Tuesday, April 3, 2012

लाल्टू का नया संग्रह : सुंदर लोग और अन्य कविताएँ



सुंदर लोग : चार कविताएँ
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एक


एक दिन हमारे बच्चे हमसे जानना चाहेंगे

हमने जो हत्याएँ कीं उनका खून वे कैसे धोएँ


हताश फाड़ेंगे वे किताबों के पन्ने

जहाँ भी उल्लेख होगा हमारा

रोने को नहीं होगा हमारा कंधा उनके पास

कोई औचित्य नहीं समझा पाएँगे हम

हमारे बच्चे वे बदला लेने को ढूँढेंगे हमें

पूछेंगे सपनों में हमें रोएँ तो कहाँ रोएँ


हर दिन वे जिएँगे स्मृतियों के बोझ से थके

रात जागेंगे दुःस्वप्नों से डर डर

कई कई बार नहाएँगे मिटाने को कत्थई धब्बे

जो हमने उनको दिए हैं

जीवन अनंत बीतेगा हमारी याद के खिलाफ

सोच सोच कर कि आगे कैसे क्या बोएँ।



दो


कोई भूकंप में पेड़ के हिलने को कारण कहता है

कोई क्रिया प्रतिक्रिया के वैज्ञानिक नियमों की दुहाई देता है

हर रूप में साँड़ साँड़ ही होता है

व्यर्थ हम उनमें सुनयनी गाएँ ढूँढते हैं


साँड़ की नज़रों में

मौत महज कोई घटना है

इसलिए वह दनदनाता आता है

जब हम टी वी पर बैठे संतुष्ट होते हैं

सुन सुन सुंदर लोगों की उक्तियाँ


इसी बीच नंदीग्राम बन जाता है गेरनीका


जीवनलाल जी

यह हमारे अंदर उन गलियों की लड़ाई है

जो हमारी अंतड़ियों से गुजरती हैं।



तीन


दौड़ रहा है आइन्स्टाइन एक बार फिर

इस बार बर्लिन नहीं अहमदाबाद से भागना है


चिंता खाए जा रही है

जो रह गया प्लांक उसकी नियति क्या होगी


अनगिनत समीकरण सापेक्ष निरपेक्ष छूट रहे हैं

उन्मत्त साँड़ चीख रहा कि वह साँड़ नहीं शेर है

किशोर किशोरियाँ आतंकित हैं

प्रेम के लिए अब जगह नहीं

साँड़ के पीछे चले हैं कई साँड़

लटकते अंडकोषों में भगवा टपकता जार जार


आतंकित हैं वे सब जिन्हें जीवन से है प्यार

बार बार पूर्वजों की गलतियों को धो रहे हैं

ड्रेस्डेन के फव्वारों में


दौड़ रहा है आइन्स्टाइन एक बार फिर

इस बार बर्लिन नहीं अहमदाबाद से भागना है।



चार


ये जो लोग हैं

जो कह देते हैं कि हम इनसे दूर चले जाएँ

क्योंकि हमारे सवाल उन्हें पसंद नहीं

ये लोग सुंदर लोग हैं


अत्याचारी राजाओं के दरबारी सुंदर होते हैं

दरबार की शानोशौकत में वे छिपा रखते हैं

जल्लादों को जो इनके सुंदर नकाबों के पीछे होते हैं


धरती पर फैलता है दुःखों का लावा

मौसम लगातार बदलता है

सुंदर लोग मशीनों के पीछे नाचते हैं

अपने दुखों को छिपाने की कोशिश करते हैं


सड़कों मैदानों में हर ओर दिखता है आदमी

फिर भी सुंदर लोग जानना चाहते हैं कि मनुष्य क्या है

सुंदर नकाब के पीछे छिपे जल्लाद से झल्लाया प्राणी

हर पल बेचैन हर पल उलझा

सच और झूठ की पहेलियाँ बुनता


ये सुंदर लोग हैं

ये कह देते हैं कि हम इनसे दूर चले जाएँ

क्योंकि हमारे सवाल उन्हें पसंद नहीं

ये लोग सुंदर लोग हैं।




हरजिंदर सिंह लाल्टू हिंदी कविता के `सेलिब्रिटी` नहीं हैं। इसमें जितना योगदान हिंदी साहित्य के मठों का होगा, उससे ज्यादा उनकी खुद की प्रतिबद्धताओं का है। उनकी कविता कई सेलिब्रिटीज की कविताओं की तरह रेडीमेड नहीं है बल्कि गहरी यातनओं से गुजरकर पैदा होती है। दुनियाभर में और अपने मुल्क में चल रहे दमन से उनकी कविताओं का गहरा रिश्ता है। वे उन बहुत से कामयाब कवियों से जुदा हैं जो ग्लोबलाइजेशन,लिबरलाइजेशन और खासकर स्थानीय भगवा ब्रिगेड के आतंकवाद को अमूर्त अंदाज में कोसकर प्रतिरोध की खानापूर्ति कर लेते हैं। इधर, उनकी कविताओं में क्षोभ, निराशा, छटपटाहट और संघर्ष का संकल्प औऱ तीखे हुए हैं। उन्हें पढ़ते हुए पाठकों को भी इस लोड को उठाना पड़ता है। यहां दी जा रही कविताएं वाणी प्रकाशन से आए उनके नए संग्रह `सुंदर लोग और अन्य कविताएँ` से हैं।

5 comments:

Anonymous said...

Laltu Hindi ke arrant achchhe aur ab to varishth kaviyon men hain. Mujhe unki kavitaon se prerna milti hai. Unki jagah na unhen kisi ne di hai, na koi unse le salts hai.

Arun sathi said...

काश की यह सोंच हो सब की तब कथई धब्बे हो ही नहीं

अजेय said...

अच्छी कविताएं, उस से भी अच्छी प्रस्तुति . लाल्टू को बधाई. छात्र जीवन मे इन से प्रेरित रहे हम. :)

अजेय said...
This comment has been removed by the author.
राजेश उत्‍साही said...

सुंदर लोगों की सुंदर कविताएं।