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Saturday, January 30, 2010

छोट बड़ो सब सम बसैं, हो रैदास प्रसन्न



जात पात के फेर में, उरझत हैं सब लोग!
मानवता को खात है, रैदास जात का रोग!!
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जात पात में जात है, ज्यों केलन में पात
रैदास न माणुस जुड़ सके, जब तक जात न जात!!
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ऐसा चाहौं राज मैं, जहां मिलै सबै को अन्न!
छोट बड़ो सब सम बसैं, हो रैदास प्रसन्न!!
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रोहतक से एक मित्र राजकुमार ने फ़ोन पर बताया कि वे आज रैदास जयंती मना रहे हैं. इस मौके पर इस कवि की कुछ पंक्तियाँ आप के साथ बाँट रहा हूँ. चित्र राजकुमार का बनाया हुआ है और शुक्र है कि इसमें रैदास पर थोपी गयी छाप-तिलक की ब्राह्मण छवि नहीं है.