Charles Mungoshi |
चार्ल्स मंगोशी की कविता
।।बेटे के नाम चिट्ठी।।
अब कद्दू पक गए हैं.
साल की पहली मकई की फसल से हम
कुछ ही दिन दूर हैं.
यहाँ गाएँ भरपूर दूध दे रही हैं.
अगर तुम्हारे पिता की बात न हो तो
यह साल कोई ख़ास खराब नहीं रहा
तुम्हारे पिता की पीठ का दर्द दोबारा
लौट आया है और सारे कामकाज आ
पड़े हैं मेरे कन्धों पर.
तुम्हारे छोटे भाई-बहन स्कूल में ठीक-ठाक ही
पढ़ रहे हैं, सिर्फ़ रिंदई, तुम्हारी बहन,
समस्या बनती जा रही है. तुम्हें याद
होगा कि यह सब तुम्हें लिखा गया था.
क्या तुम्हें वह चिट्ठी मिली? - तुमने जवाब नहीं दिया।
अब देखो, जब से तुम्हारे पिता का पीठ दर्द शुरु हुआ तब से
हम तुम्हारी बहन रिंदई को स्कूल भेजने के लिए
पर्याप्त रुपये नहीं जुटा पाए हैं.
अपना
ज़्यादातर वक़्त रिंदई कुएँ के पास बैठी
रोकर गुज़ारती है और सिर्फ़ उसी की
वजह से यह चिट्ठी तुम्हें लिख रही हूँ.
मैंने सोचा था कि बीते क्रिसमस में
तुम हमारे संग होंगे, फिर मैंने सोचा कि
हो सकता है तुम बेहद व्यस्त हो और
शायद ईस्टर की छुट्टियों में आओ
और तभी तुम्हारे पिता लगभग हमें छोड़ कर चले ही गए थे, बेटे।
फिर मैंने सोचा कि सर्दियों से पहले
मैं तुम्हारे पास आऊँ. तुम्हें पता ही है कि साल
के उस मौसम में मुझे कितनी कोफ़्त होती है
लेकिन फिर तुम्हारे पिता ने बिस्तर पकड़
लिया और इस बार पहले से ज़्यादा
बदतर हालत हुई. हमने यह सोचना शुरु
कर दिया कि वे अगली बोवनी का मौसम
नहीं देख पाएँगे।
मैंने तुम्हारी बहन रिंदई
से कहा कि वह तुम्हें चिट्ठी लिखे लेकिन
तुम्हारे पिता ने साफ़ मना कर दिया। तुम्हें
पता है कि सारा दिन बिस्तर पर पड़े
वे कितने ज़िद्दी हो जाते हैं या जब उन्हें
वहम होता है कि हर एक उन्हें नज़रअंदाज़
किए जा रहा!
अब, टाम्बू, मेरे बेटे यह मत सोचना
कि मैं रुपयों की माँग कर रही हूँ
हालाँकि थोड़ा-बहुत हमें उनसे उधार लेना पड़ा
जो तुम्हारे पिता को अस्पताल ले गए थे
और तुम जानते हो कि कर्ज़ लेने से तुम्हारे पिता को कितनी घृणा होती है!
यही सब है जो मैं तुम्हें बतलाना चाहती थी.
मुझे उम्मीद है कि इस जुलाई में तुम हमारे संग होंगे।
तुम्हारा जवाब आए एक लम्बा अर्सा बीत गया
उम्मीद करती हूँ कि उसी पुराने पते पर यह चिट्ठी तुम्हें पाएगी।
सिर्फ वही एक पता है जो हमें मालूम है.
तुम्हारी माँ
(अंग्रेज़ी से अनुवाद- नरेन्द्र जैन)
चार्ल्स मंगोशी Charles Mungoshi जिम्बाबवे के प्रतिष्ठित लेखक हैं। उन्होंने अंग्रेजी और अपनी नेटिव लेंग्वेज Shona दोनों में प्रचुर लेखन किया है।
नरेन्द्र जैन हिंदी के कवि हैं। उनकी ख़ासियत यह है कि वे `सेलिब्रिटी हुए बग़ैर` हिंदी के बड़े कवि हैं। इन दिनों उज्जैन में रहते हैं।
3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - मृणाल सेन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता, ऐसा लगा जैसे हम कविता के पात्र हो और अंत मे दिल ही दिल मे रो रहे हो
विवशता की भाषा
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