Wednesday, June 15, 2011

नागार्जुन की कुछ कविताएं

बाबा नागार्जुन का जन्म आज ही के दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा को हुआ था. उनकी जन्मशती के मौके पर लेखक संगठनों ने कई कार्यक्रम किये हैं और उन पर कई अंक भी निकले हैं.
उनकी कुछ चर्चित और महत्वपूर्ण कविताएं -

मंत्र कविता

ब्द ही ब्रह्म है..

ब्द्, और ब्द, और ब्द, और ब्द
प्रण‌, नाद, मुद्रायें
क्तव्य‌, उदगार्, घोषणाएं
भाष‌...
प्रव‌...
हुंकार, टकार्, शीत्कार
फुसफुस‌, फुत्कार, चीत्कार
आस्फाल‌, इंगित, इशारे
नारे, और नारे, और नारे, और नारे

कुछ, कुछ, कुछ
कुछ हीं, कुछ हीं, कुछ हीं
त्थ की दूब, रगोश के सींग
-तेल-ल्दी-जीरा-हींग
मूस की लेड़ी, नेर के पात
डाय की चीख‌, औघड़ की अट बात
कोयला-इस्पात-पेट्रोल
मी ठोस‌, बाकी फूटे ढोल

इदमान्नं, इमा आपः इदज्यं, इदं विः
मान‌, पुरोहित, राजा, विः
क्रांतिः क्रांतिः र्वग्वंक्रांतिः
शांतिः शांतिः शांतिः र्वग्यं शांतिः
भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः र्वग्वं भ्रांतिः
चाओ चाओ चाओ चाओ
टाओ टाओ टाओ टाओ
घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ
निभाओ निभाओ निभाओ निभाओ

लों में एक अपना ,
अंगीकरण, शुद्धीकरण, राष्ट्रीकरण
मुष्टीकरण, तुष्टिकरण‌, पुष्टीकरण
ऎतराज़‌, आक्षेप, अनुशास
द्दी आजन्म ज्रास
ट्रिब्यून‌, आश्वास
गुटनिरपेक्ष, त्तासापेक्ष जोड़‌-तोड़
‌-छंद‌, मिथ्या, होड़होड़
वास‌, उदघाट
मारण मोह उच्चाट

काली काली काली हाकाली हकाली
मार मार मार वार जाय खाली
अपनी खुशहाली
दुश्मनों की पामाली
मार, मार, मार, मार, मार, मार, मार
अपोजीश के मुंड ने तेरे ले का हार
ऎं ह्रीं क्लीं हूं आङ
बायेंगे तिल और गाँधी की टाँग
बूढे की आँख, छोकरी का काज
तुलसीद, बिल्वत्र, न्द, रोली, अक्ष, गंगाज
शेर के दांत, भालू के नाखून‌, र्क का फोता
मेशा मेशा राज रेगा मेरा पोता
छूः छूः फूः फूः फिट फुट
त्रुओं की छाती अर लोहा कुट
भैरों, भैरों, भैरों, रंगली
बंदूक का टोटा, पिस्तौल की ली
डॉल, रूब, पाउंड
साउंड, साउंड, साउंड

रती, रती, रती, व्योम‌, व्योम‌, व्योम‌, व्योम
अष्टधातुओं के ईंटो के ट्टे
हामहिम, हमहो उल्लू के ट्ठे
दुर्गा, दुर्गा, दुर्गा, तारा, तारा, तारा
इसी पेट के अन्द मा जाय र्वहारा
रिः त्स, रिः त्स

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घिन तो नहीं आती है

पूरी स्पीड में है ट्राम

खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है ?
जी तो नहीं कढता है ?

कुली मज़दूर हैं
बोझा ढोते हैं , खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढ़ता है ?
घिन तो नहीं आती है ?

दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे , अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत ?
जी तो नहीं कुढता है ?
घिन तो नहीं आती है ?

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चंदू, मैंने सपना देखा

चंदू, मैंने सपना देखा, उछल रहे तुम ज्यों हिरनौटा

चंदू, मैंने सपना देखा, अमुआ से हूँ पटना लौटा
चंदू, मैंने सपना देखा, तुम्हें खोजते बद्री बाबू
चंदू,मैंने सपना देखा, खेल-कूद में हो बेकाबू

मैंने सपना देखा देखा, कल परसों ही छूट रहे हो
चंदू, मैंने सपना देखा, खूब पतंगें लूट रहे हो
चंदू, मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कैलंडर
चंदू, मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर मैं हूँ अंदर
चंदू, मैंने सपना देखा, अमुआ से पटना आए हो
चंदू, मैंने सपना देखा, मेरे लिए शहद लाए हो

चंदू मैंने सपना देखा, फैल गया है सुयश तुम्हारा
चंदू मैंने सपना देखा, तुम्हें जानता भारत सारा
चंदू मैंने सपना देखा, तुम तो बहुत बड़े डाक्टर हो
चंदू मैंने सपना देखा, अपनी ड्यूटी में तत्पर हो

चंदू, मैंने सपना देखा, इम्तिहान में बैठे हो तुम
चंदू, मैंने सपना देखा, पुलिस-यान में बैठे हो तुम
चंदू, मैंने सपना देखा, तुम हो बाहर, मैं हूँ अंदर
चंदू, मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कैलेंडर

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अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त


दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद
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यह दंतुरित मुस्कान

तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान

मृतक में भी डाल देगी जान
धूली-धूसर तुम्हारे ये गात...
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारी ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ माध्यम बनी होगी आज
मैं सकता देख
मैं पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान


धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तम्हारा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखे चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान
लगती बड़ी ही छविमान!

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2 comments:

Rangnath Singh said...

उम्दा चयन है।

Vaishnavi said...

jeevan darshan bayan karti sundar marmsparshi kavitayai.