Sunday, June 12, 2011

दस दिन का अनशन - हरिशंकर परसाई


10 जनवरी


आज मैंने बन्नू से कहा, " देख बन्नू, दौर ऐसा आ गया है की संसद, क़ानून, संविधान, न्यायालय सब बेकार हो गए हैं. बड़ी-बड़ी मांगें अनशन और आत्मदाह की धमकी से पूरी हो रही हैं. २० साल का प्रजातंत्र ऐसा पक गया है कि एक आदमी के मर जाने या भूखा रह जाने की धमकी से ५० करोड़ आदमियों के भाग्य का फैसला हो रहा है. इस वक़्त तू भी उस औरत के लिए अनशन कर डाल."
बन्नू सोचने लगा. वह राधिका बाबू की बीवी सावित्री के पीछे सालों से पड़ा है. भगाने की कोशिश में एक बार पिट भी चुका है. तलाक दिलवाकर उसे घर में डाल नहीं सकता, क्योंकि सावित्री बन्नू से नफरत करती है.
सोचकर बोला, " मगर इसके लिए अनशन हो भी सकता है? "
मैंने कहा, " इस वक़्त हर बात के लिए हो सकता है. अभी बाबा सनकीदास ने अनशन करके क़ानून बनवा दिया है कि हर आदमी जटा रखेगा और उसे कभी धोएगा नहीं. तमाम सिरों से दुर्गन्ध निकल रही है. तेरी मांग तो बहुत छोटी है- सिर्फ एक औरत के लिए."
सुरेन्द्र वहां बैठा था. बोला, " यार कैसी बात करते हो! किसी की बीवी को हड़पने के लिए अनशन होगा? हमें कुछ शर्म तो आनी चाहिए. लोग हँसेंगे."
मैंने कहा, " अरे यार, शर्म तो बड़े-बड़े अनशनिया साधु-संतों को नहीं आई. हम तो मामूली आदमी हैं. जहाँ तक हंसने का सवाल है, गोरक्षा आन्दोलन पर सारी दुनिया के लोग इतना हंस चुके हैं क उनका पेट दुखने लगा है. अब कम-से-कम दस सालों तक कोई आदमी हंस नहीं सकता. जो हंसेगा वो पेट के दर्द से मर जाएगा."
बन्नू ने कहा," सफलता मिल जायेगी?"
मैंने कहा," यह तो 'इशू' बनाने पर है. अच्छा बन गया तो औरत मिल जाएगी. चल, हम 'एक्सपर्ट' के पास चलकर सलाह लेते हैं. बाबा सनकीदास विशेषज्ञ हैं. उनकी अच्छी 'प्रैक्टिस' चल रही है. उनके निर्देशन में इस वक़्त चार आदमी अनशन कर रहे हैं."
हम बाबा सनकीदास के पास गए. पूरा मामला सुनकर उन्होंने कहा," ठीक है. मैं इस मामले को हाथ में ले सकता हूँ. जैसा कहूँ वैसा करते जाना. तू आत्मदाह की धमकी दे सकता है?"
बन्नू कांप गया. बोला," मुझे डर लगता है."
"जलना नहीं है रे. सिर्फ धमकी देना है."
"मुझे तो उसके नाम से भी डर लगता है."
बाबा ने कहा," अच्छा तो फिर अनशन कर डाल. 'इशू' हम बनायेंगे."
बन्नू फिर डरा. बोला," मर तो नहीं जाऊँगा."
बाबा ने कहा," चतुर खिलाड़ी नहीं मरते. वे एक आँख मेडिकल रिपोर्ट पर और दूसरी मध्यस्थ पर रखते हैं. तुम चिंता मत करो. तुम्हें बचा लेंगे और वह औरत भी दिला देंगे."


11 जनवरी

आज बन्नू आमरण अनशन पर बैठ गया. तम्बू में धुप-दीप जल रहे हैं. एक पार्टी भजन गा रही है - 'सबको
सन्मति दे भगवान्!'. पहले ही दिन पवित्र वातावरण बन गया है. बाबा सनकीदास इस कला के बड़े उस्ताद हैं. उन्होंने बन्नू के नाम से जो वक्तव्य छपा कर बंटवाया है, वो बड़ा ज़ोरदार है. उसमें बन्नू ने कहा है कि 'मेरी आत्मा से पुकार उठ रही है कि मैं अधूरी हूँ. मेरा दूसरा खंड सावित्री में है. दोनों आत्म-खण्डों को मिलाकर एक करो या मुझे भी शरीर से मुक्त करो. मैं आत्म-खण्डों को मिलाने के लिए आमरण अनशन पर बैठा हूँ. मेरी मांग है कि सावित्री मुझे मिले. यदि नहीं मिलती तो मैं अनशन से इस आत्म-खंड को अपनी नश्वर देह से मुक्त कर दूंगा. मैं सत्य पर हूँ, इसलिए निडर हूँ. सत्य की जय हो!'
सावित्री गुस्से से भरी हुई आई थी. बाबा सनकीदास से कहा," यह हरामजादा मेरे लिए अनशन पर बैठा है ना?"
बाबा बोले," देवी, उसे अपशब्द मत कहो. वह पवित्र अनशन पर बैठा है. पहले हरामजादा रहा होगा. अब नहीं रहा. वह अनशन कर रहा है."
सावित्री ने कहा," मगर मुझे तो पूछा होता. मैं तो इस पर थूकती हूँ."
बाबा ने शान्ति से कहा," देवी, तू तो 'इशू' है. 'इशू' से थोड़े ही पूछा जाता है. गोरक्षा आन्दोलन वालों ने गाय से कहाँ पूछा था कि तेरी रक्षा के लिए आन्दोलन करें या नहीं. देवी, तू जा. मेरी सलाह है कि अब तुम या तुम्हारा पति यहाँ न आएं. एक-दो दिन में जनमत बन जाएगा और तब तुम्हारे अपशब्द जनता बर्दाश्त नहीं करेगी."
वह बड़बड़ाती हुई चली गई.
बन्नू उदास हो गया. बाबा ने समझाया," चिंता मत करो. जीत तुम्हारी होगी. अंत में सत्य की ही जीत होती है."


13 जनवरी

बन्नू भूख का बड़ा कच्चा है. आज तीसरे ही दिन कराहने लगा. बन्नू पूछता है, " जयप्रकाश नारायण आये?"
मैंने कहा," वे पांचवें या छठे दिन आते हैं. उनका नियम है. उन्हें सूचना दे दी है."
वह पूछता है," विनोबा ने क्या कहा है इस विषय में?"
बाबा बोले," उन्होंने साधन और साध्य की मीमांसा की है, पर थोड़ा तोड़कर उनकी बात को अपने पक्ष में उपयोग किया जा सकता है."
बन्नू ने आँखें बंद कर लीं. बोला,"भैया, जयप्रकाश बाबू को जल्दी बुलाओ."
आज पत्रकार भी आये थे. बड़ी दिमाग-पच्ची करते रहे.
पूछने लगे," उपवास का हेतु कैसा है? क्या वह सार्वजनिक हित में है? "
बाबा ने कहा," हेतु अब नहीं देखा जाता. अब तो इसके प्राण बचाने की समस्या है. अनशन पर बैठना इतना बड़ा आत्म-बलिदान है कि हेतु भी पवित्र हो जाता है."
मैंने कहा," और सार्वजनिक हित इससे होगा. कितने ही लोग दूसरे की बीवी छीनना चाहते हैं, मगर तरकीब उन्हें नहीं मालूम. अनशन अगर सफल हो गया, तो जनता का मार्गदर्शन करेगा."


14 जनवरी

बन्नू और कमज़ोर हो गया है. वह अनशन तोड़ने की धमकी हम लोगों को देने लगा है. इससे हम लोगों का मुंह काला हो जायेगा. बाबा सनकीदास ने उसे बहुत समझाया.
आज बाबा ने एक और कमाल कर दिया. किसी स्वामी रसानंद का वक्तव्य अख़बारों में छपवाया है. स्वामीजी ने कहा है कि मुझे तपस्या के कारण भूत और भविष्य दिखता है. मैंने पता लगाया है क बन्नू पूर्वजन्म में ऋषि था और सावित्री ऋषि की धर्मपत्नी. बन्नू का नाम उस जन्म में ऋषि वनमानुस था. उसने तीन हज़ार वर्षों के बाद अब फिर नरदेह धारण की है. सावित्री का इससे जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध है. यह घोर अधर्म है कि एक ऋषि की पत्नी को राधिका प्रसाद-जैसा साधारण आदमी अपने घर में रखे. समस्त धर्मप्राण जनता से मेरा आग्रह है कि इस अधर्म को न होने दें.
इस वक्तव्य का अच्छा असर हुआ. कुछ लोग 'धर्म की जय हो!' नारे लगाते पाए गए. एक भीड़ राधिका बाबू के घर के सामने नारे लगा रही थी----
"राधिका प्रसाद-- पापी है! पापी का नाश हो! धर्म की जय हो."
स्वामीजी ने मंदिरों में बन्नू की प्राण-रक्षा के लिए प्रार्थना का आयोजन करा दिया है.


15 जनवरी

रात को राधिका बाबू के घर पर पत्थर फेंके गए.
जनमत बन गया है.
स्त्री-पुरुषों के मुख से यह वाक्य हमारे एजेंटों ने सुने---
"बेचारे को पांच दिन हो गए. भूखा पड़ा है."
"धन्य है इस निष्ठां को."
"मगर उस कठकरेजी का कलेजा नहीं पिघला."
"उसका मरद भी कैसा बेशरम है."
"सुना है पिछले जन्म में कोई ऋषि था."
"स्वामी रसानंद का वक्तव्य नहीं पढ़ा!"
"बड़ा पाप है ऋषि की धर्मपत्नी को घर में डाले रखना."
आज ग्यारह सौभाग्यवतियों ने बन्नू को तिलक किया और आरती उतारी.
बन्नू बहुत खुश हुआ. सौभाग्यवतियों को देख कर उसका जी उछलने लगता है.
अखबार अनशन के समाचारों से भरे हैं.
आज एक भीड़ हमने प्रधानमन्त्री के बंगले पर हस्तक्षेप की मांग करने और बन्नू के प्राण बचाने की अपील करने भेजी थी. प्रधानमन्त्री ने मिलने से इनकार कर दिया.
देखते हैं कब तक नहीं मिलते.
शाम को जयप्रकाश नारायण आ गए. नाराज़ थे. कहने लगे," किस-किस के प्राण बचाऊं मैं? मेरा क्या यही धंधा है? रोज़ कोई अनशन पर बैठ जाता है और चिल्लाता है प्राण बचाओ. प्राण बचाना है तो खाना क्यों नहीं लेता? प्राण बचाने के लिए मध्यस्थ की कहाँ ज़रुरत है? यह भी कोई बात है! दूसरे की बीवी छीनने के लिए अनशन के पवित्र अस्त्र का उपयोग किया जाने लगा है."
हमने समझाया," यह 'इशू' ज़रा दूसरे किस्म है. आत्मा से पुकार उठी थी."
वे शांत हुए. बोले," अगर आत्मा की बात है तो मैं इसमें हाथ डालूँगा."
मैंने कहा," फिर कोटि-कोटि धर्मप्राण जनता की भावना इसके साथ जुड़ गई है."
जयप्रकाश बाबू मध्यस्थता करने को राज़ी हो गए. वे सावित्री और उसके पति से मिलकर फिर प्रधानमन्त्री से मिलेंगे.
बन्नू बड़े दीनभाव जयप्रकाश बाबू की तरफ देख रहा था.
बाद में हमने उससे कहा," अबे साले, इस तरह दीनता से मत देखा कर. तेरी कमज़ोरी ताड़ लेगा तो कोई भी नेता तुझे मुसम्मी का रस पिला देगा. देखता नहीं है, कितने ही नेता झोलों में मुसम्मी रखे तम्बू के आस-पास घूम रहे हैं."


16 जनवरी

जयप्रकाश बाबू की 'मिशन' फेल हो गई. कोई मानने को तैयार नहीं है. प्रधानमन्त्री ने कहा," हमारी बन्नू के साथ सहानुभूति है, पर हम कुछ नहीं कर सकते. उससे उपवास तुडवाओ, तब शान्ति से वार्ता द्वारा समस्या का हल ढूँढा जाएगा."
हम निराश हुए. बाबा सनकीदास निराश नहीं हुए. उन्होंने कहा," पहले सब मांग को नामंज़ूर करते हैं. यही प्रथा है. अब आन्दोलन तीव्र करो. अखबारों में छपवाओ क बन्नू की पेशाब में काफी 'एसीटोन' आने लगा है. उसकी हालत चिंताजनक है. वक्तव्य छपवाओ कि हर कीमत पर बन्नू के प्राण बचाए जाएँ. सरकार बैठी-बैठी क्या देख रही है? उसे तुरंत कोई कदम उठाना चाहिए जिससे बन्नू के बहुमूल्य प्राण बचाए जा सकें."
बाबा अद्भुत आदमी हैं. कितनी तरकीबें उनके दिमाग में हैं. कहते हैं, "अब आन्दोलन में जातिवाद का पुट देने का मौका आ गया है. बन्नू ब्राम्हण है और राधिकाप्रसाद कायस्थ. ब्राम्हणों को भड़काओ और इधर कायस्थों को. ब्राम्हण-सभा का मंत्री आगामी चुनाव में खड़ा होगा. उससे कहो कि यही मौका है ब्राम्हणों के वोट इकट्ठे ले लेने का."
आज राधिका बाबू की तरफ से प्रस्ताव आया था कि बन्नू सावित्री से राखी बंधवा ले.
हमने नामंजूर कर दिया.


17 जनवरी

आज के अखबारों में ये शीर्षक हैं---
"बन्नू के प्राण बचाओ!
बन्नू की हालत चिंताजनक!'
मंदिरों में प्राण-रक्षा के लिए प्रार्थना!"
एक अख़बार में हमने विज्ञापन रेट पर यह भी छपवा लिया---
"कोटि-कोटि धर्म-प्राण जनता की मांग---!
बन्नू की प्राण-रक्षा की जाए!
बन्नू की मृत्यु के भयंकर परिणाम होंगे !"
ब्राम्हण-सभा के मंत्री का वक्तव्य छप गया. उन्होंने ब्राम्हण जाति की इज्ज़त का मामला इसे बना लिया था. सीधी कार्यवाही की धमकी दी थी.
हमने चार गुंडों को कायस्थों के घरों पर पत्थर फेंकने के लिए तय कर किया है.
इससे निपटकर वही लोग ब्राम्हणों के घर पर पत्थर फेंकेंगे.
पैसे बन्नू ने पेशगी दे दिए हैं.
बाबा का कहना है क कल या परसों तक कर्फ्य लगवा दिया जाना चाहिए. दफा 144 तो लग ही जाये. इससे 'केस' मज़बूत होगा.


18 जनवरी

रात को ब्राम्हणों और कायस्थों के घरों पर पत्थर फिंक गए.
सुबह ब्राम्हणों और कायस्थों के दो दलों में जमकर पथराव हुआ.
शहर में दफा 144 लग गयी.
सनसनी फैली हुई है.
हमारा प्रतिनिधि मंडल प्रधानमन्त्री से मिला था. उन्होंने कहा," इसमें कानूनी अडचनें हैं. विवाह-क़ानून में संशोधन करना पड़ेगा."
हमने कहा," तो संशोधन कर दीजिये. अध्यादेश जारी करवा दीजिये. अगर बन्नू मर गया तो सारे देश में आग लग जायेगी."
वे कहने लगे," पहले अनशन तुडवाओ ? "
हमने कहा," सरकार सैद्धांतिक रूप से मांग को स्वीकार कर ले और एक कमिटी बिठा दे, जो रास्ता बताये कि वह औरत इसे कैसे मिल सकती है."
सरकार अभी स्थिति को देख रही है. बन्नू को और कष्ट भोगना होगा.
मामला जहाँ का तहाँ रहा. वार्ता में 'डेडलॉक' आ गया है.
छुटपुट झगड़े हो रहे हैं.
रात को हमने पुलिस चौकी पर पत्थर फिंकवा दिए. इसका अच्छा असर हुआ.
'प्राण बचाओ'---की मांग आज और बढ़ गयी.


19 जनवरी

बन्नू बहुत कमज़ोर हो गया है. घबड़ाता है. कहीं मर न जाए.
बकने लगा है कि हम लोगों ने उसे फंसा दिया है. कहीं वक्तव्य दे दिया तो हम लोग 'एक्सपोज़' हो जायेंगे.
कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा. हमने उससे कहा कि अब अगर वह यों ही अनशन तोड़ देगा तो जनता उसे मार डालेगी.
प्रतिनिधि मंडल फिर मिलने जाएगा.


20 जनवरी

'डेडलॉक '
सिर्फ एक बस जलाई जा सकी.
बन्नू अब संभल नहीं रहा है.
उसकी तरफ से हम ही कह रहे हैं कि "वह मर जाएगा, पर झुकेगा नहीं!"
सरकार भी घबराई मालूम होती है.
साधुसंघ ने आज मांग का समर्थन कर दिया.
ब्राम्हण समाज ने अल्टीमेटम दे दिया. १० ब्राम्हण आत्मदाह करेंगे.
सावित्री ने आत्महत्या की कोशिश की थी, पर बचा ली गयी.
बन्नू के दर्शन के लिए लाइन लगी रही है.
राष्ट्रसंघ के महामंत्री को आज तार कर दिया गया.
जगह-जगह- प्रार्थना-सभाएं होती रहीं.
डॉ. लोहिया ने कहा है क जब तक यह सरकार है, तब तक न्यायोचित मांगें पूरी नहीं होंगी. बन्नू को चाहिए कि वह सावित्री के बदले इस सरकार को ही भगा ले जाए.


21 जनवरी

बन्नू की मांग सिद्धांततः स्वीकार कर ली गयी.
व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए एक कमेटी बना दी गई है.
भजन और प्रार्थना के बीच बाबा सनकीदास ने बन्नू को रस पिलाया. नेताओं की मुसम्मियाँ झोलों में ही सूख गईं. बाबा ने कहा कि जनतंत्र में जनभावना का आदर होना चाहिए. इस प्रश्न के साथ कोटि-कोटि जनों की भावनाएं जुड़ी हुई थीं. अच्छा ही हुआ जो शान्ति से समस्या सुलझ गई, वर्ना हिंसक क्रान्ति हो जाती.
ब्राम्हणसभा के विधानसभाई उमीदवार ने बन्नू से अपना प्रचार कराने के लिए सौदा कर लिया है. काफी बड़ी रकम दी है. बन्नू की कीमत बढ़ गयी.
चरण छूते हुए नर-नारियों से बन्नू कहता है," सब ईश्वर की इच्छा से हुआ. मैं तो उसका माध्यम हूँ."
नारे लग रहे हैं -- सत्य की जय! धर्म की जय!

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11 comments:

रवि कुमार said...

ओह...
कई दिन से मन में यह कहानी घूम रही थी...
पूरे प्रक्रम को बखूबी खोलती कहानी...

प्रस्तुति के लिए आभार...

वर्षा said...

बहुत शानदार, अब तो कितने बन्नू आ गए और कितनों के मन में बन्नू बनने के बुलबुले फूट रहे।

विजय गौड़ said...

शानदार!!
मौके की नजाकत के हिसाब से ।

Ashish Pandey "Raj" said...

वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर सटीक व्यंग्य ...

मोहन श्रोत्रिय said...

परसाई जी का जवाब नहीं. लिखे जाने के इतने दिन बाद भी कितनी ताज़ा ओर प्रासंगिक लगती है यह रचना ! परसाई जी कभी 'बासे' नहीं पड़ेंगे.

akki said...

aakhir parsai ji likh rahen hai kathore satya etni shalinta aur saaf goi se

Vikash said...

prasangik. :)

vinay jaiswal said...

बहुत उम्दा और शानदार लेख है। वैसे भी परसाई जी की रचना समाज के इतने करीब होती है और इतनी आसानी से सबकुछ कह जाती है कि लगता घटना सामने चल रही है तथा समय का अंतर खत्म सा हो गया है। आपको ध्न्यवाद की आपने इस अपठित रचना को सामने रखा।

Andy said...

I had switched off the lights and was sleeping in the interior room of our haweli with my brothers, sisters and parents. Suddenly I lost the two balls which I always had. I started searching in the room for those balls in dark. Some thing.. I guess it was weird noise of thumping of a book made me come out of the Haweli. There was this bearded old man in green (OMG) robe with an alien desert-y book in one hand and very old snake oil lantern in other.

I had seen him entering our village a day before. OMG was a snake oil salesman by trade. He told me to start searching the balls under the oil lamp near his feet.

I: “but I lost the balls inside in the haweli. Please give me that lantern so that I can search the balls where they were lost”

OMG: “it does not matter, bend over and start searching under my feet.”

I: “Why?”

OMG: “Because the book in my hand says so.”

I: “what is this book?”

OMG: “this is divine God’s book.”

I: where does it say so?

OMG: “you cannot understand so I need to read to you and make you understand.”

Then OMG starts reading some lines in alien language. I do not understand a bit. OMG makes me bend over and search under his feet while he was reading those lines.

After a while he stops reading and tells me..

OMG: “the book also says that if you search for your balls under my feet then not only you will get your lost balls but also get the balls of your brothers, father’s, even of your cousins’ and uncles’ who live next door. Imagine how rich and powerful you will be with so many balls. To get others balls you need to bring them to bend over at my feet.”

Now I forgot about my own lost balls and started desiring more and more of others balls. To bring others to his feet first I initially thumped books but later I started forcefully bring my brothers and cousins. To wake more people and bring them to OMG’s feet for bending over, and searching balls, one of my bearded passionate cousin came up with a great idea of using the Alien Snake Oil of OMG to set fire to the whole Mohalla, so that every one gets up immediately or roasted alive.

That is what we did! Many perished but we were determined to get at least 72 balls at OMG feet. Whole Mohalla and nearby neighborhood gutted in the fire. Fire spread to the whole village. The village of Guru Nanak, Guru Govind Singh, GorakhNath, Valmiki, Vashishta, Boudha and Mahavira was completely destroyed.

Now every one was bending over and searching balls under the lamp which OMG only possessed. OMG started calling us with alien desert-y names. We thought he is expressing love by his mouth the way he was expressing by his Dostum between his legs.

There was darkness everywhere. Long time passed… it was truly very long time and now my rear started paining…. when I looked up I saw vicarious smile on OMG’s face.. I realized he was a devil incarnate but it was too late. This alien Snake-Oil Bania Mamooo had made all of us utter Gandoos.

Truly we had reached the nadir of bestiality and stupidity.

Wake up you fool Gandooo! The alien book could be of 4th century, 7th century or 19th century Macaulayi/Marxy or even 20th century Harvadi Wall Streety. The bearded OM could have alien white, green or red (topi) garb. If you cannot find God in the eyes of a kid from your Mohalla, if your senses do not get filled by the native soil when it gets drenched by first mansoon shower then you will never get it from alien books. Those books were meant for you bending over.

Andy said...

Above was the dream or nightmare. The reason for it is when you see India from outside and when you visit American Indian Reservation, Central America and live for decades in the West. When you meet number of successful very competitive Chinese. You wonder why Chinese, Indians and Jews populate MIT, Bell Labs, and European Research Institutes.

India & China have progressed because the civilizational roots are still intact. China is reverting back to its native organic Dharmik roots – Boudhism, Confucian & Taoism. Boudha Dharma spread to China & Japan without asking them to throw away their native roots or asking them take alien culturally distant names and start identifying themselves with aliens by adopting their language. But see what happened to Afghanistan & Pakistan. In their search for alien Arab/Turk/Persian fake roots they have become brutes, killing each other and stuffing pieced-up bodies in gunny bags. Hope this does not come to India. Pakistan & Afghanistan where Sanskrit Grammar was invented near Peshawar, where Patanjali wrote YogSutra, where the largest and first university was built worked for more than 300 years at Taxila whose libraries were 9 stories tall. But the cause of Wednesdays happened long back on Sundays…when Kshatra Tej was extinguished from the land by wrong Boudhist & Jaina interpretation seeping in the Civilization Bharat. It stopped producing Shake Shalivahan who took care of Huns who overran Eurocia… on those Sundays we slept when the brutes and their brutal ideology overran todays Iraq, Iran & then Afghanistan… in that sleep I had a dream … not a dream but a nightmare

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 11/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !