मनुष्य की परिभाषा
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यहाँ सामान बदला जाता है
और एक ख़ास रिआयत के साथ
पकने दी जाती है कविता
वैज्ञानिक अवसाद में
चेतना से छुड़ा देते हैं हम धब्बे
दुनिया से ख़राबी
जूतों से उनकी उदासी और नमी
और उन्हें दूसरे अन्तरिक्ष के अनाम
नक्षत्रों पर उतार आते हैं
आते हैं हमारे युग के आदिकवि राख और
धूल से सने
और कहते हैं सुनो लोग समझते हैं मैं
मर गया बोलो मैं क्या सचमुच मर गया
धैर्य से हम उन्हें समझाते हैं बाऊ तुम
मरे नहीं हो तुम तो अमर हो
हिन्दी साहित्य में कौन भला तुम्हें
मार सकता है
वह फफक-फफक कर रोने लगते हैं
सुनो-सुनो मुझे तुम्हारी बातें साफ़ सुनाई
नहीं देतीं हैं सिर्फ़
पानी की आवाज़ तुम्हारे और मेरे बीच
मुझे दिखाई देती है बस बारिश
बारिश बारिश
बाऊ चलो हम तुम्हें उस यान में
बिठा देते हैं जो क्षरण से भय से
गुरुत्वाकर्षण से मुक्त है
बाऊ नहीं सुनते-अच्छा तुम कहते हो
तुम लोग मेरे ऋणी हो : लाओ
वापस करो मेरा क़र्ज़ मैं इसी बारिश में
भीगता अकेला अपनी वास्तविकता के
तलघर में वापस चला जाऊँगा
असद ज़ैदी की यह कविता उनके पहले कविता संग्रह `कविता का जीवन` से ली गई है। कवि ने यह `मुक्तिबोध के लिए` है, जैसी कोई टिप्पणी अलग से नहीं की है और इसकी कोई आवश्यकता भी नहीं लगती है। मुक्तिबोध के जन्मदिन पर इस कविता को विशेष रूप से यहाँ दिया जा रहा है।
4 comments:
bhai, jitane log jitane bhinna-bhinna tarike se Muktibodh ko unke janmdin par yad kare utna hi behatar. hum log sabhi divangato ko to yad nhi kar pate lekin jinhe yad kar sake jarur yad kare. blog ke pathako me bhi hindi ke mahvapurn kaviyo ke bare me samanya sachetata baddhegi.
मुक्ति बोध के जन्मदिन पर असद जैदी की रचना पढ़ना अच्छा लगा.
वह हिन्दी का सबसे इमानदार कवि था।
मेरा सलाम
मुक्तिबोध को हम् लोग रोज़ याद करते है..। ज़िन्दगी से मुक्तिबोध को हटाकर कैसे देख सकते है.. हम तो रोज़ ही उन जगहों को देखते है जो मुक्तिबोध के साहित्य मे है ।
मुक्तिबोध फिल्म व कला उत्सव पर एक रपट http://sharadakokas.blogspot.com
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