Tuesday, June 8, 2010

दस कविताएं : मनमोहन

नींद
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दक्षिण दिशा में
गया है एक नीला घोड़ा

बहुत घने मुलायम अयाल हैं

और आँखें हैं गहरी
काली और सजल

नंगी है उसकी पीठ

पर्वतों से गुजरता
वह दक्षिण दिशा के

बादलों में दाखिल
हो चुका है
***


बारिश
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कपास के फूलों से
लदी नौकाओ

कई कोनों से आओ

और एक जगह इकट्ठी हो जाओ
भींगने के लिए
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घड़ी
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घड़ी चुग रही है
एक एक दाना

घड़ी पी रही है
बूँद बूँद पानी

कभी न थकने वाली

गौरेया घड़ी
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धरती
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धरती को याद है
अनगिन कहानियां

धरती के पास है
एक छुपी हुई पोटली

नाक पर लटकी है
रुपहली गोल ऐनक

पोपले मुँह में
जर्दा रखे धीमे चिराग में
तमाम रात कथरी में पैबन्द लगाती

झुर्रियों वाली बूढ़ी
नानी है धरती
***


गेंद
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झन से गिरा शीशा

एक गेंद दनदनाती आई

खिड़की की राह मेज पर
टिप्पा खाया दवात
गिराई और
चट पट चारपाई के
नीचे भाग गई

एक जाना पहचाना सितार
कितने बरस बाद
मैं सुनता हूँ
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नदी
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नदी मुझे बुलाती है
नदी मुझे पुकारती है

बांहें खोले दूरे से दौड़ी
आती है नदी
मैं नदी से डरता हूँ
लेकिन नदी मेरी माँ है
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जीवित रहना
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माँ के पीछे है एक
और माँ
पिता के पीछे एक
और पिता
साथियों में छिपे हैं साथी
जिनके लिए मैं जीवित रहता हूँ
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एक परिन्दा उड़ता है

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एक परिन्दा उड़ता है
मुझसे पूछे बिना
मुझे बताए बिना
उड़ता है परिन्दा एक
मेरे भीतर
मेरी आँखों में
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बूढ़ा माली
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बूढ़ा माली गाता है
ये जो पत्ते गाते हैं
बूढ़ा माली हंसता है
ये क्यारियां जो खिलखिलाती हैं

मिट्टी की नालियों में
बहुत दूर से
पानी बनकर आता है
बूढ़ा माली
***


पत्र
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एक रसोई है
कालिख में नहाई
मटमैली रसोई

थकी हुई बूढ़ी गाय
जैसी आँखों वाली एक औरत
दहलीज पर आकर खड़ी होती है
और पसीने से सरोबार चेहरे को
आंचल से पोंछती है

यहां मैं कलम उठाता हूँ
और मेरी उम्र
हो जाती है नौ साल
***

मनमोहन की ये कविताएं `इसलिए` पत्रिका के मई 1979 अंक में प्रकाशित हुई थीं।

17 comments:

शायदा said...

शानदार कविताएं लाए धीरेश। बहुत बढि़या मनमोहन जी।

दिलीप said...

ek ek kavita ne dil khsuh kar diya...waah sirji gend ki antim do panktiyan to lajawaab lagi...

Jandunia said...

खूबसूरत पोस्ट

सोतड़ू said...

सैणी साब,समझ कम आईं लेकिन पसंद बहुत आईं

आचार्य उदय said...

आईये जानें ... सफ़लता का मूल मंत्र।

आचार्य जी

प्रज्ञा पांडेय said...

सभी कवितायेँ बेहद जीवंत और संवेदनाओं की गुनगुनाहट से भरपूर हैं खासकर "पत्र" अंतर्मन में बस गयी अब वही रहेगी .बहुत बधाई

sushil said...

dheeresh manmohan ji ki bahut sari kavitayen jo samne nahi aa payi hain tumhare bahane vo kabhi kabhi samnne aa jaati hain Thanks
is kaam main lage raho hum thumhare saath hain

Rangnath Singh said...

सीधे-सादे शब्दों में सधी हुई कविताएं।

शिरीष कुमार मौर्य said...

मनमोहन की इन कविताओं के लिए शुक्रिया धीरेश भाई. इनमें कुछ है जो धीरे धीरे बजता है...फिर गूंजने लगता है....फिर ...फिर...फिर...

Ashok Kumar pandey said...

ओह कितनी ख़ूबसूरत कवितायें…

रवि कुमार, रावतभाटा said...

गज़ब की खनक है...
सरल और सहज...क्या खूब कविताएं हैं...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह इतनी सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार. यही है ब्लागिंग की ताक़त कि आज 1979 की इतनी सुंदर रचनाएं यूं पढ़ने को नसीब हुईं.

अर्चना said...

sari kawitayen hi achchhi lagin, khas kar 'ptra'. khoobsoorat post.

शरद कोकास said...

मनमोहन जी की इन कविताओं और "इसलिये " के बहाने आपने एक ऐसे दौर की याद दिलादी जिसमे कविता को लिखा ही नही जिया जाता था । हम बहुत से लोग इन दिनो संस्कारित हुए है ।

Manav Pardeep said...
This comment has been removed by the author.
Manav Pardeep said...

बहुत खूब धीरेश भाई, आप ऐसे ही मनमोहन की कविताएँ अपने ब्लॉग पर डालते रहिये मुझ जैसे लोगो के लिए आपका ब्लॉग हर बार बहुत सी नई चीजें लेकर आता है
मनमोहन की ये सारी कविताएँ बहुत मजेदार हैं मुझे सभी कविताएँ पसंद आई, इन कविताओं के लिए मनमोहन का और आपका बहुत बहुत सुक्रिया

kuldeep kunal said...

1979 वो साल था जब मेरी पैदाइश हुई थी। मनमोहन उस वक़्त 28-29 के रहे होंगे। इतने युवा मगर इतने सहज। ये शब्द नहीं है। मनमोहन का व्यक्तित्व हैं ये पंक्तियां। बेहद खुशनसीब महसूस पाता हूँ।