Friday, July 17, 2009
उदयप्रकाश का सफाईनामा और संसद में रोना आदित्यनाथ का
दोस्तों, उदय प्रकाश बड़े लेखक हैं. उनके पास शब्दों की जादूगरी है और दुनिया भर का साहित्य उन्होंने पढ़ा है. वे अपनी उपलब्धियों और बेबसी व यंत्रणाओं का अनंत किस्सा अपने ब्लॉग पर ही लगभग आत्मरति के अंदाज में पढ़ाते ही रहते हैं. वे महान भी हैं और कुंवर भी, अति लोकप्रिय भी हैं और हाशिये के बेहद उत्पीडित साधारण जन भी. ऐसा सब उनका ब्लॉग लगातार बोलता है. इन दिनों उन्हें बेहद दुःख है कि आखिर वर्चुअल सर्च के जरिये क्यों उनका आदित्यनाथ के हुजूर में सलाम का फोटो पेश कर दिया गया. फिर यह उनका पारिवारिक मसला था जिसके राजनीतिक अर्थ तलाश लिए गए. इस यंत्रणा के दौरे में उन्होंने अनिल यादव को इस गुस्ताखी के लिए धमकियाँ भी दे डालीं, और जिस-तिस को जातिवादी और भ्रष्ट भी करार दे डाला. उनके समर्थकों ने तमाम अफवाहें भी फैलायीं और इस कृत्य का विरोध कर रहे लेखकों पर भी सवाल खड़े किए - कि विरोध करने वाले क्या दूध के धुले हैं आदि, आदि. यानी हमने जो किया, सही किया. अब अचानक उनकी आत्मा में नई हलचल हुई है और उन्होंने अपने ब्लॉग पर गज़ब का स्पष्टीकरण दिया है. अंदाज़ वही पुराने हैं. चाहें तो संसद में योगी आदित्यनाथ को रोते हुए याद कर सकते हैं.
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7 comments:
बहुत मन लग रहा है इस प्रकरण में।
चलिए, ये तो हुआ कि उदयप्रकाश 'न समझ पाने' और 'हुई भूल' जैसी बातें करने लगे हैं। इससे ये साबित होता है कि हिंदी के तमाम साहित्यकारों और पाठकों की तरफ से आए क्षोभ और विरोधपत्र के पीछे कोई साजिश नहीं थी। यह एक लेखक की गलत राह पकड़ने पर बजाई जा रही सीटी भर थी।
उम्मीद है कि धीरे-धीरे उदय प्रकाश में ये साहस भी आएगा कि वे सीटी बजाने वालों को जातिवादी फासीवादी कहने पर पश्चाताप करेंगे। पर वे बहादुर क्या करेंगे जो उदयप्रकाश की हरकत पर उठी उंगलियों के खिलाफ आँय-बांय बक रहे थे।
भाई, मूर्ख दोस्त समझदार दुश्मनों से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
ye bhi dekhiyega-
http://hindiacom.blogspot.com/2009/07/blog-post_967.html
थोड़े में काफी कुछ कह दिया धीरेश भाई आपने। वैसे यह मुद्दा व्यक्तिगत छींटाकशी से आगे जाकर सांप्रदायिकता के विरोध के कमजोर या महज रस्मी हो जाने पर केंद्रित होता तो ज्यादा अच्छा रहता।
उदय जी ने क्या ग़ज़ब की दयनीयता ओढी है।
एसी बेरोज़गारी पर सौ नौकरियां क़ुरबान
और कमज़ोरी ऐसी कि पूछिये मत्।
नेपाल के राजा गोरखनाथ हर साल आते थे शक्ति के लिये उदय जी भी शायद सोनिया के घर से आदित्यनाथ तक इसी शक्ति की तलाश में भटक रहे हैं।
प्रोफ़ेसर नहीं बनाया वामपंथियों ने
शायद योगी अब वीसी ही बना दें!!!
bhai
mool post maine lagaai thii
http://naidakhal.blogspot.com
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