Wednesday, September 16, 2009

हुसेन : गुरबत में हों अगर हम...





शान-ए-हिंद, तुझे सालगिरह मुबारक हो



गुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में


समझो वहीं हमें भी दिल है जहाँ हमारा


-इक़बाल

6 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

शान ए हिंद को हमारा भी सलाम!

varsha said...

hussain sahab ko saal girah mubarak....baba se indore delhi aur mumbai mein kul jama saat mulaakaten hain aur har mulakat mein unka chintak swaroop gahra aur gahra hokar saamne aaya.afsos ek sachche bharteeya ko hamne desh nikala de rakha hai.
aapne sahi kaha शान-ए-हिंद.

Anonymous said...

Pahle Bhagat Singh ko khaya besharm vampanthiyo, ab unka janmdin yad nahi ata. ab husen tumhara Bhagat Singh hai?

हिन्दीवाणी said...

हुसैन साहब को सालगिरह और ईद बहुत-बहुत मुबारक हो। जल्दी लौटें अपने देश।

हिन्दीवाणी said...

हुसैन साहब को सालगिरह और ईद बहुत-बहुत मुबारक हो। जल्दी लौटें अपने देश।

निशा शर्मा said...

हुसैन साहेब को जन्मदिन की बहुत सी शुभकामनाएं. वे निस्संदेह हमारे समकालीन चित्रकारों में सर्वश्रेष्ठ हैं. हिन्दू उग्रवादी उनसे सख्त नफरत करते हैं क्यों कि वे पेंटिंग के मामले में अनपढ़ हैं. इस विषय में ज़ाहिर है कि हम हुसैन साहेब के साथ हैं और हमशा रहेंगे.

लेकिन हिन्दू उग्रवादिओं के विरुद्ध हुसैन साहेब के साथ खडे होने के दायित्व के कारण हम उनके जीवन और कृतित्व में जो भर्त्सना के लायक बातें हैं उनकी आलोचना का अधिकार नहीं छोड़ सकते.

उनका सौन्दर्यबोध संदिग्ध ही नहीं सड़क छाप है. वे माधुरी दीक्षित के दीवाने रहे हैं, उसे भारतीय स्त्री के सौंदर्य का प्रतिनिधि मान कर पेंटिंग्स का ढेर लगाया है. माधुरी दीक्षित ? फिर तब्बू ? फिर कोई राव ? उसके पहले मुमताज़. उन्हें फिल्म तारिकाओं में ही सौंदर्य नज़र आता है तो शबाना या स्मिता या मीना कुमारी उन्हें क्यों सुंदर नहीं लगतीं ?

क्या उन्होनें महाश्वेता देवी का कोई चित्र बनाया ? क्या अरुंधती राव या मेधा पाटकर का कोई चित्र बनाया ?

वे बाज़ार के चित्रकार हैं. पता नहीं किस अनपढ़ अमीर से उन्होंने १०० पेंटिंग्स बनाने का करार किया था, पर पेंटिंग १ करोड़ की कीमत पर. १०० करोड़ कमाने के बाद क्या उसमें से एक चवन्नी भी उन्होनें नर्मदा बचाओं आन्दोलन या इस देश में चल रहे तमाम संघर्षों के लिए दी ?

उनकी जीवन शैली अमीर आदमी की रही हैं. फिल्मी दुनिया के घटिया कार्यक्रमों में वे दौड़ दौड़ के जाते रहे हैं. दुबई में भी वे हम और आप जैसे लोगों को नहीं मिस करते. वे फिल्मी दुनिया के ग्लैमर और सो काल्ड सुंदर औरतों को मिस करते हैं.

साहस के नाम पर दिल चूहे जैसा है. हिन्दू उग्रवादिओं ने विरोध किया तो एक फिल्म पूरी शूट करने के बाद डिब्बे में डाल दी. उसे रिलीज़ करने की ही हिम्मत नहीं हुई.

ऐसा शख्स हिन्दू उग्रवादिओं के निशाने पर है और हम हिन्दू उग्रवाद के सख्त विरोधी हैं, इसलिए वह हमारे विरोध का अनाधिकार लाभ ले रहा है. वरना यह शख्स इसका अधिकारी नहीं कि हम इसके लिए गला फाड़ कर नारे लगायें, कड़ी धूप में प्रदर्शन करते फिरें. इसलिए कि वह पहला मौका मिलते ही दगा करने वाला इंसान हैं. यह उन्हीं से हाथ मिला कर कोई न कोई समझौता करता नज़र आयेगा.

होंगे वे अच्छे कलाकार. मगर उनकी सैकडों पेंटिंग्स वान गोग की एक भी पेंटिंग के पासंग भी नहीं.

निशा शर्मा