Thursday, November 4, 2010

एक लम्हे का मौन



(एमानुएल ओर्तीज़ की यह कविता असद ज़ैदी के अनुवाद में पहली बार शायद २००७ में 'पहल' (मरहूम) में छपी थी. उसके बाद यह कई बार प्रकाशित हो चुकी है. इस कविता के अनेक नाटकीय पाठ और मंचन भी हुए हैं. राष्ट्रपति ओबामा के भारत आगमन पर हमारी तरफ़ से तोहफ़े के बतौर फिर से पेश की जाती है .)




कवितापाठ से पहले एक लम्हे का मौन

एमानुएल ओर्तीज़

अनुवाद: असद ज़ैदी



इससे पहले कि मैं यह कविता पढ़ना शुरू करूँ

मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें

ग्यारह सितम्बर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में मरे लोगों की याद में

और फिर एक मिनट का मौन उन सब के लिए जिन्हें प्रतिशोध में

सताया गया, क़ैद किया गया

जो लापता हो गए जिन्हें यातनाएँ दी गईं

जिनके साथ बलात्कार हुए एक मिनट का मौन

अफ़ग़ानिस्तान के मज़लूमों और अमरीकी मज़लूमों के लिए


और अगर आप इजाज़त दें तो


एक पूरे दिन का मौन

हज़ारों फिलस्तीनियों के लिए जिन्हें उनके वतन पर दशकों से क़ाबिज़

इस्त्राइली फ़ौजों ने अमरीकी सरपरस्ती में मार डाला

छह महीने का मौन उन पन्द्रह लाख इराक़ियों के लिए, उन इराक़ी बच्चों के लिए,

जिन्हें मार डाला ग्यारह साल लम्बी घेराबन्दी, भूख और अमरीकी बमबारी ने


इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ


दो महीने का मौन दक्षिण अफ़्रीक़ा के अश्वेतों के लिए जिन्हें नस्लवादी शासन ने

अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया। नौ महीने का मौन

हिरोशिमा और नागासाकी के मृतकों के लिए, जहाँ मौत बरसी

चमड़ी, ज़मीन, फ़ौलाद और कंक्रीट की हर पर्त को उधेड़ती हुई,

जहाँ बचे रह गए लोग इस तरह चलते फिरते रहे जैसे कि ज़िंदा हों।

एक साल का मौन विएतनाम के लाखों मुर्दों के लिए --

कि विएतनाम किसी जंग का नहीं, एक मुल्क का नाम है --

एक साल का मौन कम्बोडिया और लाओस के मृतकों के लिए जो

एक गुप्त युद्ध का शिकार थे -- और ज़रा धीरे बोलिए,

हम नहीं चाहते कि उन्हें यह पता चले कि वे मर चुके हैं। दो महीने का मौन

कोलम्बिया के दीर्घकालीन मृतकों के लिए जिनके नाम

उनकी लाशों की तरह जमा होते रहे

फिर गुम हो गए और ज़बान से उतर गए।


इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ।


एक घंटे का मौन एल सल्वादोर के लिए

एक दोपहर भर का मौन निकारागुआ के लिए

दो दिन का मौन ग्वातेमालावासिओं के लिए

जिन्हें अपनी ज़िन्दगी में चैन की एक घड़ी नसीब नहीं हुई।

४५ सेकिंड का मौन आकतिआल, चिआपास में मरे ४५ लोगों के लिए,

और पच्चीस साल का मौन उन करोड़ों ग़ुलाम अफ़्रीकियों के लिए

जिनकी क़ब्रें समुन्दर में हैं इतनी गहरी कि जितनी ऊँची कोई गगनचुम्बी इमारत भी होगी।

उनकी पहचान के लिए कोई डीएनए टेस्ट नहीं होगा, दंत चिकित्सा के रिकॉर्ड नहीं खोले जाएंगे।

उन अश्वेतों के लिए जिनकी लाशें गूलर के पेड़ों से झूलती थीं

दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम


एक सदी का मौन


यहीं इसी अमरीका महाद्वीप के करोड़ों मूल बाशिन्दों के लिए

जिनकी ज़मीनें और ज़िन्दगियाँ उनसे छीन ली गईं

पिक्चर पोस्ट्कार्ड से मनोरम खित्तों में --

जैसे पाइन रिज वूंडेड नी, सैंड क्रीक, फ़ालन टिम्बर्स, या ट्रेल ऑफ़ टिअर्स।

अब ये नाम हमारी चेतना के फ्रिजों पर चिपकी चुम्बकीय काव्य-पंक्तियाँ भर हैं।


तो आप को चाहिए ख़ामोशी का एक लम्हा ?

जबकि हम बेआवाज़ हैं

हमारे मुँहों से खींच ली गई हैं ज़बानें

हमारी आँखें सी दी गई हैं

ख़ामोशी का एक लम्हा

जबकि सारे कवि दफ़नाए जा चुके हैं

मिट्टी हो चुके हैं सारे ढोल।


इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ

आप चाहते हैं एक लम्हे का मौन

आपको ग़म है कि यह दुनिया अब शायद पहले जैसी नहीं रही रह जाएगी

इधर हम सब चाहते हैं कि यह पहले जैसी हर्गिज़ रहे।

कम से कम वैसी जैसी यह अब तक चली आई है।


क्योंकि यह कविता /११ के बारे में नहीं है

यह /१० के बारे में है

यह / के बारे में है

/ और / के बारे में है

यह कविता १४९२ के बारे में है।*


यह कविता उन चीज़ों के बारे में है जो ऐसी कविता का कारण बनती हैं।

और अगर यह कविता /११ के बारे में है, तो फिर :

यह सितम्बर , १९७१ के चीले देश के बारे में है,

यह सितम्बर १२, १९७७ दक्षिण अफ़्रीक़ा और स्टीवेन बीको के बारे में है,

यह १३ सितम्बर १९७१ और एटिका जेल, न्यू यॉर्क में बंद हमारे भाइयों के बारे में है।


यह कविता सोमालिया, सितम्बर १४, १९९२ के बारे में है।


यह कविता हर उस तारीख़ के बारे में है जो धुल-पुँछ रही है कर मिट जाया करती हैं।

यह कविता उन ११० कहानियो के बारे में है जो कभी कही नहीं गईं, ११० कहानियाँ

इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में जिनका कोई ज़िक्र नहीं पाया जाता,

जिनके लिए सीएनएन, बीबीसी, न्यू यॉर्क टाइम्स और न्यूज़वीक में कोई गुंजाइश नहीं निकलती।

यह कविता इसी कार्यक्रम में रुकावट डालने के लिए है।


आपको फिर भी अपने मृतकों की याद में एक लम्हे का मौन चाहिए ?

हम आपको दे सकते हैं जीवन भर का ख़ालीपन :

बिना निशान की क़ब्रें

हमेशा के लिए खो चुकी भाषाएँ

जड़ों से उखड़े हुए दरख़्त, जड़ों से उखड़े हुए इतिहास

अनाम बच्चों के चेहरों से झाँकती मुर्दा टकटकी

इस कविता को शुरू करने से पहले हम हमेशा के लिए ख़ामोश हो सकते हैं

या इतना कि हम धूल से ढँक जाएँ

फिर भी आप चाहेंगे कि

हमारी ओर से कुछ और मौन।


अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन

तो रोक दो तेल के पम्प

बन्द कर दो इंजन और टेलिविज़न

डुबा दो समुद्री सैर वाले जहाज़

फोड़ दो अपने स्टॉक मार्केट

बुझा दो ये तमाम रंगीन बत्तियाँ

डिलीट कर दो सरे इंस्टेंट मैसेज

उतार दो पटरियों से अपनी रेलें और लाइट रेल ट्रांज़िट।


अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन, तो टैको बैल ** की खिड़की पर ईंट मारो,

और वहाँ के मज़दूरों का खोया हुआ वेतन वापस दो। ध्वस्त कर दो तमाम शराब की दुकानें,

सारे के सारे टाउन हाउस, व्हाइट हाउस, जेल हाउस, पेंटहाउस और प्लेबॉय।


अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन

तो रहो मौन ''सुपर बॉल'' इतवार के दिन ***

फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई के रोज़ ****

डेटन की विराट १३-घंटे वाली सेल के दिन *****

या अगली दफ़े जब कमरे में हमारे हसीं लोग जमा हों

और आपका गोरा अपराधबोध आपको सताने लगे।


अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन

तो अभी है वह लम्हा

इस कविता के शुरू होने से पहले।


(११ सितम्बर, २००२)


--


टिप्पणियाँ :

* १४९२ के साल कोलम्बस अमरीकी महाद्वीप पर उतरा था।

** टैको बैल : अमरीका की एक बड़ी फ़ास्ट फ़ूड चेन है।

*** ''सुपर बॉल'' सन्डे : अमरीकी फ़ुटबॉल की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के फ़ाइनल का दिन। इस दिन अमरीका में ग़ैर-सरकारी तौर पर राष्ट्रीय छुट्टी हो जाती है।

**** फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई : अमरीका का ''स्वतंत्रता दिवस'' और राष्ट्रीय छुट्टी का दिन।

जुलाई १७७६ को अमरीका में ''डिक्लरेशन ऑफ इंडीपेंडेंस'' (स्वाधीनता का ऐलान) पारित किया गया था।

***** डेटन : मिनिओपोलिस नामक अमरीकी शहर का मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर।



एमानुएल ओर्तीज़ मेक्सिको-पुएर्तो रीको मूल के युवा अमरीकी कवि हैं। वह एक कवि-संगठनकर्ता हैं और आदि-अमरीकी बाशिन्दों, विभिन्न प्रवासी समुदायों और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए सक्रिय कई प्रगतिशील संगठनों से जुड़े हैं।


9 comments:

  1. बहुत सुन्दर! निशब्द घोर सनाटा छा गया पढकर!
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामना!

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  2. इन वजहों पर
    क्या मौन रहा जा सकता है?
    यह मौन रखना कौन सिखाता है?
    पहले उसे तलाश कर लाता हूँ।

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  3. इसी पन्ने के ऊपर के कोने से ही उठाकर - "समतल नहीं होगा कयामत तक/ पूरे मुल्क [तमाम कायनात ?] की छाती पर फैला मलबा"

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  4. भयानक रुप से प्रभावी कविता।
    इसे पढ़कर उभरता है मौन जो आवेश से भरा होता है, न्याय की आकाँक्षा जन्म लेती है।
    आधी बीत गयी है शायद बाकी आधी में ओबामा कुछ पाप धो पाने का प्रयास कर सकें अपने मुल्क के भविष्य की खातिर

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  5. द्विवेदी जी से सहमत !

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  6. अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन
    तो अभी है वह लम्हा
    इस कविता के शुरू होने से पहले।...

    यह कविता भी अंततः शुरू होगी...

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  7. bahut sundar baat kahi... maun aik jarurat hai.. so maun .. kal aapki post ko charchamanch par rakhuni... aapka aabhaar.

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  8. भाई धीरेश सैनी जी, असद ज़ैदी द्वारा अनुवादित, एमानुएल ओर्तीज़ की यह कविता विद्यार्थी काल में ले गयी, जब हमारे कुछ सर्वहारा टाइप मित्र ऐसी बातें करते थे और हम बड़े ही गौर से सुनते थे| वह वेदना कल जो थी, आज भी वही है, और सच अगर बोलने / सुनने की हिम्मत हो, तो आने वाले कल में भी स्वरूप बदल कर इस तरह की हो होगी| ये एक ऐसा विषय है जिस पर कई कई बार चर्चा होने के बाद भी अचर्चित ही लगता है|

    फिर भी इतनी सशक्त कालजयी काव्य कृति को पढ़ने का अवसर मुहैया कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|

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