(अपने
समय के विख्यात चेक बाल कथा
लेखक मिलोश मात्सोउरेक
(1926-2002) की
'प्राणिशास्त्र'
नाम की बाल
कथा सीरीज़ से कुछ कहानियों
का अनुवाद असद ज़ैदी ने पैंतीस
साल पहले किया था जो जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय से निकलने
वाली पत्रिका 'कथ्य'
में छपा था।
'कथ्य'
का एक ही अंक
निकल सका। इसी लेखक की कुछ और
बाल कहानियों के ताज़ा अनुवाद
'जलसा'
के आगामी संकलन
- 'जलसा
- ३
- में
आने जा रहे हैं। 'जलसा'
के मुफ़्त
इश्तिहार व अग्रिम झाँकी के
बतौर एक कहानी यहाँ दी जा रही
है।)
याकोब का मुर्ग़ा
मिलोश मात्सोउरेक की एक बाल कथा
मिलोश मात्सोउरेक की एक बाल कथा
मुर्ग़ा
तो मुर्ग़ा ही होता है,
वह कैसा दिखता
है तुम सब जानते हो,
जानते हो न,
तो फिर मुर्ग़े
का चित्र बनाओ,
अध्यापिका
ने बच्चों से कहा,
अौर सब बच्चे
अपनी पेंसिल अौर क्रेयॉनों
को चूसते हुए मुर्ग़े का चित्र
बनाने में जुट गए,
काले क्रेयॉन
अौर भूरे क्रेयॉन से उनमें
काला अौर भूरा रंग भरने लगे,
लेकिन तुम तो
जानते ही हो याकोब को,
देखो ज़रा
उसे, क्रेयॉन
के बॉक्स में जितने रंगों के
क्रेयॉन अाते हैं सब उसने
इस्तेमाल कर लिए,
फिर लॉरा से
भी उधार लेकर कुछ अौर रंग भर
डाले, इस
प्रकार याकोब का जो मुर्ग़ा
बना उसका सर नारंगी था,
डैने नीले,
जाँघें लाल,
देखकर टीचर
बोली अरे ये कैसा अजीबो-ग़रीब
मुर्ग़ा है ज़रा देखो तो बच्चो,
कक्षा के सारे
बच्चे हँसी से लोटपोट हैं अौर
टीचर कहे जा रही है कि यह सब
लापरवाही का नतीजा है,
कक्षा में
याकोब का ध्यान कहीं अौर होता
है, अौर
सच तो यह है कि याकोब का मुर्ग़ा
मुर्ग़ा नहीं पीरू या मुर्ग़ाबी
की तरह नज़र अाता है,
नहीं,
बल्कि मोर की
तरह, अाकार
में बटेर के बराबर अौर अबाबील
की तरह दुबला,
मुर्ग़ा है
कि अजूबा,
याकोब को उसके
प्रयास के लिए एफ़ मिलता है
अौर उसके बनाए मुर्ग़े को
दीवार पर टाँगने के बजाए टीचर
की अल्मारी के ऊपर दूसरी रद्दी
अौर बेमेल चीज़ों के बीच पटक
दिया जाता है,
बेचारे मुर्ग़े
की भावनाअों को इससे बड़ी ठेस
पहुँचती है,
टीचर की अल्मारी
के ऊपर धूल फाँकने के ख़याल
से ही उसे घबराहट होती है,
भला यह भी कोई
ज़िन्दगी है,
वह हिम्मत
करके पर तौलता है अौर ज़ोर
लगाकर खुली खिड़की के रास्ते
उड़ जाता है।
लेकिन
मुर्ग़ा तो मुर्ग़ा ही हुअा
न, वह
ज़्यादा दूर तक उड़ नहीं सकता,
लिहाज़ा उसकी
उड़ान स्कूल के बग़ल में बने
घर के बाग़ीचे में ख़त्म होती
है, क्या
ही शानदार ये बाग़ीचा है,
चारों तरफ़
सफ़ेद चेरी के पेड़,
नीले अंगूर
की बेलें,
बाग़बान की
मेहनत अौर प्यार की गवाही देती
जगह, अौर
बाग़बान भी कोई ऐसे वैसे नहीं,
प्रोफ़ेसर
कापोन, जाने
माने पक्षी-विज्ञानी
जो पक्षियों पर सात ग्रंथों
की रचना कर चुके हैं अौर अब
अाठवीं किताब को पूरा करने
में लगे हैं,
वह उसका आख़िरी
पैरा लिखना शुरू करते हैं कि
अचानक उन्हें थकान घेर लेती
है, अौर
वह उठकर थोड़ी सी बाग़बानी
अौर चहलक़दमी के लिए बाग़ीचे
में अा जाते हैं,
इससे उन्हें
आराम मिलता है अौर चिड़ियों
के बारे में सोचने का वक़्त
भी, दुनिया
में इतनी चििड़याँ हैं,
बेशुमार,
प्रोफ़ेसर
कापोन अपने अाप से कहते हैं,
लेकिन आह
बदक़िस्मती कि एक भी चििड़या
को खोजने का श्रेय मुझे नहीं
जाता, वह
उदास हो जाते हैं,
फिर बेखुदी
के अालम में सपना देखने लगते
हैं कि अब तक अज्ञात रही एक
चिड़िया को उन्होंने खोज
निकाला है,
तभी उनकी नज़र
उस मुर्ग़े पर पड़ती है जो
उनके दुलारे नीले अंगूरों को
चुगे जा रहा है,
उन दुर्लभ
अंगूरों को,
बताइये क्या
ये अंगूर इसलिए लगाए गए थे कि
मुर्ग़े-मुिर्ग़यों
का दाना बनें,
देखकर किसका
ख़ून नहीं खौल उठेगा,
प्रोफ़ेसर
को ग़ुस्सा आ जाता है,
ग़ुस्से में
वह आपे से बाहर हो जाते हैं,
उनकी इच्छा
होती है कि पकड़कर मुर्ग़े
की गरदन मरोड़ दें,
पर अंत में
वह उसे पकड़कर अहाते से बाहर
फेंक देते हैं,
मु्र्ग़ा
घबराता हुआ उड़ जाता है,
पर अरे यह
क्या,
प्रोफ़ेसर
उसके पीछे पीछे भागने लगे हैं,
अपने अहाते
की दीवार फाँद जाते हैं,
जैसे तैसे
करके उसे फिर पकड़ने में सफल
हो जाते हैं अौर प्यार से घर
ले अाते हैं,
काफ़ी अजीब
सा यह मुर्ग़ा है,
शर्त बद सकता
हूँ आज तक किसी ने ऐसा मुर्ग़ा
नहीं देखा होगा,
नारंगी सर,
नीले पंख अौर
सुर्ख़ जाँघें,
प्रोफ़ेसर
यह सब काग़ज़ पर दर्ज कर रहे
हैं, दिखने
में कुछ पीरू या मुर्ग़ाबी
जैसा, पर
कुछ गौरैया की अौर कुछ मोर की
याद दिलाता,
बटेर की तरह
गोल मटोल अौर अबाबील की तरह
दुबला, अौर
इस तरह अपनी अाठवीं किताब के
लिए ये तफ़सील दर्ज करके
प्रोफ़ेसर रोमांच से थरथराते
हुए मुर्ग़े का नामकरण अपने
नाम पर कर देते हैं अौर मुर्ग़े
को ले जाकर काँपते हाथों से
चििड़याघर में सौंप आते हैं।
मुर्ग़ा
तो मुर्ग़ा ही होता है,
अाप सोचते
हैं किसे दिलचस्पी होगी एक
मुर्ग़े से,
पर इस मुर्ग़े
ने तो पूरे चिड़ियाघर में
तहलका मचा दिया है,
ऐसी दुर्लभ
चीज़ बीस-पच्चीस
साल में एकाध बार प्रकट हो तो
हो, चिड़ियाघर
का डाइरेक्टर उत्तेजना में
हाथ मल रहा है,
कर्मचारी
पिंजरा बनाने में लगे हैं,
पेन्टर मसरूफ़
है अौर डाइरेक्टर कह रहा है
पिंजरा शानदार होना चाहिए
अौर बिस्तर ज़रा नर्म,
अौर लीजिए यह
नामपट्ट भी बनकर आ गया,
कापोनी मुर्ग़ा
-- गलीना
कापोनी --
अच्छा नाम है
न, कानों
को भला लगने वाला,
क्या ख़याल
है अापका ...
उधर मुर्ग़े
की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं,
ऐसा स्वागत
ऐसा सत्कार देखकर उसकी आँखों
में आँसू आ जाते हैं,
उसे अब इस
दुनिया से कोई शिकायत नहीं,
वह चिड़ियाघर
का मुख्य आकर्षण है,
सबकी आँखों
का तारा,
चिड़ियाघर
में कभी इतने दर्शक नहीं आये,
कैशियर कह
रहा है, जनता
उमड़ पड़ी है,
टिकट खिड़की
पर लाइन लम्बी होती चली जा रही
है, अौर
लीजिए हमारी वही अध्यापिका
पूरी कक्षा के साथ पिंजरे के
सामने हाज़िर है बच्चों को
बताती हुई कि अभी अभी तुमने
प्रेवाल्क्स्की अश्व को देखा
था, अौर
अब तुम्हारे सामने है एक अौर
दुर्लभ जीव,
गलीना कापोनी
यानी कापोनी मुर्ग़ा जो देखने
में कुछ पीरू या मुर्ग़ाबी
जैसा लगता है,
पर कुछ गौरैया
अौर कुछ मोर से मिलता जुलता
है, देखो
यह कैसे बटेर की तरह गोल मटोल
भी है अौर अबाबील की तरह दुबला
भी, ज़रा
देखो तो कैसा हसीन नारंगी सर
है इसका,
नीले पंख,
लाल-सुर्ख़
जंघाएँ,
बच्चे विस्मित
हैं, ज़ोर
से साँस छोड़ते हुए कहते हैं
अाह कितना सुन्दर मुर्ग़ा
है, है
न टीचर, पर
लॉरा को जैसे करंट लग गया हो,
वह टीचर की
आस्तीन खींचती है अौर कहती
है, ये
तो याकोब का मुर्ग़ा है,
सच में टीचर
ये वही मुर्ग़ा है,
टीचर झल्लाती
है ये बेवक़ूफ़ लड़की क्या
बकबक कर रही है याकोब का मुर्ग़ा
याकोब का ...
अरे याद आया
देखना ये याकोब कहाँ गया,
उसका ध्यान
फिर कहीं अौर है,
देखो कहाँ
पहुँच गया एंटईटर के पिंजरे
के सामने,
कापोनी मुर्ग़े
को देखने के बजाय चींटीख़ोर
पशु को देखता हुआ,
याकोब,
अपने फेफड़ों
की पूरी ताक़त के साथ ऊँचे सुर
में टीचर चीख़ती है,
अगली बार से
मैं तुम्हें घर वापस भेज दूँगी,
तुम्हारा
बरताव अब बरदाश्त के बाहर हो
चुका है याकोब,
सही बात है
टीचर की,
यह सब देखकर
किसी भी ख़ून खौल सकता है।
---
मात्सोउरेक
की एक अंग्रेज़ प्रशंसिका
ने, जो
निश्चय ही अध्यापिका रही होगी,
इस कहानी के
अपने अनुवाद के साथ बच्चों
के लिए निम्नलिखित प्रश्नावली
भी अपनी तरफ़ से जोड़ दी थी।
प्रश्न
१.
याकोब के
मुर्ग़े के जीवन को कम से कम
चार चरणों में बाँटते हुए
वर्णित कीजिए।
२.
अपने बाग़ीचे
में बेमेल पक्षी को देखकर
पक्षी-विज्ञानी
ने क्या किया अौर क्यों?
३.
अगर आपके
मुर्ग़े को चिड़ियाघर में रख
दिया जाए तो आपकी प्रतिक्रिया
कैसी होगी?
४.
अध्यापिका
ने मुर्ग़े को देखकर दो भिन्न
अवसरों पर --
(क)
क्लासरूम में
(ख)
चिड़ियाघर
में -- जो
भाव व्यक्त किए,
उनका तुलनात्मक
विश्लेषण कीजिए।
५.
चिड़ियाघर
में अपने मुर्ग़े को देखकर
याकोब की अंतिम प्रतिक्रिया
क्या थी?
६.
इस प्रसंग के
आधार पर याकोब के भविष्य के
बारे में अनुमान लगाइए।---
2 comments:
जबरजस्त। रचनात्मकता तो रचनात्मकता होती है। टीचर के लताड़ने से डर कर दुबक जाती है लेकिन फिर कभी न कभी प्रकट जरूर होती है। वह कुछ भी नया ही बनाती है अच्छा भी, बुरा भी, बहुत बुरा भी।
SAHARA INDIA TV ke patrkar RAJKUMAR PANDEY ka mail-
भाई धीरेश
शानदार कहानी के लिए धन्यवाद, बहुत ही उम्दा रचना आपके सौजन्य से मिली
राजकुमार
rajkumarpatrakar@gmail.com
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