Friday, October 2, 2009

एक परिंदा उड़ता है



अपने प्यारे कवि मनमोहन के जन्मदिन पर उनकी यह कविता-

एक परिंदा उड़ता है
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एक परिंदा उड़ता है
मुझसे पूछे बिना
मुझे बताये बिना
उड़ता है परिंदा एक
मेरे भीतर
मेरी आँखों में

21 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर रचना कम शब्दों में

M VERMA said...

इंसान तभी तक ज़िन्दा है
जब तक उसके अन्दर परिन्दा है.

ravindra vyas said...

उन्हें बधाई और शुभकामनाएं।
कविता सचमुच अच्छई है।

पारुल "पुखराज" said...

वाह!

शरद कोकास said...

वाह क्या खूब याद दिलाई है आपने कवि मनमोहन की इस खूबसूरत कविता के बहाने

आशीष "अंशुमाली" said...

कैसी छटपटाहट है.. कविता में..

संदीप said...

मनमोहन के जन्‍मदिन के मौके पर मेरी हार्दिक शुभकामनाए उन तक पहुंचाइएगा...

Ashok Kumar pandey said...

जन्म दिन की बधाई...

यह परिंदा उड़ता रहे

महुवा said...

मेरे अंदर भी......

डॉ .अनुराग said...

यकीनन अलबत्ता वक़्त के साथ इसकी परवाज उतनी ऊँची नहीं रहती....

Arun Aditya said...

अरथ अमित अति आखर थोरे...
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई।

Udan Tashtari said...

मनमोहन जी के जन्मदिन पर उनकी यह कविता पढ़ना सुखद रहा.

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत बढ़िया रचना

अमिताभ मीत said...

क्या बात है. वाह !

वर्षा said...

sundar

sushilnayal said...

ab tak ud rahan hein, par mujze bataye bina.

sushil said...

tum jeo hazaron sal, sal de din go 50 hazar

Rangnath Singh said...

kavi ko janmdin ki badhayi....

Hemant Snehi said...

अतिसुन्दर रचना.

विनय (Viney) said...

अद्भुत!

विनय (Viney) said...

कवि मनमोहन और उनकी कविताओं के बारे में और जानकारी कहाँ से मिल सकती है. उनकी पुस्तकों के बारे में और हो सके तो कहाँ से उपलब्ध हो सकती हैं, ये भी बताएं!