Saturday, April 11, 2009

विष्णु प्रभाकर नहीं रहे


मैं अभी कुछ देर पहले मुज़फ़्फ़रनगर में एक साहित्यप्रेमी दोस्त की दूकान पर इस लालच से गया था कि कुछ पुराने दोस्त मिलेंगे. यहाँ खबर मिली कि `आवारा मसीहा` के लेखक विष्णु प्रभाकर नहीं रहे हैं. ई टीवी का कोई नुमाइंदा किसी ऐसे शख्स को तलाशने के लिए परेशान था जो प्रभाकर जी के साथ रहा हो और जिसके पास उनके ख़त वगैरा हों. दरअसल विष्णु प्रभाकर जी का जन्म मुज़फ़्फ़रनगर जिले के मीरापुर कस्बे (तब गाँव) में २० जुलाई १९१२ को हुआ था. बताते हैं कि वे कम उम्र में ही मुज़फ़्फ़रनगर से हिसार (हरियाणा) आ गए थे।
पिछले कई वर्षों में उन्हें बीमारी और दुर्घटना की वजह से बार-बार अस्पताल जाना पड़ा था लेकिन उनकी जिजीविषा उन्हें हर बार जिलाए रखती थी. इन्हीं दिनों कई पत्रिकाओं में उन पर उनकी बाद की पीढ़ी के लेखकों के कुछ लेख भी छपे. समयांतर में पंकज बिष्ट ने भी बेहद सम्मान और आत्मीय ढंग से इस वरिष्ठ कथाकार पर लिखा था. यह वाकई बेहद दुर्लभ था कि हिंदी के वयोवृद्ध लेखक से उनके बाद की पीढ़ी ऐसा गर्व भरा रिश्ता महसूस करती हो. शायद त्रिलोचन,शमशेर और नागार्जुन के बाद वे इस तरह के अकेले हिंदी लेखक बचे थे.

Friday, April 3, 2009

इक़बाल के राम















लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द ।
सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द ।।

ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द ।

इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द ।

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द ।

एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है यही
रोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द ।

तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था ।








अल्लामा इक़बाल