लौट आ, ओ धार!
टूट मत ओ साँझ के पत्थर
हृदय पर।
(मैं समय की एक लंबी आह!
मौन लंबी आह!)
लौट आ, ओ फूल की पंखडी!
फिर
फूल में लग जा।
चूमता है धूल का फूल
कोई, हाय!!
***
आज शमशेर जी की पुण्य तिथि है. उनकी यह तस्वीर जापान के क्योटो से लक्ष्मीधर मालवीय से वाया असद ज़ैदी प्राप्त हुई है.
10 comments:
शुक्रिया, धीरेश। फिर भूले जा रहे थे शमशेरजी की पुण्यतिथि को।
श्रद्धांजलि।
शरशेरजी को श्रद्धांजलि....
''मै समय की एक लंबी आह ''!!!!!विनम्र श्रद्धांजलि ।
yah kavita na jane kitne jivan-prasangon me chupchap mn me lautti rahi hai...tasveer me shamsher ji kya khilkhila rahe hain, manon chand se thodi gapeen laga kar aa rahe hon...
शुक्रिया धीरेश…जनपक्ष पर अरुण माहेश्वरी का आलेख भी देखियेगा
कविता तो ख़ैर आल टाईम फ़ेवरिट है पर इस फोटो के लिये आपका आभार
शमशेर जी के नाम पर वो राख का लीपा हुआ चौका वाली कविता याद आ जाती है। सही है न। कविता अच्छी लगी।
शमशेर जी के नाम पर वो राख का लीपा हुआ चौका वाली कविता याद आ जाती है। सही है न। कविता अच्छी लगी।
जावेद अख्तर को धमकी मिले चार दिन हो गए हैं, हे सेकुलर साम्प्रदायिकों. देवघर से डर लगता है?
पंखुड़ी फिर फूल में लग जा।
फिर नमूंदार हो जवानी का लचकदार पेड़
और बचपन हवा की तरह आरपार जा
डूब मर मधुमेह
जलेबी के चुल्लू भर शीरे में
विफलता तू जेब में जीते कंचों की तरह खनखना।
पुतलियों खींच लाओ
विक्रमादित्य का वह सिंहासन
भद्रे तू उस पर मनमोहन को बिठा।
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