Tuesday, September 9, 2008

`निसार तेरी गलियों पे ए वतन के चली है जहां रस्म...`


4 comments:

  1. bhai, husain arsa hua aaye nahin bharat...unki exile sochniy hai...unki or dhyan dilana zaroori hai...

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  2. आपने बहुत अच्छा लिखा है....इसमे सच्चाई भी है...

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  3. सैणी साब,
    हुसैन साहब और सभी कलाकारों के प्रति पूरे सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि शायद अभिव्यक्ति की भी कोई सीमा होती होगी।
    वो चेक कार्टूनिस्ट जिसने अल्लाह के कार्टून बना दिए थे, उसका सर क़लम करने का फ़तवा किसी सूरत में सही नहीं हो सकता
    लेकिन यह आग्रह भी ठीक नहीं कहा जा सकता कि मैं जो चाहे करूं मैं कलाकार हूं।
    तुम्हारे, हमारे, या और की लोगों के लिए हो सकता है कि भारत माता का कोई मतलब न हो.... पर हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए मां-बहन बहुत ज़्यादा संवेदनशील विषय हों। ये भाभी मां भी हो सकती है और भारत मां भी। मैं फिर कह रहा हूं कि बजरंगियों, शिवसैनिकों के बवाल का समर्थन नहीं कर रहा... लेकिन क्या दूसरों की भावनाओं को आहत करने की कोई सीमा
    नहीं होनी चाहिए ?
    आपके लिए किसी के प्यार करने, खाने, नहाने, चलने, सोने, बोलने का ढंग हास्यास्पद हो सकता है... उसके संस्कार, उसकी भावनाएं, उसके विचार बेवकूफ़ाना हो सकते हैं... लेकिन क्या उनका मज़ाक उड़ाया जाना चाहिए, क्या उन्हें नंगा किया जाना चाहिए... क्यों नहीं आप लोगों को उनके दायरे में छोड़ सकते हैं- जब तक वो इंसानियत को पीटते नज़र नहीं आते।

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  4. सैणी साब,
    हुसैन साहब और सभी कलाकारों के प्रति पूरे सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि शायद अभिव्यक्ति की भी कोई सीमा होती होगी।
    वो चेक कार्टूनिस्ट जिसने अल्लाह के कार्टून बना दिए थे, उसका सर क़लम करने का फ़तवा किसी सूरत में सही नहीं हो सकता
    लेकिन यह आग्रह भी ठीक नहीं कहा जा सकता कि मैं जो चाहे करूं मैं कलाकार हूं।
    तुम्हारे, हमारे, या और की लोगों के लिए हो सकता है कि भारत माता का कोई मतलब न हो.... पर हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए मां-बहन बहुत ज़्यादा संवेदनशील विषय हों। ये भाभी मां भी हो सकती है और भारत मां भी। मैं फिर कह रहा हूं कि बजरंगियों, शिवसैनिकों के बवाल का समर्थन नहीं कर रहा... लेकिन क्या दूसरों की भावनाओं को आहत करने की कोई सीमा
    नहीं होनी चाहिए ?
    आपके लिए किसी के प्यार करने, खाने, नहाने, चलने, सोने, बोलने का ढंग हास्यास्पद हो सकता है... उसके संस्कार, उसकी भावनाएं, उसके विचार बेवकूफ़ाना हो सकते हैं... लेकिन क्या उनका मज़ाक उड़ाया जाना चाहिए, क्या उन्हें नंगा किया जाना चाहिए... क्यों नहीं आप लोगों को उनके दायरे में छोड़ सकते हैं- जब तक वो इंसानियत को पीटते नज़र नहीं आते।

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