Friday, October 2, 2009

एक परिंदा उड़ता है



अपने प्यारे कवि मनमोहन के जन्मदिन पर उनकी यह कविता-

एक परिंदा उड़ता है
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एक परिंदा उड़ता है
मुझसे पूछे बिना
मुझे बताये बिना
उड़ता है परिंदा एक
मेरे भीतर
मेरी आँखों में

21 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना कम शब्दों में

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  2. इंसान तभी तक ज़िन्दा है
    जब तक उसके अन्दर परिन्दा है.

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  3. उन्हें बधाई और शुभकामनाएं।
    कविता सचमुच अच्छई है।

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  4. वाह क्या खूब याद दिलाई है आपने कवि मनमोहन की इस खूबसूरत कविता के बहाने

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  5. कैसी छटपटाहट है.. कविता में..

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  6. मनमोहन के जन्‍मदिन के मौके पर मेरी हार्दिक शुभकामनाए उन तक पहुंचाइएगा...

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  7. जन्म दिन की बधाई...

    यह परिंदा उड़ता रहे

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  8. मेरे अंदर भी......

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  9. यकीनन अलबत्ता वक़्त के साथ इसकी परवाज उतनी ऊँची नहीं रहती....

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  10. अरथ अमित अति आखर थोरे...
    जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई।

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  11. मनमोहन जी के जन्मदिन पर उनकी यह कविता पढ़ना सुखद रहा.

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  12. ab tak ud rahan hein, par mujze bataye bina.

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  13. tum jeo hazaron sal, sal de din go 50 hazar

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  14. अतिसुन्दर रचना.

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  15. कवि मनमोहन और उनकी कविताओं के बारे में और जानकारी कहाँ से मिल सकती है. उनकी पुस्तकों के बारे में और हो सके तो कहाँ से उपलब्ध हो सकती हैं, ये भी बताएं!

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