Showing posts with label Khwajadas. Show all posts
Showing posts with label Khwajadas. Show all posts

Friday, November 15, 2013

ख्वाजादास के पद वाया मृत्युंजय



पिछले कुछ दिनों से वरिष्ठ कवि असद ज़ैदी पर महाकवि ख्वाजादास की कृपा बनी हुई है। खुशी की बात यह है कि अब वे हमारे एक और बेहतरीन हिंदी कवि मृत्युंजय पर भी नाजिल हुए हैं। उन्होंने जो फरमाया, वह मृत्युंजय भाई की ही जुबानी-
 


[ख्वाजादास से असद जी ज़ैदी साहब ने तआररूफ़ करवाया था। असद जी की साखी पर मुझ नाचीज पर भी उनकी अहेतुक कृपा बरसी।]

[क]
सुबकत-अफनत ख्वाजादास !
नैहर-सासुर दोनों छूटा टूटी निर्गुनिये से आस
लतफत लोर हकासल चोला बीच करेजे अटकी फांस
गगने-पवने, माटी-पानी, अगिन काहु पर नहिं बिस्वास
थहकल गोड़ रीढ़ पर हमला जुद्धभूमि में उखड़ी  सांस  
सुन्न सिखर पर जख्म हरियरा फूलन लागे चहुंदिस बांस 
जेतने संगी सब मतिभंगी नुचड़ी-चिथड़ी दिखे उजास
बिरिछे बिरिछे टंगी चतुर्दिक फरहादो शीरीं की लाश

[ख]
ख्वाजादास पिया नहिं बहुरे !
नैनन नीर न जीव ठेकाने कथा फेरु नहिं कहु रे
यह रणभूमि नित्यप्रति खांडा गर्दन पे लपकहु रे 
ज़ोर जुलुम तन-मन-धन लूटत, जेठे कभु कभु लहुरे
कवन राहि तुम बिन अवगाहों खाय मरो अब महुरे
जहर तीर बेधत हैं तन-मन अगिन कांट करकहु रे
तुम्हरी आस फूल गूलर कै मन हरिना डरपहु रे
नाहिं कछू, हम कटि-लड़ि मरबों पाछे जनि आवहु रे

[ग]
ख्वाजा का पियवा रूठा रे !
भीतर धधकत मुंह नहिं खोलत दुबिधा परा अनूठा रे
आवहु सखि मिलि गेह सँभारो गुरु के छपरा टूटा रे
कोही कूर कुचाली कादर कुटिल कलंकी लूटा रे  
जप तप जोग समाधि हकीकी इश्क कोलाहल झूठा रे
पछिम दिसा से चक्रवात घट-पट-पनघट सब छूटा रे
मन महजिद पे मूसर धमकत राई-रत्ता कूटा रे   
सहमा-सिकुड़ा-डरा देस का पत्ता, बूटा-बूटा रे  

[घ]
ख्वाजा, संत बजार गये !
बधना असनी रेहल माला सब कुछ यहीं उतार गये
जतन से ओढ़ी धवल कामरी कचड़ा बीच लबार गये 
जनम करम की नासी सब गति करने को व्योपार गये
छोड़ि संग लकुटी-कामरि को हाथ लिये ज्योनार गये
नेम पेम जप जोग ज्ञान सब झोंकि आगि पतवार गये
हड़बड़ तड़बड़ लंगटा-लोटा बीच गली में डार गये
नये राज की नयी नीत के सिजदे को दरबार गये
 
[ङ]
ख्वाजा कहा होय अफनाये !
राजनीति बिष बेल लहालह धरम क दूध पियाये
देवल महजिद पण्य छापरी पंडित - मुल्ला छाये
सतचितसंवेदन पजारि के कुबुधि फसल उपजाये
देस पीर की झोरी - चादर साखा मृग नोचवाये
मन भीतर सौ-सौ तहखाना घृणा प्रपंच रचाये
दुरदिन दमन दुक्ख दरवाजे दंभिन राज बनाये
सांवर सखी संग हम रन में जो हो सो हो जाये

(ऊपर पेटिंग जाने-माने चित्रकार मनजीत बावा की है।)