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मैं अभी कुछ देर पहले मुज़फ़्फ़रनगर में एक साहित्यप्रेमी दोस्त की दूकान पर इस लालच से गया था कि कुछ पुराने दोस्त मिलेंगे. यहाँ खबर मिली कि `आवारा मसीहा` के लेखक विष्णु प्रभाकर नहीं रहे हैं. ई टीवी का कोई नुमाइंदा किसी ऐसे शख्स को तलाशने के लिए परेशान था जो प्रभाकर जी के साथ रहा हो और जिसके पास उनके ख़त वगैरा हों. दरअसल विष्णु प्रभाकर जी का जन्म मुज़फ़्फ़रनगर जिले के मीरापुर कस्बे (तब गाँव) में २० जुलाई १९१२ को हुआ था. बताते हैं कि वे कम उम्र में ही मुज़फ़्फ़रनगर से हिसार (हरियाणा) आ गए थे।
पिछले कई वर्षों में उन्हें बीमारी और दुर्घटना की वजह से बार-बार अस्पताल जाना पड़ा था लेकिन उनकी जिजीविषा उन्हें हर बार जिलाए रखती थी. इन्हीं दिनों कई पत्रिकाओं में उन पर उनकी बाद की पीढ़ी के लेखकों के कुछ लेख भी छपे. समयांतर में पंकज बिष्ट ने भी बेहद सम्मान और आत्मीय ढंग से इस वरिष्ठ कथाकार पर लिखा था. यह वाकई बेहद दुर्लभ था कि हिंदी के वयोवृद्ध लेखक से उनके बाद की पीढ़ी ऐसा गर्व भरा रिश्ता महसूस करती हो. शायद त्रिलोचन,शमशेर और नागार्जुन के बाद वे इस तरह के अकेले हिंदी लेखक बचे थे.