तो क्या मीडिया को यह खतरा सताने लगा है कि मायावती इस बार प्रधानमंत्री बन सकती हैं? कुछ देर पहले एक टीवी चैनल पर इस बाबत हो रही बहस के एंकर (होस्ट) के बेचैनी भरे तेवर देखकर यही लगा। चैनल था सीएनन-आईबीएन और एंकर थीं सागरिका घोष सरदेसाई (जनाब राजदीप सरदेसाई की बीवी)। कहने को वे जानना चाह रही थीं कि क्या मायावती के पीएम बनने के सवाल पर देश का इलीट बायस है। लेकिन वे जानना कम चाह रही थीं बल्कि चीखकर बता ज्यादा रही थीं। वे मायावती को लेकर बार-बार धड़ल्ले से जिस फ्रेज़ का उपयोग कर रही थीं, वह था `अनटचेबल वूमन`। शायद अंग्रेजी में उनके मन की पूरी नहीं हो पा रही थी, इसलिए वे ज्यादा प्रभावी अभिव्यक्ति के लिए `अछूत' भी कह दे रही थीं। जाहिर है कि वे खुद इलीट महिला हैं और इस नाते उनमें तमाम योग्यताएं हैं। इसीलिए उन्हें यह भी अधिकार है कि वे दलित तबके से आई एक लोकप्रिय नेत्री को संविधान और न्यूनतम मानवीय गरिमा की परवाह किए बगैर टेलीविजन पर अछूत-अछूत चिल्लाती रहें। उनके मन में यह सब भरा है तो वे बेकार ही मायावती की योग्यता, उनकी इंटलेक्चुअलिटी आदि को लेकर सवाल पूछ रही थीं। जवाब तो उनके पास पहले ही थे। हालांकि इस तरह वे देश के बाकी 'इलीट' तबके की तरह अपनी योग्यता और इंटलेक्चुअलिटी का ही परिचय दे रही थीं, जिसके प्रदर्शन में इस वर्ग को कभी शर्म भी नहीं रही।
पुनशचः आप किसी भी `योग्य और इलीट' से बात करें तो अंबेडकर, फुले, रैदास आदि के बारे में भी काफी ज्ञान बढ़ा सकते हैं।
9 comments:
मेरे धीरेश भाई, इलीट क्लास ने कब अछूतों को कुछ समझा है। सागरिका घोष जैसों को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है। वह आ रही है और ये लोग परेशान हैं। सवाल यही है कि उसके आने से हम किस तरह के परिवर्तन की उम्मीद रखें। बहरहाल, परिवर्तन न सही, एक बहुत बड़े वर्ग को इससे जो संतुष्टि मिलेगी, वही क्या कम है।
शानदार आलेख
kamal hai, camredo ko mayawati bhi proletriate nazar aane lagi hai. yahi seekha hai in logo ne communist manifesto se. is desh me mayawati, laloo, george farnandis jaise log hi marxwad ka bantadhaar kar rahe hai, our app bhi unhi ka haath bata rahe hai. chullu bhar pani me doob mariye.
ye Nakul koi Fake name se bolta hai. Shamsher ji wali post par ganda bola ye. is post par bhi. Marxwad ka kakhara bhi nahi padha isne. vaise Issue ye hai ki kaise kisi ko achhut bol sakta hai koi. badi achhi aur bold post.
मायावती की राजनीती को लेकर एक अलग बहस हो सकती है. मगर यह पक्की बात है कि उनका दलित होना तथाकथित सवर्ण तबके की नींद खराब करता है. ये मैडम घोष या सरदेसाई जो भी हैं, इसी मानसिकता का शिकार हुई होंगी. मीडिया में दलित पत्रकार के लिए जगह नहीं है, नेता के लिए क्या होगी? वैसे चंद्रभान प्रसाद कार्यक्रम में कैसा दलित विमर्श प्रस्तुत कर रहे थे.
चैनल की चखचख देखो और चंदू की चाची की चटोरी जबान पर चमकते चांदी की चम्मच पर चिढ़ो।
हुंह... उसके ससुर दिलीप सरदेसाई तो मैच के दौरान दलित खिलाड़ियों के साथ लंच भी नहीं लेते थे।
bahan mayawati to BJP ke saath chali jayengi..modi ke election campaign me ek baar gayi thi..CPM wale takte rah jayenge..unke aane se dalit ka kuch na hoga..pahle mulayam our ab mayawati, inhi ke beech marxwadi goomte rah jayenge..chullu bhar pani me doob mariye.
मायावती की जाति मुद्दा नहीं होना चाहिए, मुद्दा होना चाहिए उत्तर प्रदेश में फैला खुला भ्रष्टाचार
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