पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है` जैसे सवाल अधिकतर लोगों को हमेशा ही असुविधाजनक लगते आये होंगे, पर इन दिनों हमारे `वामपंथी`, `गांधीवादी` और `डेमोक्रेटिक` साथियों को ऐसे सवाल पूरी तरह फिजूल नज़र आने लगे हैं. वैसे भी करियरवादी दौर में खुलकर फलने-फूलने के लिये गैर-आलोचनात्मक संबध ही मुफ़ीद साबित होते हैं. कलावाद की आड़ में छुपकर दक्षिणपंथ की मदद करने वाले भी शायद बदले वक़्त पर हैरान होंगे कि कैसे सब कुछ `खुला खेल फर्रुर्खाबादी` की तर्ज़ पर होने लगा है. इन्टरनेट की दुनिया ने ऐसी दोस्तियों की दुनिया को अभूतपूर्व विस्तार दिया है. ब्लॉग, फेसबुक और ऐसी दूसरी `सोशल` साइट्स में एक हत्यारा और एक गांधीवादी मजे-मजे में साथ रहते हैं, एक क्रांतिकारी वामपंथी जाने-अनजाने आसानी से एक दक्षिणपंथी आतंकवादी का दोस्त हो सकता है. मतलब इस नई `सामाजिकता` में सब कुछ संभव है.
अजमेर शरीफ ब्लास्ट के अभियुक्त और राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ के एक्टिविस्ट इन्द्रेश कुमार जिससे दूसरे आतंकवादी कारनामों के बारे में भी पूछताछ जारी है, का प्रोफाइल फेसबुक पर मौजूद है और उसके दोस्तों की सूची भी ऐसी ही अजब-गजब है. फेसबुक पर उसके दोस्तों की संख्या २९ जनवरी २०११ तक करीब ४००० तक पहुँच चुकी थी और इन दोस्तों में तमाम कट्टरवादियों, `हिन्दुत्ववादियों` और `राष्ट्रवादियों` के साथ वामपंथी, गांधीवादी और आंबेडकरवादी सितारे भी `जगमगा` रहे हैं। इस सूची में कवि कुमार मुकुल, शिरीष कुमार मौर्य, आर. चेतान्क्रान्ति, अनिल जनविजय, पत्रकार-लेखक दिलीप मंडल, हरि जोशी, जयप्रकाश मानस, प्रदीप सौरभ, अजित वडनेरकर, आलोक तोमर, राजकुमार केसवानी, शहरोज़ कमर सईद, अंशुमाली रस्तोगी, नवीन कुमार नैथानी, मनीषा भल्ला,विनीता यशस्वी, मृत्युंजय, विप्लव विनोद, सागर जेएनयू आदि ऐसे बहुत से नाम एकबारगी हैरत पैदा करते हैं।
उदय प्रकाश गोरखपुर जाकर आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कृत हो आये थे तो इन्टरनेट की हिन्दी दुनिया में कुछ हो-हल्ला मचा था, पर तब यह भी माना गया था कि उदय प्रकाश ने एक तरह से बहुत से लोगों को दुविधामुक्त कर दिया है और उन्हें `सेक्युलरिज्म` का बोझ नाहक ढ़ोते रहने की मजबूरी से `आजादी` का रास्ता दिखा दिया है. बाद में हुसैन प्रकरण हो या बाबरी मस्जिद पर यूपी हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला हो, इन्टरनेट की हिन्दी दुनिया लगभग खामोश ही रही. अलबत्ता उसे `अशोक वाटिकाओं` में कोई कोना पा लेने के लिये अज्ञेय के साथ `अन्याय` जैसे दुःख जरूर सताते रहे.
बहरहाल, फेसबुक पर दोस्ती के लिये या तो कोई आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजता है या आप किसी व्यक्ति को दोस्ती का निमंत्रण देते हैं. अगर कोई शख्स आपको दोस्ती का निमंत्रण भेजता है तो उसे कन्फर्म करना या न करना आपके हाथ में होता है. इन्द्रेश कुमार का नाम ही इन दिनों खासा कुख्यात है और फिर उसके प्रोफाइल में उसका बड़ा सा फोटो मौजूद है. लेकिन ऐसी सोशल साइट्स पर दोस्ती की दुनिया काफी दिलचस्प होती है. अक्सर यह भी होता है कि सोशल सर्कल बढाने की चाहत या ढेरों लोगों में मकबूल होने की लालसा हमारे सजग साथियों में भी आँखें मूंदकर हर निमंत्रण को कन्फर्म करने की होड़ पैदा करती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि कम से कम खुद को मार्क्सवादी, सेक्युलर या डेमोक्रेटिक कहने वाले साथियों ने अनजाने में ही इन्द्रेश की दोस्ती कबूल की होगी और अपनी दीवार पर छपने वाले उसके कंटेंट को अनजाने में ही वे नज़रअंदाज करते रहे होंगे. गौरतलब यह है कि इन इन्द्रेश कुमार के प्रोफाइल को चेक किये बिना ही उनके बारे में उनके नाम से पाता चल जा रहा कि वे क्या हैं. उन्होंने अपना नाम Indresh Kumarrss दिया है.
मैंने कई दोस्तों को इस बारे में फ़ोन किया और अपने मित्रों को इस बारे में आगाह करने का निवेदन किया. शुक्र है कि इस सूची से जगदीश्वर चतुर्वेदी, गीत चतुर्वेदी, अविनाश दास, प्रभात डबराल, अजय ब्र्ह्मात्ज, बोधिसत्व, अनीता भारती, सत्यानन्द निरुपम, कुणाल सिंह, युनुस खान आदि कुछ लोगों ने पिछले दो दिनों में अपने नाम हटा लिये हैं. उम्मीद है कि बाकी साथी भी भूल सुधार करेंगे. उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि ऐसी गफलत न बरती जाये जो उनके लेखन के कद्रदानों को निराश करती हो और कट्टरपंथियों को मजबूत करती हो.
9 comments:
:) :)
आपकी नाराज़गी स्वाभाविक है :) :)
इन्द्रेश कुमार "अछूत" हैं, ठीक उसी तरह जैसे नरेन्द्र मोदी…। इनसे दूर ही रहना चाहिये… इनके साथ दिखाई देने भर से कोई गुप्त रोग फ़ैल सकता है…
बाय द वे, क्या ऐसा कोई नाम आपके ध्यान में आता है, जो इन्द्रेश जी की तरह ही अछूत तो हो, लेकिन "वामपंथी" हो? :) :)
धीरेश्…वह रिक्वेस्ट मैसेज मेरे पास भी आया था…लेकिन मैने डिस्कार्ड कर दिया।
aapka aabhar dyan dilaye jane ke liye.main turant hi apni list se in maharaj ko kharij karta hun
ghalti se aisa ho gaya ho..aainda dhyan rakha jana chahiye.
मैंने भी हटा लिया.
वो कौन सा पैमाना है जिससे आप वामपंथी को क्रांतिकारी और दक्षिणपंथी को आतंकवादी कहते है?
मेरी नजर में तो हर हथियार उठाने वाला, लोगो की जान लेने वाला आतंकवादी है चाहे वह चीन के इशारों पर नाचने वाला नक्सलवादी या वामपंथी आतंकवादी हो, पाकिस्तान के पैसे खाकर जिहाद करने वाला इस्लामिक आतंकवादी या आपकी भाषा में दक्षिण पंथी आतंकवादी.
आपके इसी दोमुहेपन के कारण भारतीय जनता ने आपको अस्वीकृत कर कूड़ेदान में फैंक दिया है. बची खुची कसर अगले चुनावों में पूरी हो जायेगी. आपका अस्तित्व केवल नाच गानों, और ५०० की संख्या से भी कम छपने वाली किताबों तक सीमित है. इंटरनेट के बढ़ाते दायरे ने आपकी मीडिया पर पकड़ को भी अप्रभावी बना दिया है.
इन्द्रेश जैसा ही आतंकवादी विनायक सेन है.
दोनों को ही सलाखों के अन्दर रहना चाहिए.
न्यौता मेरे पास भी आया था. मैं ने कन्फर्म नहीं किया . लेकिन कारण यह नहीं था की इन्द्रेश एक संघी आतंकवादी है.
फेसबुक पर दोस्ती के माने अलग हैं .माने यह हिंदी उर्दू वाली दोस्ती नहीं है. दोस्ती माने आप की पोस्टें वो देख सकता है , उस की आप.
मैं तो ऐसे मौके का आम तौर पर स्वागत ही करता हूँ. कोई कितना ही कट्टर संघी हो , लेकिन उस के अन्दर विचार और संवेदना का कतरा भी बचा होगा , तो अंततः तर्क और विवेक के रास्ते पर आयेगा ही. और उस की पोस्टें हम देख सकेंगे तो उस की वैचारिक साजिशों की काट भी कर पायेंगे.
तो मैं तो कन्फर्म कर ही देता. करना चाहता ही था.
लेकिन यह सोच कर रुक गया की अब यह सर्वज्ञात है की संघ ने ट्वीटर और फेसबुक पर एक अभियान शुरू किया है , सघन तकनीकी - सम्मत अभियान .इन माध्यमों को ख़ास संघी स्पैम से पाट कर भोथरा कर देने का . और असहमतों को सन्न कर देने का.
इन्द्रेश का फेसबुक पर आना इसी अभियान का हिस्सा है. वरना उन का यहाँ क्या काम. फेसबुक कोई अजमेर तो है नहीं.
इस लिए जो कन्फर्म कर चुके हैं , उन के लिए हटाना तो जरूरी है , लेकिन उस का तर्क अलग है.
जी को लगती है तेरी बात खरी है शायद / वही शमशेर मुज़फ़्फ़रनगरी है शायद
सुरेंद्र मोहन जी ने विनायक सेन से उनकी तुलना क्यों कर दी।
''सुरेंद्र मोहन'' जी को कुछ तो कहना ही था, तो कह गए। अब गोएबल्स के नुस्खों पर अमल करने वाली एक ही तो ''कौम'' बची है, उन पर भी आप नाहक सवाल उठा रहे हैं। :)
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