Saturday, March 7, 2009

अंतहीन श्रृंखला

इस समय तो भारतीय पुरुष जैसे अपने मनोरंजन के लिए रंग-बिरंगे पक्षी पाल लेता है, उपयोग के लिए गाय या घोड़ा पाल लेता है, उसी प्रकार वह एक स्त्री को भी पालता है तथा अपने पालित पशु-पक्षियों के समान ही वह उसके शरीर और मन पर अपना अधिकार समझता है। हमारे समाज के पुरुष के विवेकहीन जीवन का सजीव चित्रण देखना हो तो विवाह के समय गुलाब सी खिली हुई स्वस्थ बालिका को पांच वर्ष बाद देखिए। उस समय उस असमय प्रौढ़ा, कई दुर्बल संतानों की रोगिणी पीली माता में कौन सी विवशता, कौन सी रुला देनी वाली करुणा न मिलेगी?
-महादेवी वर्मा (श्रृंखला की कड़ियां में संकलित एक निबंध से)

पेटिंग- अमृता शेरगिल

3 comments:

  1. हिन्दी भाषा के विकास में अपना योगदान दें।
    रचनात्मक ब्लाग शब्दकार को रचना प्रेषित कर सहयोग करें।
    रायटोक्रेट कुमारेन्द्र

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  2. ... अच्छा संग्रह।

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  3. महादेवीजी की ये पंक्तियां बहुत ही कारूणिक हैं औऱ अमृता शेरगिल की यह कृत और भी कारणिक। बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई।

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