एक ज़िद्दी धुन
जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद / वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद
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Wednesday, December 28, 2016
मनमोहन की मशहूर कविता ‘आ राजा का बाजा’
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‘आ राजा का बाजा’ कविता के बारे में -मनमोहन पिछले दो-ढाई साल से इस कविता का एक अजीबोगरीब पाठ फेसबुक पर घूम रहा है और जो कभी भी, कहीं भी...
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Friday, September 16, 2016
सीपीआईएम की आंखों पर हिंदुत्व का परदा?
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`लग्गी जे तेरे कालज़े हाल्ले छुरी नहीं एह ना समझ शहर दी हालत बुरी नहीं` ( सुरजीत पात्तर की पंक्तियां) `देश में अभी जो राजनीति...
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Monday, March 3, 2014
नवउदारवाद और सांप्रदायिक फ़ासीवाद का उभार : प्रभात पटनायक
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जलेस के इलाहाबाद में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन के साझा संस्कृति संगम में प्रभात के आलेख का सम्पूर्ण पाठ जनतंत्र की वैधता के लिए अवाम के ब...
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