वरिष्ठ कवि वीरेन डंगवाल कैंसर से जूझ रहे हैं, पूरी ज़िंदादिली के साथ। उनके दोस्तों और उन्हें चाहने वालों ने अपने इस प्यारे कवि को पिछले दिनों एक कार्यक्रम आयोजित कर दिल्ली बुलाया था। जाने क्यों यह बात सुधीश पचौरी को हज़म नहीं हुई और उन्होंने `हिन्दुस्तान` अख़बार में में वमन कर डाला। जनवाद के नाम पर मलाई चाटने के बाद वक़्त बदलते ही `आधुनिक-उत्तर आधुनिक` होकर वामपंथ को कोसने और हर बेशर्मी को जायज ठहराने के धंधे में जुटे शख्स की ऐसी घिनौनी हरकत पर हैरानी भी नहीं है। `समयांतर` के `दिल्ली मेल` स्तंभ में इस बारे में एक तीखी टिप्पणी छपी है जिसे यहां साझा किया जा रहा है।
शारीरिक बनाम मानसिक रुग्णता
पहले यह टिप्पणी
देख लीजिए:
''एक गोष्ठी में
एक थोड़े
जी आए
और एक
अकादमी बना
दिए गए
कवि के
बारे में
बोले वह
उन थोड़े
से कवियों
में हैं,
जो इन
दिनों अस्वस्थ
चल रहे
हैं। वह
गोष्ठी कविता
की अपेक्षा
कवि के
स्वास्थ्य पर गोष्ठित हो गई।
फिर स्वास्थ्य
से फिसलकर
कवि की
मिजाज पुरसी
की ओर
आ गई।
थोड़े जी
बोले कि
उनका अस्वस्थ
होना एक
अफवाह है,
क्योंकि उनके
चेहरे पर
हंसी व
शरारत अब
भी वैसी
ही है।
(क्या गजब
'फेस रीडिंग`
है? जरा
शरारतें भी
गिना देते
हुजूर)।
हमने जब
थोड़े जी
के बारे
में उस
थोड़ी सी
शाम में
मिलने वाले
थोड़ों से
सुना, तो
लगा कि
यार ये
सवाल तो
थोड़े जी
से किसी
ने पूछा
ही नहीं
कि भई
थोड़े जी
आप कविता
करते हैं
या बीमारी
करते हैं?
बीमारी करते
हैं तो
क्या वे
बुजुर्ग चमचे
आप के
डाक्टर हैं
जो दवा
दे रहे
हैं। लेकिन
'चमचई` में
ऐसे सवाल
पूछना मना
है।``
यह टुकड़ा 'ट्विटरा
गायन, ट्विटरा
वादन!` शीर्षक
व्यंग्य का
हिस्सा है
जो दिल्ली
से प्रकाशित
होनेवाले हिंदी
दैनिक हिंदुस्तान
में 6 अक्टूबर
को छपा
था। इस
व्यंग्य की
विशेषता यह
है कि
यह एक
ऐसे व्यक्ति
को निशाना
बनाता है
जो एक
दुर्दांत बीमारी
से लड़
रहा है।
हिंदी के
अधिकांश लोग
जानते हैं
कि वह
कौन व्यक्ति
है। दुनिया
में शायद
ही कोई
लेखक हो
जो बीमार
पर व्यंग्य
करने की
इस तरह
की निर्ममता,
रुग्ण मानसिकता
और कमीनापन
दिखाने की
हिम्मत कर
सकता हो।
पर यह कुकर्म
सुधीश पचौरी
ने किया
है जिसे
अखबार 'हिंदी
साहित्यकार` बतलाता है। हिंदीवाले जानते
हैं यह
व्यक्ति खुरचनिया
व्यंग्यकार है जिसकी कॉलमिस्टी संबंधों
और चाटुकारिता
के बल
पर चलती
है।
इस व्यंग्य में
उस गोष्ठी
का संदर्भ
है जो
साहित्य अकादेमी
पुरस्कार से
सम्मानित सबसे
महत्त्वपूर्ण समकालीन जन कवि वीरेन
डंगवाल को
लेकर दिल्ली
में अगस्त
में हुई
थी। वह
निजी व्यवहार
के कारण
भी उतने
ही लोकप्रिय
हैं जितने
कि कवि
के रूप
में। वीरेन
उन साहसी
लोगों में
से हैं
जिन्होंने अपनी बीमारी के बारे
में छिपाया
नहीं है।
वह कैंसर
से पीडि़त
हैं और
दिल्ली में
उनका इलाज
चल रहा
है। पिछले
ही माह
उनका आपरेशन
भी हुआ
है।
हम व्यंग्य के
नाम पर
इस तरह
की अमानवीयता
की भत्र्सना
करते हैं
और हिंदी
समाज से
भी अपील
करते हैं
कि इस
व्यक्ति की,
जो आजीवन
अध्यापक रहा
है,
निंदा करने से न चूके।
यह सोचकर
भी हमारी
आत्मा कांपती
है कि
यह अपने
छात्रों को
क्या पढ़ाता
होगा। हम
उस अखबार
यानी हिंदुस्तान
और उसके
संपादक की
भी निंदा
करते हैं
जिसने यह
व्यंग्य बिना
सोचे-समझे
छपने दिया।
हम मांग
करते हैं
कि अखबार
इस घटियापन
के लिए
तत्काल माफी
मांगे और
इस स्तंभ
को बंद
करे।
पर कवि वीरेन
डंगवाल पर
यह अक्टूबर
में हुआ
दूसरा हमला
था। ऐन
उसी दिन
जनसत्ता में
'पुरस्कार लोलुप समय में` शीर्षक
लेख छपा
और उसमें
अकारण वीरेन
को घसीटा
गया कि
उन्हें किस
गलत तरीके
से साहित्य
अकादेमी पुरस्कार
मिला। लेखक
यह कहने
की हिम्मत
नहीं जुटा
पाया कि
वह इसके
लायक नहीं
थे। पर
अरुण कमल
और लीलाधर
जगूड़ी जैसे
अवसरवादियों को यह पुरस्कार क्यों
और किस
तरह मिला
इस पर
कोई बात
नहीं की
गई(क्योंकि
वे अकादेमी
के सदस्य
हैं)।
पर सबसे
विचित्र बात
यह है
कि इस
लेख के
लेखक ने
यह नहीं
बतलाया कि
साहित्य अकादेमी
के इतिहास
में अब
तक का
सबसे भ्रष्ट
पुरस्कार अगर
किसी को
मिला है
तो वह
उदय प्रकाश
को मिला
है जो
तत्कालीन उपाध्यक्ष
और वर्तमान
अध्यक्ष विश्वनाथ
प्रसाद तिवारी
के कारण
दिया गया।
यह पुरस्कार
यही नहीं
कि रातों-रात एक
खराब कहानी
को उपन्यास
बनाकर दिया
गया बल्कि
इसे लेने
के लिए
गोरखपुर के
हिंदू फासिस्ट
नेता आदित्यनाथ
के दबाव
का भी
इस्तेमाल किया
गया।
इस के दो
कारण हो
सकते हैं।
पहला वामपंथियों
पर किसी
न किसी
बहाने आक्रमण
करना और
दूसरा लेखक
ही नहीं
बल्कि अखबार
का संपादक
भी अकादेमी
के टुकड़ों
से लाभान्वित
होता रहता
है और
अगले चार
वर्षों तक
होता रहेगा।
---
समयांतर के नवंबर, 2013 अंक से साभार
(इस बारे में HT media ltd की चेयरपर्सन शोभना भरतिया को पत्र मेल कर भेजकर विरोेध भी जताया गया था।)
(इस बारे में HT media ltd की चेयरपर्सन शोभना भरतिया को पत्र मेल कर भेजकर विरोेध भी जताया गया था।)