Saturday, January 28, 2012

थियो एंजोलोपॉलस : `अतीत कभी अतीत नहीं होता`


महान ग्रीक फिल्मकार थियो एंजोलोपॉलस का 24 जनवरी 2012 मंगलवार को एथेंस में सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। 76 वर्षीय एंजोलोपॉलस के निधन की जानकारी कम से कम मुझे हिंदी के वरिष्ठ कवि असद ज़ैदी की फेसबुक वॉल से मिली। यहां असद जी की उसी पोस्ट का भारतभूषण तिवारी द्वारा किया गया अनुवाद दिया जा रहा है-


थियो एंजेलोपॉलस नहीं रहे. पता नहीं कैसे वर्णन किया जाए इस क्षति का: वे हमारे समय की सबसे अनमोल फ़िल्म शख्सियत थे. उनकी काव्यात्मक दृष्टि, ऐतिहासिक फैलाव, राजनीतिक सरोकार, और परिवर्तन, निर्वासन और पराजय इन विषयों से उनकी सतत भिड़ंत उन्हें सिनेमा की दुनिया में एक अद्वितीय हस्ती बनाते हैं. उन्हें ग्राम्शियन ढंग का फ़िल्मकार भी कहा जा सकता है. 
उनकी कार्य पद्धति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बड़े सामान्य ढंग से कहा, "मैं फ़िल्म वैसे ही शूट करता हूँ जैसे साँस लेता हूँ. "

उनके एक साक्षात्कार से लिए गए कुछ उद्धरण:

"दुनिया से जो मुझे मिल रहा है, मैं उसका संवेदनशील राजप्रतिनिधि बनने का प्रयास करता हूँ. यहाँ तक कि ऐतिहासिक विषय वस्तु पर बनाई गई मेरी फिल्में भी उस बुनियाद को ज़ाहिर करती हैं जिन पर हमारा आज तामीर है. यहाँ की तानाशाही की समस्या से मैं क्यों अक्सर मुखातिब होता हूँ? यह इस समस्या की जड़ और उसकी फ़ितरत को बयां करने की कोशिश है. मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि अगर कोई लेखक/कलाकार आज को समझने की जद्दोजहद में है, तो उसके लिए अतीत का अन्वेषण करना और वहां किसी न किसी परिघटना के कारणों को ढूंढना अपरिहार्य होगा."
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"बहुत से लोगों का कोई अतीत नहीं होता. व्यक्तिगत तौर पर मैं उन में दिलचस्पी रखता हूँ जिनका अतीत है. इसके अलावा, अतीत कभी अतीत नहीं होता. वह वर्तमान और भविष्य दोनों में होता है. जब मैं फ़िल्म बना रहा होता हूँ, तब मैं किसी चीज़ की बुनियाद रखने की कोशिश कर रहा होता हूँ न कि उसे बर्बाद करने की. बर्बादी से बर्बादी ही होती है. जो मेरे आसपास हो रहा है मैं उस से रहित नहीं हो सकता. नागरी कर्तव्य और ज़िम्मेदारी कलाकार के अत्यंत महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों में से एक है."
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"मैं न तो निराशावादी हूँ, और न आशावादी. आशावादी होने का मतलब है तथ्यों को साफ़-साफ़ न देखना. कुछ कुछ मतलब यह कि इंसान दुनिया में बेहद सार्थक परिवर्तन के लिए हस्तक्षेप नहीं दे सकता. निराशावादी होने का मतलब है बेहतर दुनिया के सपने को, संभावना को छोड़ देना, तज देना. दोनों ही संकल्पनाओं में गतिरोध आ जाता है. व्यक्तिगत तौर पर मैं तर्कपूर्ण ढंग से सोचने की, साफ़-साफ़ देखने की कोशिश करता हूँ."
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"जो उन दिनों हमारे भविष्य के प्रति निराशाजनक संभावनाओं का सिलसिला नज़र आती थीं, हर उस चीज़ की अब पुष्टि हो रही है. मैं उस पीढ़ी का हूँ जो सोचती थी कि हम दुनिया को बदल डालेंगे. 2000 के आसपास ऐसा लगा कि सपना टूट गया है."

1 comment:

मोहन श्रोत्रिय said...

बेहद शिक्षाप्रद और विचारोत्तेजक अंश हैं ये, साक्षात्कार से लिए गए. आशावादी और निराशावादी न होने के कारण उनकी पैनी दृष्टि का परिचय देते हैं. उन्हें मेरी श्रद्धांजलि.