Friday, October 19, 2007

मनमोहन की कवितायेँ

यकीन
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एक दिन किया जाएगा हिसाब
जो कभी रखा नहीं गया

हिसाब
एक दिन सामने आएगा

जो बीच में ही चले गए
और अपनी कह नहीं सके
आएंगे और
अपनी पूरी कहेंगे

जो लुप्त हो गया अधूरा नक्शा
फिर खोजा जाएगा


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उम्मीद

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आज
कमरे का एक कोना छलक रह है

माँ की आँख
बालक का हृदय छलक रहा है

छलक रह है एक तारा

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इच्छा
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एक ऐसी स्वच्छ सुबह मैं जागूँ
जब सब कुछ याद रह जाय

और बहुत कुछ भूल जाय
जो फालतू है


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अपनी आवाज़ ने
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अपनी आवाज़ ने बताया
कितनी दूर निकल आये हम

अपनी आवाज़ ने बताई
निर्जनता

1 comment:

सुभाष नीरव said...

छोटी मगर बहुत गहरी कविताएं हैं। बधाई !