Monday, December 7, 2009

रोटी और तारे : ओक्तई रिफ़त



गोद में रखी है रोटी
और सितारे बहुत दूर
मैं अपनी रोटी खाता हूँ सितारों को तकते हुए
ख़यालों में इस कदर गुम कि कभी कभी
मैं गलती से खा जाता हूँ एक सितारा
रोटी के बजाए

(इस तुर्की कविता का अनुवाद असद ज़ैदी का है. इसे ८० के दशक की पत्रिका कथ्य से लिया गया है जिसका सिर्फ एक अंक निकला था पर शानदार निकला था.)

9 comments:

  1. उम्दा...बेहतरीन...

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  2. वाह!!

    बहुत आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का.

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  3. यह अंक बहुत पहले एक मित्र के यहां देखा था…काश कि फोटोकापी करा लिया होता।

    शनदार कविता

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  4. छोटी और प्यारी कविता। मेरी पसंदीदा चीज।

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  5. बहुत उम्दा कविता! छोटी मगर असरदार !

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