इस कविता में कोरी लफ्फाजी के सिवा क्या है ? मसला और मसलना शब्दों में जो ध्वनि की समानता है उसमें से ज़बरदस्ती एक जुमला बनाया गया है. उसी को कविता कहकर ब्लॉग पर डाल दिया गया है. वाह वाह करने को चेलों और चमचों का एक दल साथ है. इस वक़्त हिंदी में कविता लिखना बहुत आसान हो गया है. ऐसी कवितायेँ अगर कोई कॉलेज का छोकरा लिखे तो एक बार माफ़ किया जा सकता है लेकिन एक वरिष्ठ कवि ऐसी कविताई करे तो यह बेहद लज्जा की बात है.
क्या बात है !!
ReplyDeleteशानदार और जरूरी कविता। मैं कुछ दिन बाद इस कविता को अपने साइडबार कालम, कवि कह गया है, में लगाऊँगा। ऐसी कविता को बार-बार याद किया जाना चाहिए।
मसला मनुष्य का है
ReplyDeleteइसलिए हम हरगिज़ नहीं मानेंगे
कि मसले जाने के लिए बना है मनुष्य
लाजवाब अभिव्यक्ति आभार
"मसला मनुष्य का है
ReplyDeleteइसलिए हम हरगिज़ नहीं मानेंगे
कि मसले जाने के लिए बना है मनुष्य"
नहीं सर ! मनुष्य तो मसलने के लिये बना है
इसे तो मानेंगे न आप
"कातिल मज़े में हैं
तो क्या हम मान लें कि क़त्ल करना मज़ेदार काम है?"
नहीं सर ! हर मज़ेदार काम के लिये क़त्ल करना पड़ता है
इसे तो मानेंगे न आप
"बेईमान सजे-बजे हैं
तो क्या हम मान लें कि
बेईमानी भी एक सजावट है?"
नहीं सर ! हर सजावट में बेईमानी नहीं है
इसे तो मानेंगे न आप !!!
नहीं..!
शानदार कविता के लिये आपको बधाई.
ReplyDeleteपल्लव
डंगवाल जी,
ReplyDeleteकाफी पेचीदा मसला उठाया है आपने, गहरे भाव लिए !
यार भाई क्या कविता है!!!
ReplyDeleteअभी कल एक पत्रिका में एक सर्टिफ़ाईड कवि की कुछ ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लंबीईईईई कवितायें (?) पढकर डिप्रेशन में चला गया था। फिर से ज़िन्दा करने के लिये आभार।
आप बताईये इस कविता को क्या जनता के बीच मंच से नहीं पढा जा सकता। क्या यह वहां भी अपना अभीष्ठ आसानी से प्राप्त नहीं कर लेगी?
अब कौन समझाये भाई लोगों को कि ज़रूरी हो रो ठीक वरना अपनी भडास निकालने के लिये पेडों की जान लेना ठीक नहीं है मालिक!
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ReplyDeletelaazwaab kavita..
ReplyDeletessiddhant mohan tiwary
Varanasi
इस कविता में कोरी लफ्फाजी के सिवा क्या है ? मसला और मसलना शब्दों में जो ध्वनि की समानता है उसमें से ज़बरदस्ती एक जुमला बनाया गया है. उसी को कविता कहकर ब्लॉग पर डाल दिया गया है. वाह वाह करने को चेलों और चमचों का एक दल साथ है. इस वक़्त हिंदी में कविता लिखना बहुत आसान हो गया है. ऐसी कवितायेँ अगर कोई कॉलेज का छोकरा लिखे तो एक बार माफ़ किया जा सकता है लेकिन एक वरिष्ठ कवि ऐसी कविताई करे तो यह बेहद लज्जा की बात है.
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