इस वर्ष न्याय सांख्यिकी ब्यूरो (ब्यूरो ऑफ़ जस्टिस स्टैटिसटिक्स) की एक रिपोर्ट ने पता लगाया है कि यूनाइटेड स्टेट्स के हर 136 निवासियों में से एक सलाखों के पीछे हैं- बहुत से तो बिना जुर्म साबित हुए जेल में हैं. कि बंदी बनाए गए लोगों में काले पुरुषों का प्रतिशत लगभग हर एक गोरे पुरुष बंदी के पीछे 12 काले पुरुष बंदी जितना है. कि जिन राज्यों में निर्धनतम आबादी है वहाँ कारावास और सज़ा-ए-मौत की दर सर्वाधिक है.
हम अक्सर सुनते हैं कि - मसलन नाइजेरिया या मिस्र, चीन या पूर्ववर्ती सोवियत संघ - के विपरीत पश्चिम असहमत (डिसिडन्ट) लेखकों को बंदी नहीं बनाता. मगर जब किसी राष्ट्र की दंड-न्याय व्यवस्था इतनों को बंदी बनाती है- बहुधा छिछले सबूतों और बेढंगी न्याय प्रक्रिया के आधार पर - जिन्हें अधिकतम सुरक्षा कोठरियों में या सू-ए-दार यंत्रणाएं दी जायेंगीं, खासकर त्वचा के रंग या उनके वर्ग के कारण, यह व्यवहार में - और नीयत में - संभावित और वास्तविक लेखकों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, पत्रकारों: समूचे प्रबुद्ध वर्ग को ख़ामोश कराना है. मुमिया अबू-जमाल का अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मामला प्रतीकात्मक है पर अनोखा बिल्कुल नहीं. अबू ग़रीब और ग्वांतानामो के तरीके यूनाइटेड स्टेट्स की जेलों और पुलिस व्यवस्था में बहुत पहले से प्रयोग में लाये जाते रहे हैं.
इन सबका कविता से क्या लेना देना है? अगर "इन सब" का कविता से कोई लेना-देना न होता, तो क्या आप सब, विभिन्न दिशाओं से, इस सम्मेलन में आये होते? ( तसव्वुर उन लोगों का भी जो यहाँ होते अगर राजनीति और साहित्य का टकराव न होता). ब्रेख्त के गैलिलियो के शब्दों में, जो मुखातिब थे एक नए व्यावसायिक युग में वैज्ञानिकों से और जो युग कलाकारों के लिए भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है: हम किस लिए काम कर रहे हैं?
मगर- इसे कभी नज़र-अंदाज़ न किया जाए- कि हर अधिकृत, सांख्यिकीय, निर्दिष्ट राष्ट्र में एक और राष्ट्र साँस लेता है: जनता के अनियुक्त, अतुष्टिकृत, अस्वीकृत समूह जो रोज़, प्रखर कल्पना और दृढ़ता के साथ, क्रूरताओं, बहिष्कारों, और तिरस्कारों का सामना करते हैं, और जिनके संकेत उन अवरोधों से होकर आते हैं - जो अक्सर साहित्यिक पिंजड़े होते हैं- कविता में, संगीत में, नुक्कड़ नाटकों में, दीवारों पर बने म्यूरल में, वीडियो में, वेबसाइटों में- और प्रत्यक्ष एक्टिविज़्म के बहुत से स्वरूपों में.
-एड्रियन रिच की पुस्तिका 'पोएट्री एंड कमिटमेंट' से उद्धृत. 'पोएट्री एंड कमिटमेंट' को सर्वप्रथम स्टर्लिंग विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड में 2006 कॉन्फ्रेंस ऑन पोएट्री एंड पॉलिटिक्स में प्लीनरी लेक्चर के तौर पर प्रस्तुत किया गया था. इसका किंचित संक्षिप्त संस्करण एड्रियन रिच ने नैशनल बुक फ़ाउन्डेशन मेडल फ़ॉर डिस्टिन्ग्विश्ड कॉन्ट्रीब्यूशन टू अमेरिकन लेटर्स स्वीकार करते समय पढ़ा था. एड्रियन रिच का गत मंगलवार 27 मार्च को बयासी वर्ष की उम्र में कैलिफोर्निया में निधन हो गया.
(अनुवाद एवं प्रस्तुति - भारतभूषण तिवारी)
2 comments:
गोया हिंदी के लेखकों के लिए ही लिखा हो ..
हम किस लिए काम कर रहे हैं?
सवाल महत्वपूर्ण है और जरूरी भी।
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