गोद में रखी है रोटी
और सितारे बहुत दूर
मैं अपनी रोटी खाता हूँ सितारों को तकते हुए
ख़यालों में इस कदर गुम कि कभी कभी
मैं गलती से खा जाता हूँ एक सितारा
रोटी के बजाए
(इस तुर्की कविता का अनुवाद असद ज़ैदी का है. इसे ८० के दशक की पत्रिका कथ्य से लिया गया है जिसका सिर्फ एक अंक निकला था पर शानदार निकला था.)
उम्दा...बेहतरीन...
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का.
आह.....अदभुत !
ReplyDeleteCute.
ReplyDeleteयह अंक बहुत पहले एक मित्र के यहां देखा था…काश कि फोटोकापी करा लिया होता।
ReplyDeleteशनदार कविता
छोटी और प्यारी कविता। मेरी पसंदीदा चीज।
ReplyDeleteआह!
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा कविता! छोटी मगर असरदार !
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