए कि अन्याय का विरोध करना सिर्फ़ फिलिस्तीन के लोगों की ज़िम्मेदारी नहीं है। वे लड़ ही रहे हैं क्योंकि ये लड़ाई उनके हिस्से में आई है पर अमेरिकाजिसने ये कत्ल-ओ-गारत थोप राखी है, के रहने वाले न्यायप्रिय लोग भी अपने शाशकों के स्टैंड की परवाह किए बिना न्याय के पक्ष में खड़े होते हैं। और मैंने रशेल कूरी को याद किया। मोहल्ला ने इस टिपण्णी के साथ रशेल कूरी का वीडियो भी जोडा है, और हम इससे से प्रेरणा ले सकते हैं।

4 comments:

  1. मोहल्ले में आपकी पोस्ट देखी . बाकियों की लड़ाई मुद्दे से हट कर इगो वॉर बनती जा रही है. यहाँ तक comments में language भी abusive हो गई है. क्‍या संवेदनशीलता सिर्फ अपने घर के कष्‍टो के लिए होना चाहिए पड़ोसी के प्रति नहीं. कौन कहता है कि अपने घर की मुश्किले पहले नहीं निपटायी जाएं पर साथ ही साथ हम दूसरे के दुख में शामिल तो हो सकते है. आपने ठीक कहा लड़ाई तो गाजा वालो की हैं पर हम भी उनके साथ है, उन्‍हें यह एहसास दिलाने में क्‍या बिगड़ता है.

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  2. डटे रहो जिद्दी धुन। आज कई पुराने 'क्रांतिकारी' भी गाजा की आवाज उठाने का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि जो ये आवाज उठा रहा है, वे फिलहाल उसे पसंद नहीं करते। ऐसे में तुम्हारी जिद और धुन दोनों में दम है।

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  3. एक जिद्दी धुन को कबीरा का लाल सलाम।
    भाई हम बडे जिद्दी लोग है इसरायली बुलडोजरो से हुवी रशेल कूरी की मौत को आसानी से भुलने वाले नहीं है, मौते तो हम सैको व विन्जैटी की भी नहीं भूले है, चे ग्वेयारा - भगत की शहादते भुलाने का दुस्साहस हम सपने में भी नहीं कर सकते है। 9/11 को चीली में कामरेड अलेन्दे की हत्या को भी नही भूले है हम, विराने द्धिप पर नेरूदा की मौत को भी नहीं भुलाया है हमने। महात्मा गांधी, इंदिरा, राजीव, बेनजीर की मौते भी हम नहीं भूले। मौते जश्न मनाने के लिये नहीं होती है, ये हिरोशिमा-नागासाकी पर बम बरसाने वाले आततायी क्या जाने।
    रशेल की यादो के साथ आप इन साम्राज्यवाद परस्तो की इसरायल जिंदाबाद की जिद छुडावाने आये, आपका तहेदिल से इस्तकबाल है।

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  4. rss walon ko Filisteen ka zikar bura lagata hai. voh log Israil ke pitthu hain.
    Rashel zindabad...bus yeh dhun isi aavaz se bajate raho. Dhun main Ghun nahi lagana chaiye.

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