Wednesday, September 3, 2008

कुढ़िये, कुढ़िये, कुढ़ते रहिये


ब्लूलाइन बस शकरपुर बस स्टेंड से खिसकना शुरू हुई है। भीड़ नहीं है और कई सीटें खाली पड़ी हैं। अचानक एक लड़की चीखने लगती है - बस रोको, इसे बस से उतारो, ये परेशान कर रहा है। लड़की की बगल में बैठा अधेड़ खड़ा हो गया है और बड़े सधे हुए अंदाज में सवाल करता है- मैंने क्या कहा तुम्हें? लड़की मदद की उम्मीद और गुस्से में फिर चीखती है। बस रोको, इसे बस से उतारो। मैं उस आदमी को पकड़ने की कोशिश करता हूं और तब तक अगली सीट पर बैठी एक और लड़की कहती है - हां ये परेशान कर रहा था, मुझे भी। कपड़ों और हाथ में ली गई फाइलों से जेंटलमैन लग रहा अधेड़ तेजी से बस से उतरकर भागने की कोशिश में है और एक चुटियाधारी सज्जन उसे पकड़ने के अंदाज में बचाने की कोशिश करते हैं। एक युवक मेरी मदद में आता है पर अधेड़ एक-दो हाथ खाकर भाग निकलते हैं। एक और लड़की इस दौरान परेशान लड़की की मदद का हौसला दिखाती है। मैं देखता हूं, यह दीपा मेरे ही आफिस से हैं।
जो खामोश थे, वे अब घटना की व्याख्या कर रसरंजन की संभावना तलाशना चाहते हैं। चुटियाधारी कहता है- आदमी गलत था, उसके भागने के अंदाज से ही पता चल गया। कोई और भी कुछ बोलता है।
लगता है छेड़खानी कर भागा अधेड़ बस में ही है, सारे मरदों के भीतर और अब और ज्यादा खुलकर खेल रहा है। मैं चीखता हूं- तब हम चुप थे सब, हम सारे हरामखोर हैं। हम सब यही करते हैं। कोई लड़की बोलती है तो उस पर टूट पड़ते हैं। ९९ फीसदी लोग या तो चुप रहते हैं या विकृत मजा लेते हैं।
चुटियाधारी मोरचा लेता है। इसे पूरे पुरुष समाज पर हमला मानता है। गुस्से में चिल्लाता है। कहता है- लोग विरोध करते हैं गलत काम का, लेकिन हमने तो एसी लड़कियां भी देखी हैं जो झुट्टो ई (झूठा इल्जाम लगाकर) किसी को कुछ कह देत्ती हैं और बिचारे को सब पीटते हैं।
मैं देखता हूं जिस लड़की को छेड़खानी का शिकार होना पड़ा था, वह फूट-फूट कर रो रही है। मैं कहता हूं, तुम क्यों रोती हो, तुमने क्या बुरा किया? दीपा भी उसे संभालने की कोशिश करती हैं। हालांकि मैं जानता हूं, एसे समाज में जहां मनुष्य होने की गरिमा को इस तरह सरेआम कुचला जाता हो और फिर मरदानगी के वकील बेशरम दलीलें पेश करते हों, रोना ही बचता है। मैं भी रोना चाहता हूं।
चुटियाधारी अब तक उपदेश की मुद्रा में आ चुका है। कहता है - तू क्यूं रोवे, तन्नै तो हिम्मत करी। तू कायर थोड़े ही है। मेरा मन करता है, उसके मुंह पर थूक दूं। उसे कौन समझा समझा सकता है कि जो चीख नहीं पड़तीं, जो छींटाकशी पर हंसते हुए किसी तरह सफर पूरा करती हैं, जो किसी तरह जब्त किए खुद को संभाले रखती हैं, जो भीड़ चीरते वक्त अपने सीने पर अचानक आने वाली कुहनियों को सहज अनुमान के आधार पर धता देते हुए रास्ता तय करती हैं, जो अपनी कमर, कंधों, छाती और दिल-दिमाग पर मरदों की अश्ललीलता का गू ढोते हुए किसी तरह गुजर करती हैं, वे भी कायर नहीं हैं।
चुटियाधारी चुप नहीं होना चाहता। उसे ९९ फीसदी मरदों को बुरा कहना नागवार गुजरा है। उसे कौन कहे, लड़कियां अपने बाप, भाई और बेटे के पास भी अपमानित होती हैं। पुरानी खाप-पंचायतें और आधुनिक समाज उन्हें और भी अपमानित करता है। मैं और मेरी साथी कुछ बोलते हैं तो आगे बैठे एक सज्जन चुटियाधारी के पक्ष में लड़ने को तैयार दीखते हैं। देहाती और शहरी मरदों की एकता का कैसा कामन ग्राउंड है। यही लोग हैं जो बसों में छेड़खानी की शिकायत करने पर चिल्लाकर लड़की को डांटते हैं- बस में क्यूं चलती हो, कार में चला करो।
मैं कुछ और लिखना चाहता था पर एसी जिल्लत झेलने के बाद क्या लिखा जा सकता है। और ये जिल्लत रोज-रोज की है। एसे किस्से अनगिन हैं और पिट जाने की नौबत रोज ही आती है।

8 comments:

मनीषा भल्ला said...

जबरदस्त...

Unknown said...

माना दखल देना जरूरी है लेकिन भाईसाब हर जगह कूदने से पहले जरा अपनी सेहत का भी ख्याल कर लिया करो।

जितेन्द़ भगत said...

आपका गुस्‍सा वाजि‍ब है।

Ashok Pande said...

उम्मीद है ... कि अब कोई उम्मीद नहीं बची यार!

बने रहो धीरेश!

अभी तो ये तक कहने का हौसला नहीं बचा कि कह सकूं : "आएंगे उजले दिन ज़रूर". पता नहीं.

शर्मसार हूं!

सोतड़ू said...

सैणी साब,
मैं अशोक पांडे से इत्तेफ़ाक रखता हूं, मैं भी शर्मसार हूं।
लेकिन मैं ये भी सोचता हूं कि ये कमीनापन क्या कभी कम हो सकता है, रहा होगा। विश्व की सबसे विकसित, सबसे पवित्र सभ्यताओं में भी- आदमी कम से कम इतना कमीना तो रहा ही होगा। शायद सभ्यता के विकसित होने का पता ऐसी हरकतों के विरोध से ही लगता हो। शायद बेहतर संस्कृति वाली सभ्यताओं में विरोध ज़्यादा मुखर हो....
मैं अनिल यादव से भी सहमत हूं कि तुन्हें अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर अब जब ये दिन-ब-दिन और नाज़ुक होती जा रही है। लेकिन-लेकिन अगर धीरेश सैनी विरोध न करे, एक कोने में खड़ा होकर भीड़ को गाली न दे तो वो धीरेश सैनी रहेगा क्या ? वो सोतड़ू या जांबवंत नहीं हो जाएगा क्या?

Miles to Go... said...

chutiyadhari aur mardaangi ke jhandabardaaron ko yeh baat tab samajh aati hai jab aisa unki apni apni behan, beti ya bahu ke sath hota hai. bahut badhiya saini bhai...

Miles to Go... said...

chutiyadhari aur mardaangi ke jhandabardaaron ko yeh baat tab samajh aati hai jab aisa unki apni apni behan, beti ya bahu ke sath hota hai. bahut badhiya saini bhai...

Arun Aditya said...

बिल्कुल सच कहा धीरेश, ऐसी जिल्लत झेलने के बाद क्या लिखा जा सकता है।