अखबार अभी कुछ देर पहले शाम को उठाया और सन्न रह गया. `द हिन्दू` की बोटम स्टोरी `M.F. Husain gets Qatar nationality` आपने तो सुबह ही देख ली होगी. जो हाल मेरा है, इस देश के महान सेक्युलर मूल्यों में विशवास रखने वाले हर नागरिक का होगा. कुछ नहीं सूझा, कबाड़ख़ाने वाले अशोक भाई को फ़ोन लगाया कि वहाँ ब्लॉग पे इस बारे में कुछ जाए पर फोन नहीं उठ सका. हम शर्मिंदा है कि इतने महान कलाकार को इस उम्र में दरबदर कर रखा है. कांग्रेस सांप्रदायिक शक्तियों के विरोध के नाम पर वोट चाहती है लेकिन उसकी सरकार में ऐसा जरा भी गंभीर प्रयास नहीं हुआ कि यह महान कलाकार इज़्ज़त के साथ देश लौट पाए. फिलहाल `द हिन्दू` की स्टोरी ही चिपका रहा हूँ. आप पाएंगे कि यहाँ एन.राम भी क्यूँ एन.राम हैं.
M.F. Husain gets Qatar nationality
N. RAM
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M.F. Husain, India’s greatest and most celebrated artist, has been conferred Qatar nationality - something that is very rarely given. The artist gave me this news from Dubai early Wednesday morning by reading out the few lines he had written on a black-and-white line drawing that he released to The Hindu.
“Honoured by Qatar nationality” but deeply saddened by his enforced exile and the need now to give up the citizenship of the land of his birth, which he has lovingly and secularly celebrated in his art covering a period of over seven decades. India does not allow dual citizenship, even though it has instituted the category of the ‘Overseas Indian Citizen.’ Mr. Husain will no doubt seek to acquire OIC status after completing the due procedures.
It is important to note that Mr. Husain did not apply for Qatar nationality and that it was conferred upon him at the instance of the modernising emirate’s ruling family.
Since 2006, when the Hindutva hate campaign against him escalated, Mr. Husain has been living in Dubai, spending his summers in London. He travels freely except to India, where he faces legal harassment and physical threats, with the system impotent and not committed to enabling his return. Though the Supreme Court has intervened on the right side, it was too little, too late. The Congress-led government, it is clear, has done no better than the preceding BJP-led governments in protecting Mr. Husain’s freedom of creativity and peace of mind.
Almost 95, the artist works a long day, producing large canvasses and life-size glass sculptures. Never has he been as commercially successful as he is today. His work now is mostly towards two large projects, the history of Indian civilisation and the history of Arab civilisation. The latter was commissioned by Qatar’s powerful first lady – Sheikha Mozah bint Nasser al Missned, wife of the emirate’s ruler, Sheikh Hamad bin Khalifa Al Thani. The works will be housed in a separate museum in Doha.
While being a rare honour, Mr. Husain’s impending change of nationality brings to a close one of the sorriest chapters in independent India’s secular history. Mr. Husain’s time of troubles began in 1996, after a Hindi monthly published an inflammatory article on his paintings of Hindu deities done in the 1970s. This led to a slew of criminal cases, filed in far-flung places, which alleged in the main that the artist had hurt the feelings of Hindus through his paintings. Mr. Husain estimates that there are 900 cases against him in various courts of India. He has been harassed by fanatical mobs. Exhibitions of his work have been vandalised. All this has created a fear of exhibiting his work in India.
I have personally accompanied Mr. Husain to court proceedings in Indore and have first-hand experience of the harassment and terror he faced from bigoted mobs. I received him in Mumbai on his return from the first of his temporary exiles and saw what insecurity and uncertainty this creative genius had to endure in rising India. It is ironical that a country whose religious art often portrays nudity and even overt sexuality, as in the case of the Khajuraho sculptures and the murals and frescoes of south Indian temples, has grown so intolerant as to drive into permanent exile its most famous artist.
I know no one more genuinely and deeply committed to the composite, multi-religious, and secular values of Indian civilisation than M. F. Husain. He breathes the spirit of modernity, progress, and tolerance. The whole narrative of what forced him into exile, including the shameful failure of the executive and the legal system to enable his safe return, revolves round the issues of freedom of expression and creativity and what secular nationhood is all about.
The conferment of Qatar nationality is an honour to Mr. Husain, to his artistic genius, and to the India-rooted civilisational values he represents. Nevertheless, it is a sad day for India.
सही है, शर्माते रहना चाहिये, इससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है...
ReplyDeleteकभी फुरसत मिले तो तसलीमा नसरीन पर भी शर्मा लीजियेगा,
और उस भगौड़े हुसैन से कहिये कि कतार में वहा के धार्मिक हस्तियों के एसे नंगे चित्र बनाये, फिर देखिये कि कैसे उसे सलमान रश्दी की तरह छिपे छिपे रहना पड़ता है..
"हुसैन साब को रोका है किसने हिन्दुस्तान में आने से,यहाँ पर वे महफूज़ रहेंगे।"
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
उस कार्टूनिस्ट ने किसी के सीधे साधे चित्र बनाये थे जिस पर हिन्दुस्तान में दंगाईयों ने जो कुछ किया था उस पर भी आपको अवश्य शर्म आई होगी
ReplyDeleteदीपक भार्गव जी से सहमत…। शर्माने की इस परम्परा में, हैदराबाद में तसलीमा नसरीन को पीटने वाले को माला पहनाई जाये… :)
ReplyDeleteओह ...!
ReplyDelete( आपको टिप्पणी करना मुश्किल हो गया है पता नहीं क्या दिक्कत है गूगल क्रोम से होती ही नहीं माइक्रोसोफ्ट पर आकर करना पड़ रही है पिछली कई पोस्ट छूट गईं )
दीपक भार्गव जी ने बहुत सही कहा है लगता है आपने म फ हुसैन साहेब के बनाये माँ सरस्वती के नग्न चित्र नहीं देखे तभी शर्मसार हों रहें हैं . अपना आई डी दीजिये तो आपको भेज दें!
ReplyDeleteसही कहा कि आज का दिन भारत के लिए शर्म का दिन है। इतनी बड़ी भारतीय प्रतिभा को मजबूरन देश निकाला सहना पड़ा और हमारी सरकार कुछ नहीं कर पाई।
ReplyDeleteमुझे समझ नहीं आता कि यदि तस्लीमा का देश से निष्कासन गलत था तो इससे हुसैन का निष्कासन सही कैसा हो गया !
दोनों घटनाएं भारत के लिए शर्मनाक हैं। जो लोग एक गलत को दूसरे गलत से ढंकने की प्रवृत्ति रखते हैं उन्हें न्याय और समता की बात करनी छोड़ देनी चाहिए।
रंगनाथ सिंह, तसलीमा को तो निष्कासित किया है लेकिन हुसैन को किसने निष्कासित किया है?
ReplyDeleteउन पर अदालत में कुछ मामले चल रहे थे जिनसे बचने के लिये वे स्वयं विदेश भाग गये। इन्हें निष्कासन कैसे कह सकते हैं? क्या अदालत में न्याय मांगना अपराध है?
एक बात और, हिन्दू देवी देवताओं के नंगे चित्र बनाने वाले हुसैन अपनी कला की बात करते हैं लेकिन इन्हीं हुसैन की फिल्म मीनाक्षी पर मुल्ला मौलवी आपत्ति करते हैं और यही हुसैन अपनी फिल्म वापिस ले लेते हैं? क्यों? क्या यह दोमुंहापन नहीं है?
कोई इस पर भी शर्मायेगा? है कोई?
मुझे आश्चर्य है|किसी को भी नग्न चित्रित करना बुरी बात है, पर राजा रवि वर्मा ने मत्स्य गंधा {http://www.cyberkerala.com/rajaravivarma/rrvhtm38.htm} को नग्न चित्रित किया था| हाल ही में कांशी विश्व विद्यालय की एक महिला प्रोफ़ेसर ने कामायनी पर चित्र माला बनाई और मनु और श्रद्धा {http://mohallalive.com/2009/10/31/painting-of-uttama-dixit-on-jaishankar-prasad-kamayani/} के नग्न चित्र बनाये उन्हें किसी ने क्यों नही कुछ कहा ?
ReplyDeleteमहिलाओं की नग्नता मायने नही रखती अगर वह धर्म से सम्बंधित न हो ...एक दोगालापन यह भी है
@anonymous अपने घर के लोगों के या अपने पूजनीयों के इस तरह के चित्र बनवाना पसन्द करेंगे श्रीमान जी आप मकबूल साहब से.
ReplyDeleteCome on dear ones ! Hussain is an artist--a very-very rich and successful artist who could have easily arranged for his safety here and no one was baying for his blood here. Itz STYLE .....a mere excuse to remain in NEWS which fuels the price of his paintings .
ReplyDeleteDon't waist your tears 'cos they are precious like pearls !
वैसे जैसा आप सोचते है ना , उससे आपको शर्म आनी ही चाहिए ।
ReplyDeleteएक विकृत मानसीकता वाले भगौड़े चित्रकार के लिए शर्म?!!!
ReplyDeleteहुसैन खूद गए है. किसी ने भेजा नहीं.
रुश्दी को भेजा गया था, शर्म आई? तस्लिमा को निकाल दिया, शर्म आई?
यहां टिप्पणियां पढ़कर पता चल रहा है कि इन युवाओं की कला की समझ कितनी भोंडी है बल्कि है ही नहीं. इन्हें कलाकृति और देवी देवता की मूरत में फर्क का पता ही नहीं. यह धर्म ध्वज फहराने वाले सिपाही की तरह फुफकार रहे हैं. शर्म, विचार, दृष्टि, साहित्य और संस्कार से इनका क्या लेना देना. माता-पिता, शिक्षकों, राजनेताओं के लिए यह ज्यादा शर्म की बात है कि उन्होंने यह कैसी पीढ़ी बनाई.
ReplyDeleteham sharmsaar hain ...makbool fida husain ke liye,salmaan rushdie ke liye taslima nasreen ke liye.un sabke liye sharminda hain jinki abhivyakti ki zubaan katkar sar par talwaar latka di gayee.nagna moortiyaan hamari pracheen sabhyata ka hissa hai.samprdayik rang dene ke liye ham wakai sharminda hain.
ReplyDeleteकालिदास ने कुमारंसभवम में पार्वती को जिस तरह से श्रृंगारिक वर्णन किया है उसके बाद कालिदास को जला देने का प्रस्ताव कैसा रहेगा ? खजुराहो को डायनामाइट लगा के उड़ा दो। कोणार्क को जला दो।
ReplyDeleteजिस निगाह से तुम अश्लीलता को देखते हो उसी निगाह से शिव(के)लिंग के साथ जो शेष आकृति जुड़ी होती है, उससे भी चरम अश्लील कुछ है तो बताओ?
http://mohallalive.com/2010/02/26/awesh-writeup-on-mf-husain-citizenship/
यह टिप्पणी मुझे मोहल्ला में मिली...लगा इस पर भी बात होनी चाहिए.
ReplyDeleteएक गद्दार से इससे बेहतर उम्मीद भी क्या रख सकते थे, ९५ की उम्र में ही सही मगर साबित कर दिया !
ReplyDeleteहुसैन भारत के महान चित्रकार हैं और उन्हे अपने वतन से बहुत प्यार है .मुझे दुख है कि कुछ लोगों ने उनके चित्र को समझने मे ग़लती की है . हुसैन ने अपने बारे मे स्वयं एक जगह कहा है-“मैं लैंडस्केप करने जाया करता था। भोपाल भी गया। घुमक्कड़ स्वभाव था। यहां-वहां भटका करता था। एक बार सोलेगांवकर के साथ अकंलेश्वर चला गया। दिन भर चित्र बनाते रहे, अब रात को क्या करें? मंदिर में जाकर सो गए। सुबह पुजारी ने जगाया। नहा-धोकर आरती की, प्रसाद खाया फिर चले।“ “लोहियाजी के कहने पर रामायण पेंट की। सात-आठ साल बद्री विशाल पित्ती के घर रहा। हैदराबाद में बनारस से पंडित बुलाए गए। वे रोज रामायण पढ़कर सुनाते। रोज सुबह नहाकर पंडित के सामने बैठता, वे घंटे दो घंटे रामायण पढ़ते और उसको सुनकर दिन भर चित्र बनाता।(हुसैन का ये कथन चित्रकार अखिलेश के लेख से लिया गया है )
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति में सरस्वती विद्या और कला की देवी हैं। कवि उनकी स्तुति लिखकर, गायक गाकर और चित्रकार चित्र बनाकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है। अगर हुसैन ने उनका अपमान किया होता तो क्या उन पर सरस्वती की इतनी कृपा बनी रहती। क्योंकि सरस्वती की कृपा के बिना वे इतने बड़े कलाकार कैसे बन सकते थे? आज इस उम्र में भी जिस तरह वे सृजनरत हैं, उससे तो यही लगता है कि सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की कृपा उन पर बरस रही है। कुछ लोगों की टिप्पणियां देखकर लगता है कि मां सरस्वती ने उन्हें कला की समझ देने में कुछ कंजूसी जरूर कर दी है, वरना वे समझ सकते थे कि कोई सरस्वती-पुत्र सरस्वती का अपमान कैसे कर सकता है?
ReplyDeleteसरदार पटेल होते तो..
ReplyDelete@ Arun Aditya ji...
ReplyDeleteबहुत अच्छी बात कही आपने...लक्ष्मी की कृपा तो दाउद इब्राहीम पर भी है....सरस्वती की कृपा ओसामा बिन लादेन पर ...वरना इतनी दक्षता से ट्विन टावर कैसे गिरती...
क्या सोच है ...आपको सचमुच सलाम...
शायद आपने रास्ते की किनारे बैठ हुए उन कलाकारों को नहीं देखा , सुना है ...जिनके कंठ में, हाथों में सरस्वती तो वास करती है ...लेकिन कृपा नहीं करती और लक्ष्मी तो पास भी नहीं फटकती...और शायद कई तो हुसैन से बहुत बेहतर होंगे....
@Anonymous ji...
ReplyDeletemanu aur shraddha ko aap adam aur eve ki jagah par rakh sakte hain...unki tasveer jab bhi koi banayega...nagn hi banayega...jis tarh ki adam aur eve ki...ye to aap aam ki tulna apple se kar rahe hain...isliye ise to aap rehne hi dijiye..
Lovely ji shayad yah comment aapne kahin dekha aur yahan bataya hai aapne...
ReplyDeleteकालिदास ने कुमारंसभवम में पार्वती को जिस तरह से श्रृंगारिक वर्णन किया है उसके बाद कालिदास को जला देने का प्रस्ताव कैसा रहेगा ? खजुराहो को डायनामाइट लगा के उड़ा दो। कोणार्क को जला दो। जिस निगाह से तुम अश्लीलता को देखते हो उसी निगाह से शिव(के)लिंग के साथ जो शेष आकृति जुड़ी होती है, उससे भी चरम अश्लील कुछ है तो बताओ?
खजुराहो और कोणार्क की मूर्तियों की तुलना आप हुसैन की पेंटिंग्स से नहीं कर सकते...
सबसे बड़ी बात ...ये मूर्तियाँ देवी-देवताओं की नहीं हैं...
दूसरी बात ये मूर्तियाँ ...कुछ मुद्राओं को अवश्य दिखाती हैं लेकिन उनको दिखाने का अवचित्य ...उनकी पवित्रता को बरकरार रखते हुए ...श्रृष्टि को आगे ले जाना है...
मैंने पहले भी अपने कमेन्ट में कहा है ...कलाकार के लिए बहुत आवश्यक की वह सही विषय वस्तु का चुनाव करे...नग्नता से कोई परहेज नहीं कर रहा है यहाँ... परहेज है आप किसे नग्न दिखा रहे हैं...और क्या यह दिखाना इतना ज़रूरी है...???
मसलन भारत माँ, सरस्वती, पार्वती, दुर्गा,
सिर्फ़ नग्नता ही क्यूँ..? गाँधी जी की गर्दन उड़ाने का मकसद क्या है...क्यूँ नहीं हिटलर की गर्दन...??
इन सारी तस्वीरों से हुसैन के विकृत मानसिकता का ही अंदेशा होता है...और कुछ नहीं...
आप शिव लिंग की ही बात क्यूँ करते हैं...बाइबल का ओल्ड टेस्टामेंट पढ़िए...आपको सिवाय सेक्स के और कुछ भी नहीं मिलेगा....सभी धर्म इस विषय को छूते हैं..आप दुनिया का कोई भी धर्म उठा कर देख लीजिये...और हो भी क्यूँ नहीं श्रृष्टि देवी-देवताओं से नहीं इंसानों से चलती है....
लेकिन फिर भी एक अनुशासन और अभिव्यक्ति की सीमा का निर्धारण आवश्यक है...
निसार मैं तेरी गलियों के अए वतन, कि जहाँ
ReplyDeleteचली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहनेवाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जाँ बचा के चले
comments padh kar faiz ka ek aur sher yaad aa raha hai.
ReplyDeleteलाओ तो क़त्लनामा मेरा मैं भी देख लूँ
किस किस की मुहर है सर-ए-महज़र लगी हुई
एक कलाकार की व्यक्तिगत सोच के बहाने प्रजातान्त्रिक समाजवादी लोकतंत्र के भगवा तालिबानीकरण के प्रयास में फतवे जारी किये गए हैं. शर्म इसी बात की है.
ReplyDeleteकलाकार कम्ज़ोर नसें पकड़्ता ही है...किसी की भवनाओं को जो छेड़ न पाए,उद्वेलित न कर पाए, उकसा न पाए, वह सफल कलाकार कैसे बनेगा? सड़क पर नही रह जाएगा? पता नही यह पाप है या कला? हुसैन से ही पूछा जाए. यदि वे तफरीह कर रहे हैं तो यह सचमुच ही कला है .यदि उन का दम घुट रहा है तो पाप. दोस्तो,दरअसल हुसैन का मुसल्मान होना ही इस बहस का बाई स नही हो रहा क्या? पैदा होने के बाद ही आखिर हम क्यों धीरे धीरे मुसल्मान, हिन्दू, इसाई इत्यादि हो जाते हैं ? देखो झगड़े की जड़ कहाँ है?
ReplyDeleteशर्माने के लिये आपके भीतर एक धड़कता हुआ दिल होना चाहिये। चिप्लूनकर और दूसरे संघी चम्पूओं से जिनके आदर्श हत्यारे हैं, यह उम्मीद कोई नहीं करता। वे तो बंगारु या संजय जोशी की सीडी पर भी नहीं शर्माते।
ReplyDeleteहम शर्मिंदा हैं हुसैन्…तस्लीमा हम बेहद शर्मिंदा हैं!
गुजरात के दंगों से पहले पर्चे बांटे गए थे कि किस उम्र के हिंदू को किस उम्र की मुसलमान महिला के साथ क्या व्यवहार करना है... दंगा कैसे आयोजित किया जाता है, बिना कोई गवाह छोड़े मुस्लिम महिलाओं को बर्बाद कैसे किया जाए आदि आदि। भाई लोगों उस समय आपकी संस्कृति कहां गयी थी। आप लोगों को इस पर्चे के बारे में पता ही होगा, और अगर न पता हो तो ''ऊपर'' पता कर लीजिए....
ReplyDeleteखैर आपकी मानसिकता और तालिबानी मानसिकता में फर्क नहीं है, बुद्ध की प्रतिमाएं गिराएं, या कलाकार पर फर्जी मुकदमे चलवाएं, दंगे करें, कलाकृतियों को नष्ट करें, आदि आदि, कार्टून बनने पर बवाल मचाएं, फिल्में न रिलीज़ होने दें,
खैर आप लोग अपना तालीबानी प्रयास जारी रखिए, देखिए न वे भी जारी हैं, पिछले दिनों सिखों का सर काट दिया....
धीरेश, यह वाकई शर्मनाक है, कि कलाकार असुरक्षित महसूस करके देश से बाहर शरण ले, ये लोग हुसैन के पीछे पड़े हैं और वो लोग तसलीमा, रुश्दी के....
पूरे कुएं में ही भांग पड़ गई है। लोग होश-हवास खो बैठे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाले हिटलर की जमात में शामिल हो गए हैं। कहते हैं कि जब जाहिल लोग कुतर्क करने लगें तो चुप्पी साधना ही बेहतर होता है।
ReplyDeleteपूरे कुएं में ही भांग पड़ गई है। लोग होश-हवास खो बैठे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाले हिटलर की जमात में शामिल हो गए हैं। कहते हैं कि जब जाहिल लोग कुतर्क करने लगें तो चुप्पी साधना ही बेहतर होता है।
ReplyDelete@ सन्दीप जी और @ अशोक पाण्डेय जी -
ReplyDeleteसिर्फ़ एक छोटा सा सवाल, क्या आपको भरोसा है कि हुसैन साहब, पैगम्बर मोहम्मद या अल्लाह का नग्न चित्र बना सकते हैं? इसी के जवाब में हुसैन की मानसिकता का जवाब भी छिपा है…
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हुसैन को पता है कि उन्होंने भारतीय कानून का उल्लंघन किया है इसलिये वे यहां से भागे हैं…। जो सरकार शाहरुख जैसे नचनिया की फ़िल्म को सुरक्षा दे सकती है तो क्या हुसैन को नहीं दे सकती? सेकुलरों की सारी दिक्कत "बैलेंस" को लेकर है… वे बैलेंस नहीं बनाते… आज हुसैन यदि मोहम्मद साहब या फ़ातिमा का नग्न चित्र बनायें और उसे भारत में कला(?) प्रदर्शनियों में लगाया जाये, तब सही बैलेंस बनेगा… बताईये है ऐसा करने की हिम्मत हुसैन में या उनके चमचों में है?
आखिर हिन्दुओं से आप कितने अपमान सहने और बलिदान करने की अपेक्षा रखते हैं? चलो त्याग कर भी दें, लेकिन कब तक, कितनी बार? विभिन्न न्यायालयों द्वारा नकार दिये जाने के बावजूद आपके प्रिय बुद्धूदेव तो मुसलमानों को 10% आरक्षण देने पर भी तुल गये हैं तब शर्म नहीं आ रही आपको?
और पाण्डेय भाई, न तो आप मुझे बदल सकते हैं न मैं आपको, फ़िर काहे आप बार-बार मेरा नाम लेकर अपनी TRP बढ़ाने की कोशिश करते हैं? हो सके तो इस टिप्पणी में उठाये गये सवालों के जवाब देने की कोशिश कीजियेगा…
सादर नमस्कार - सुरेश चिपलूनकर
आखिर भारतीय और हिन्दू परम्परा को देवी-देवताओं की नग्न मूर्तियों का विरोधी कैसे कहा जा सकता है. कुछ मंदिरों की नग्न या कामरत मूर्तियों को यह कहा जा रहा है कि येपूजा के लिए नहीं हैं लेकिन राम से लेकर तमाम देवताओं और देवियों की प्राचीन नग्न मूर्तियाँ मिलती रही हैं और उन्हें अश्लील कहना समझ से परे है. बल्कि जो थोक में मंदिर बनाए जा रहे हैं, उनमें रखे जाने वाली मूर्तियाँ प्राय अश्लीलता की हद तक कलाविहीन और वल्गर होती हैं. हुसैन हों या कोई भी जेनुईन कलाकार यदि वह वाकई भारतीय परम्परा से जुड़ा है तो वो स्वाभाविक रूप से सुन्दर नग्न तस्वीरें बना सकता है. रही बात इस्लाम की परम्परा की तो वहां बुत का प्रावधान ही कहाँ है. हुसैन से इस्लामिक मिथ को नग्न रचने की मांग करने वाले वे लोग हैं जो खुद इतने रूढ़ और कट्टर हैं कि अपनी परम्परा से विद्रोह तो दूर, उसे जैसी है, वैसी दिखाने में भी दिक्कत होती है या कहें कि वो ऐसी सियासत करते हैं.
ReplyDeleteजहाँ तक तसलीमा नसरीन का सवाल है तो उन्होंने इश निंदा का रिस्क लिया है और उनका समर्थन करने का नैतिक हक किसी भी धर्म के कट्टरपंथियों को तो हो ही नहीं सकता. तसलीमा पर फ़तवा देने वाले आर एस एस और शिव सेना वालों जैसे ही हैं.
sab apni rajniti chamka rahe hain.. waise mujhe nahi lagta ki hussain ke mudde par sharam karne ki koi wajah ho sakti hai.. sabhi ko sabhi dharmon ka aadar karna chahiye.. kya hussain sahab ne aisa koi chitr bhi banaya hai jo islam ya isaai dharm se juda ho.. yani sidhe taur par unka maksad charcha hasil karna hi ho sakta hai.. kya bharat ki sarkar tasleema nasreen ya un jaise dure aise muslim lekhkon ko bhartiy nagreekta dene ki himmat dikha sakti hai jin par musalmano ki tedhi najren hain.. hussain sahab par bharat me itne kes hain iske bawjud jab unhe katar ne nagrikta di to bahart ne chun tak nahi ki.. itni himmat bhatar ko chhodkar duniya ka koi bhi desh kar sakta hai.. sharm bharat ki sarkaar ko karni chahiye..
ReplyDeletebahut samay baad laga ki purani duniya main vapas chali gayee....
ReplyDeletebooks, issues, views... great job everyone.
keep it alive.... long .long... long...never ending.. food for brain.. soul
@Dhiresh can I talk to u on phone?
send me the no. on my email
miss you
take care