Sunday, May 24, 2009

आबिद आलमी की गज़ल

जब य` मालूम है कि बस्ती की हवा ठीक नहीं
फिर अभी इसको बदल लेने में क्या ठीक नहीं
मेरे अहबाब की आँखों में चमक दौड़ गई
हँस के जब मैंने कहा हाल मेरा ठीक नहीं
दिल का होना ही बड़ी बात है कैसा भी हो
मैं नहीं मानता यह टूटा हुआ ठीक नहीं
अपनी आँखों से जो हालत की देखी तस्वीर
एक भी रंग य ` मालूम हुआ ठीक नहीं
ज़हर मिल जाए दवा में तो ज़ायज़ है यहां
हाँ मगर ज़हर में मिल जाए दवा ठीक नहीं
उसकी फ़ितरत ही सही चीख़ना चिल्लाना मगर
मैं समझता हूँ नगर में वो बला ठीक नहीं
ख़ुद ही डसवाता था इक सांप से लोगों को वो
ख़ुद ही कहता था कि ये खेल ज़रा ठीक नहीं
खैंच लेते हैं ज़बां पहले ही मुंसिफ़ `आबिद`
कहने सुनने की अदालत में वबा ठीक नहीं

आबिद आलमी यानी रामनाथ चसवाल (४ जून १९३३ - ९ फरवरी १९९४).
बेहद कठिन और संघर्षशील जीवन जिया. खुद को शायर मानने का दंभ कभी नहीं रहा. हरियाणा में शिक्षकों के संगठन और वामपंथी आन्दोलन में आखिरी साँस तक सक्रिय रहे. प्रदीप कासनी की कोशिशों से उनका संग्रह `अलफाज़' आधार प्रकाशन से साया हुआ है. इस ब्लॉग पर उनकी दो अन्य गज़लें देखें-http://ek-ziddi-dhun.blogspot.com/2008/11/blog-post_08.html

6 comments:

  1. उम्दा ग़ज़ल धीरेश भाई ! जानकारी के लिए शुक्रिया. आधार से संपर्क किया जाएगा!

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  2. bahut maujun hai! shukriya es achhi gazal ko padhvane ke liye!

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  3. शुक्रिया वीरेश भाई। आपकी नवीनतम पोस्ट के दो-तीन शेर भी मुझे इस अर्थ में काफी प्रासंगिक लग रहे हैं-

    जब य` मालूम है कि बस्ती की हवा ठीक नहीं
    फिर अभी इसको बदल लेने में क्या ठीक नहीं

    ज़हर मिल जाए दवा में तो ज़ायज़ है यहां
    हाँ मगर ज़हर में मिल जाए दवा ठीक नहीं

    उसकी फ़ितरत ही सही चीख़ना चिल्लाना मगर
    मैं समझता हूँ नगर में वो बला ठीक नहीं

    ख़ुद ही डसवाता था इक सांप से लोगों को वो
    ख़ुद ही कहता था कि ये खेल ज़रा ठीक नहीं


    -आबिद आलमी

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  4. शुक्रिया वीरेश भाई। आपकी नवीनतम पोस्ट के दो-तीन शेर भी मुझे इस अर्थ में काफी प्रासंगिक लग रहे हैं-

    जब य` मालूम है कि बस्ती की हवा ठीक नहीं
    फिर अभी इसको बदल लेने में क्या ठीक नहीं

    ज़हर मिल जाए दवा में तो ज़ायज़ है यहां
    हाँ मगर ज़हर में मिल जाए दवा ठीक नहीं

    उसकी फ़ितरत ही सही चीख़ना चिल्लाना मगर
    मैं समझता हूँ नगर में वो बला ठीक नहीं

    ख़ुद ही डसवाता था इक सांप से लोगों को वो
    ख़ुद ही कहता था कि ये खेल ज़रा ठीक नहीं


    -आबिद आलमी

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  5. ab hwa se bhi darne lage hai log jidhar bhi dekho khidki band hai...

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  6. ज़हर मिल जाए दवा में तो ज़ायज़ है यहां
    हाँ मगर ज़हर में मिल जाए दवा ठीक नहीं

    UMDA GAZAL

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