Monday, December 6, 2010

मलबा -सुदीप बनर्जी

समतल नहीं होगा कयामत तक
पूरे मुल्क की छाती पर फैला मलबा
ऊबड़-खाबड़ ही रह जाएगा यह प्रसंग
इबादतगाह की आख़िरी अज़ान
विक्षिप्त अनंत तक पुकारती हुई।


7 comments:

  1. जब कौम गूंगी बहरी आलसी हो जाए...
    तो मलबा क़यामत तक कैसे हटेगा.


    कम शब्दों में बड़ी बात..

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  2. ऊबड़-खाबड़ ही रह जाएगा यह प्रसंग
    xxxxx
    बहुत सटीक बात ...एकदम सार्थक....शुक्रिया

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  3. ( छै दिसंबर दो हज़ार नौ को आपके ही ब्लॉग पर ये टिप्पणी दी थी )

    यहां समतल जमीन पर
    कब्रों की पैमाइश करते
    सौदागरों की फ़ौज
    अपनी खून आलूदा
    जुबानें लपलपाते हुए
    नयी बस्तियों
    मासूम जानों को
    दफ्न करने की फ़िराक में हैं

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  4. धीरेश सर, क्या मेरे ब्लॉग को अपने ब्लॉग रोल में डाल सकते हैं?
    http://mrityubodh.blogspot.com/

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  5. सुदीप जी की स्मृति को सलाम ।

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  6. गागर में सागर सा एहसास लिये यह कविता।

    ---------
    दिल्‍ली के दिलवाले ब्‍लॉगर।

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  7. yeah , It's not at all possible !

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