Friday, April 3, 2009

इक़बाल के राम















लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द ।
सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द ।।

ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द ।

इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द ।

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द ।

एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है यही
रोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द ।

तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था ।








अल्लामा इक़बाल

8 comments:

  1. क्या बात है ! मेहरबानी ।

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  2. बहुत अच्छे...! बहुत प्रासंगिक !

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  3. खुशी की बात है कि पाकिस्तान परस्ती से पहले के इकबाल की रचनाओं में राम भी थे और सरज़मीने-हिन्दुस्तान भी थी.

    सामयिक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

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  4. Lo...and people are accusing each other for not mentioning Ram on Ramnavmee. Thanx a lot for sharing this poem.

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  5. achchha laga padh kar. mushkil shabdon ke arth diye rahate to or achchha lagata.

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  6. अच्छा तो कहने की बात ही नहीं, पर कुछ शब्द समझ नहीं आए...खित्ता-ए-मग़रिब और भी कुछ

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  7. पूरा समझ में नहीं आया पर जितना समझा अच्छा लगा

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