नींद
-----दक्षिण दिशा में
गया है एक नीला घोड़ाबहुत घने मुलायम अयाल हैं
काली और सजल
नंगी है उसकी पीठ
वह दक्षिण दिशा के
बादलों में दाखिल
हो चुका है***
बारिश
-------कपास के फूलों से
लदी नौकाओकई कोनों से आओ
भींगने के लिए
***घड़ी
-----घड़ी चुग रही है
एक एक दानाघड़ी पी रही है
बूँद बूँद पानीकभी न थकने वाली
गौरेया घड़ी
***धरती
-------धरती को याद है
अनगिन कहानियांधरती के पास है
एक छुपी हुई पोटलीनाक पर लटकी है
रुपहली गोल ऐनकपोपले मुँह में
जर्दा रखे धीमे चिराग मेंतमाम रात कथरी में पैबन्द लगाती
झुर्रियों वाली बूढ़ी
नानी है धरती***
गेंद
-----झन से गिरा शीशा
एक गेंद दनदनाती आई
खिड़की की राह मेज पर
टिप्पा खाया दवातगिराई और
चट पट चारपाई केनीचे भाग गई
कितने बरस बाद
मैं सुनता हूँ***
नदी
-----नदी मुझे बुलाती है
नदी मुझे पुकारती हैबांहें खोले दूरे से दौड़ी
आती है नदीमैं नदी से डरता हूँ
लेकिन नदी मेरी माँ है***
जीवित रहना
---------------माँ के पीछे है एक
और माँपिता के पीछे एक
और पितासाथियों में छिपे हैं साथी
जिनके लिए मैं जीवित रहता हूँ***
एक परिन्दा उड़ता है
----------------------
एक परिन्दा उड़ता है
मुझसे पूछे बिनामुझे बताए बिना
उड़ता है परिन्दा एकमेरे भीतर
मेरी आँखों में***
बूढ़ा माली
------------बूढ़ा माली गाता है
ये जो पत्ते गाते हैंबूढ़ा माली हंसता है
ये क्यारियां जो खिलखिलाती हैंमिट्टी की नालियों में
बहुत दूर सेपानी बनकर आता है
बूढ़ा माली***
पत्र
-----एक रसोई है
कालिख में नहाईमटमैली रसोई
जैसी आँखों वाली एक औरत
दहलीज पर आकर खड़ी होती हैऔर पसीने से सरोबार चेहरे को
आंचल से पोंछती हैयहां मैं कलम उठाता हूँ
और मेरी उम्रहो जाती है नौ साल
***मनमोहन की ये कविताएं `इसलिए` पत्रिका के मई 1979 अंक में प्रकाशित हुई थीं।
17 comments:
शानदार कविताएं लाए धीरेश। बहुत बढि़या मनमोहन जी।
ek ek kavita ne dil khsuh kar diya...waah sirji gend ki antim do panktiyan to lajawaab lagi...
खूबसूरत पोस्ट
सैणी साब,समझ कम आईं लेकिन पसंद बहुत आईं
आईये जानें ... सफ़लता का मूल मंत्र।
आचार्य जी
सभी कवितायेँ बेहद जीवंत और संवेदनाओं की गुनगुनाहट से भरपूर हैं खासकर "पत्र" अंतर्मन में बस गयी अब वही रहेगी .बहुत बधाई
dheeresh manmohan ji ki bahut sari kavitayen jo samne nahi aa payi hain tumhare bahane vo kabhi kabhi samnne aa jaati hain Thanks
is kaam main lage raho hum thumhare saath hain
सीधे-सादे शब्दों में सधी हुई कविताएं।
मनमोहन की इन कविताओं के लिए शुक्रिया धीरेश भाई. इनमें कुछ है जो धीरे धीरे बजता है...फिर गूंजने लगता है....फिर ...फिर...फिर...
ओह कितनी ख़ूबसूरत कवितायें…
गज़ब की खनक है...
सरल और सहज...क्या खूब कविताएं हैं...
वाह इतनी सुंदर रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार. यही है ब्लागिंग की ताक़त कि आज 1979 की इतनी सुंदर रचनाएं यूं पढ़ने को नसीब हुईं.
sari kawitayen hi achchhi lagin, khas kar 'ptra'. khoobsoorat post.
मनमोहन जी की इन कविताओं और "इसलिये " के बहाने आपने एक ऐसे दौर की याद दिलादी जिसमे कविता को लिखा ही नही जिया जाता था । हम बहुत से लोग इन दिनो संस्कारित हुए है ।
बहुत खूब धीरेश भाई, आप ऐसे ही मनमोहन की कविताएँ अपने ब्लॉग पर डालते रहिये मुझ जैसे लोगो के लिए आपका ब्लॉग हर बार बहुत सी नई चीजें लेकर आता है
मनमोहन की ये सारी कविताएँ बहुत मजेदार हैं मुझे सभी कविताएँ पसंद आई, इन कविताओं के लिए मनमोहन का और आपका बहुत बहुत सुक्रिया
1979 वो साल था जब मेरी पैदाइश हुई थी। मनमोहन उस वक़्त 28-29 के रहे होंगे। इतने युवा मगर इतने सहज। ये शब्द नहीं है। मनमोहन का व्यक्तित्व हैं ये पंक्तियां। बेहद खुशनसीब महसूस पाता हूँ।
Post a Comment